एक समय की बात है, एक राज्य में एक राजा राज्य करता था । राजा के तीन रानियाँ थी, जिनसे राजा बेहद प्रेम करता था । किन्तु पहली रानी के अधिक सुन्दर होने के कारण राजा उससे अधिक प्रेम करता था, तथा उसे अधिक समय देता था । दूसरी और तीसरी रानी को राजा अधिक समय नही दे पाता था । इसलिए दूसरी रानी अक्सर राज्य के कर्मचारियों के साथ अपना समय बिताती थी । जबकि तीसरी रानी राजा केवल राजा से प्रेम रखती थी । राजा चाहे कम समय ही दे लेकिन वह उसे छोड़कर किसी परपुरुष का चिंतन नहीं करती थी ।
राजा रानियों की बाहरी सुन्दरता के आधार पर उन्हें प्राथमिकता दे रहा था । किन्तु उसे रानियों की आतंरिक मनोदशा का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था ।
एक दिन कुलगुरु का राजमहल में आगमन हुआ । वह किसी आवश्यक कार्यवश राजा से मिलने आये थे । तब महाराज अपनी पहली रानी के साथ अपने हरम में थे । कुलगुरु को आते देख तीसरी रानी ने उनका स्वागत किया और उन्हें अतिथि कक्ष में बिठाया और महाराज को सुचना करने के लिए सेवक भेज दिया ।
रानी की उदासीनता को देख कुलगुरु ने पूछ लिया – “ क्या बात है, बेटी ! तुम उदास क्यों हो ? ” रानी बिचारी कुछ न बोल सकी और उठकर चल दी । तभी वहाँ खड़ी एक सेविका सामने आई और बोली – “ गुरुदेव की आज्ञा हो तो मैं कुछ कहूँ ?”
कुलगुरु ने संकेत से स्वीकृति दे दी । सेविका बोली – “ गुरुदेव ! आपको तो पता है, महाराज के तीन रानियाँ है, लेकिन महाराज अपना ज्यादातर समय पहली रानी के साथ बिताते है । उनकी इस उपेक्षा के कारण मंझली रानी ने तो मन बहलाने के दुसरे साधन खोज लिए लेकिन छोटी रानी महाराज से ही प्रेम करती है । इसलिए चुपचाप उपेक्षा भी सह लेती है ।”
सेविका की यह बात सुनकर कुलगुरु सारा मांजरा समझ गये । इतने में राजा भी आ गया । राजा ने कुलगुरु को प्रणाम किया और आसन ग्रहण किया ।
कुलगुरु बोले – “ राजन ! मुझे लगता है, आपके जीवन में एक महत्वपूर्ण अध्याय सीखना बाकि रह गया है ।”
राजा बोला – “ यदि आपको लगता है गुरुदेव ! तो मैं अवश्य सीखूंगा । बताइए वह अध्याय क्या है ?”
कुलगुरु बोले – “ राजन ! प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति का जीवन में अपना महत्त्व होता है । प्रत्येक व्यक्ति जो आपके जीवन में है । इस राज्य से जुड़ा है । वह आपसे कुछ अपेक्षाएं रखता है और उसकी अपेक्षाओं को पूरा करना आपका कर्तव्य है ।”
राजा बोला – “ गुरुदेव ! क्या मुझसे कोई गलती हुई है ?”
कुलगुरु बोले – “ राजन ! अपने निजी प्रेम और आकर्षण के कारण अपेक्षा रखने वालों की उपेक्षा करना उचित नहीं है । आपके तीन रानियाँ है तो आपको उन्हें उनकी अपेक्षा के अनुसार समय देना चाहिए ।” इतना कहकर कुलगुरु चले गये । राजा को बात तो समझ आ गई किन्तु राजा ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और पहली रानी में ही लगा रहा ।
जब चेतावनी मिलने के बाद भी इन्सान गलती करता है तो उसे अंत समय में पछताना ही पड़ता है । कुलगुरु ने चेतावनी दी लेकिन राजा नहीं समझा ।
आखिर एक दिन राजा अचानक बीमार पड़ गया । सारे राजवैद्य राजा की चिकित्सा करने में असमर्थ थे । राजा मृत्युशैया पर पड़ा कराह रहा था । राजा को अपना अंत समय निकट दिखने लगा । उसने अपनी पहली रानी को बुलाया और पूछा – “ हे प्रिये ! मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ । क्या तुम मेरे साथ चलोगी ?”
पहली रानी बोली – “ महाराज ! अभी मेरा जीवन शेष है । मैं और अधिक जी सकती हूँ और मुझे जीने की इच्छा भी है । अतः मैं आपके साथ नहीं चल सकती ।” यह सुनकर राजा को झटका लगा । उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जिसे वह दिलों जान से चाहता है । उसने ऐसा जवाब दिया ।
तब राजा ने अपनी दूसरी रानी को बुलाया और कहा – “ हे प्रिये ! क्या तुम मेरे साथ चलोगी ?”
दूसरी रानी बोली – “ महाराज ! जीते जी तो आप बड़ी रानी से चिपके रहे और अब मरते वक्त मुझे साथ चलने को बोल रहे हो । माफ़ कीजियेगा महाराज ! मैं तो आपके मरने के बाद दूसरी शादी करुँगी और सुख से रहूंगी ।” यह सुनकर राजा बड़ा दुखी हुआ किन्तु मरता क्या करता ।
दो रानियों के जवाबों से वह इतना निराश हो गया कि उसने तीसरी रानी से कुछ पूछा ही नहीं । लेकिन छोटी रानी परदे की आड़ में खड़ी सब सुन रही थी । वह बिना बुलाये महाराज के पास आई और आंसू बहाते हुए बोली – “ महाराज ! मैं चलूंगी आपके साथ ।” यह सुनकर राजा फुट – फुटकर रोने लगा ।
जिसे मैंने कभी दिल से चाहा नहीं वो मेरे साथ मरने को तैयार है । अब उसे कुलगुरु की वो बात याद आई जो उन्होंने कही थी – “ अपने निजी प्रेम और आकर्षण के कारण अपेक्षा रखने वालों की उपेक्षा करना उचित नहीं है।” अब राजा को प्रेम का असली मतलब समझ आया ।
तभी कुलगुरु एक वैद्य को लेकर आये । उन वैद्यजी की चिकित्सा से राजा ठीक हो गया । अब राजा के जीवन में पहला स्थान छोटी रानी का था ।
शिक्षा – “ इस कहानी से बड़ी ही महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है । अहमियत उन्हीं को दो जो उसकी अपेक्षा रखते है । प्रेम उनसे मत करो, जिन्हें आप पसंद करते हो बल्कि उनसें करो, जो आपको पसंद करते है ।”