पिछले लेख “ ध्यान क्या और कैसे करें ? ” में आपने जाना था “ धारणा की परिपक्व अवस्था को ध्यान कहते है ”। इस लेख में हम जानेंगे ध्यान की विधि और उसका विज्ञान । ध्यान और धारणा के लिए विधि और व्यवस्था समान होती है । धारणा का अभ्यास तो आप कभी – भी कहीं भी कर सकते है किन्तु ध्यान के लिए कोलाहल रहित स्थान और मन का शांत होना अत्यंत आवश्यक है ।
ध्यान – धारणा की विधि
धारणा के लिए सबसे पहले आप कोई ध्येय निर्धारित कर ले । जो जिस पर आपको मन लगाने में अधिक प्रयास नहीं करना पढ़े । यह वस्तु बाहरी दुनिया से भी हो सकती है और अपने अन्दर सूक्ष्म शरीर के चक्र भी हो सकते है । यदि आपको बाहरी चीजों में अधिक रूचि है तो आप सूर्य या किसी दीपक का ध्यान सर्वोत्तम है । यदि आपकी किसी देवी देवता के प्रति श्रृद्धा हो तो बहुत बढ़िया । आपको एकाग्रता पूर्वक उनकी ही धारणा करना चाहिए । यदि आप अपने शरीर के चक्रों में ध्यान करना चाहते है तो आज्ञाचक्र सर्वोत्तम है । इसके अलावा आप ह्रदय चक्र और सह्त्रार चक्र में भी ध्यान कर सकते है ।
हम आपको पहले ही बता चुके है कि धारणा और ध्यान के अभ्यास से पूर्व यम – नियम आदि से मन को पवित्र अवश्य बना ले तभी उन्नति संभव है ।
पवित्रता के बिना एकाग्रता का कोई सदुपयोग नहीं, एकाग्रता के बिना धारणा संभव नहीं और जब तक धारणा संभव नहीं, ध्यान की शुरुआत नहीं होगी और बिना ध्यान के ईश्वर से मुलाकात नहीं होगी !
इसलिए विचारवान योग साधकों को चाहिए कि अष्टांगयोग के यम – नियम से पवित्रता की साधना करें !
धारणा – ध्यान के लिए सुबह सूर्योदय से २ घंटा पूर्व से लेकर सूर्योदय के पश्चात् १ घंटे का समय बहुत ही उपयोगी है । यह सामान्य साधको तथा नवीन अभ्यासियों के लिए है । जो इससे भी जल्दी अभ्यास करना चाहे वह ब्रह्ममुहूर्त (३ – ४ ) बजे के समय में अभ्यास कर सकते है । अभ्यास से पूर्व शौच आदि से निवृत हो लेवे । यदि स्नान कर सके तो उत्तम है । नहीं कर सके तो हाथ – पैर धोकर काम चलाया जा सकता है ।
नित्यकर्म आदि से निवृत होकर ऐसे स्थान पर पहुंचे जहाँ किसी प्रकार का कोई अशांति (disturbance) ना हो । वातावरण हवादार हो किन्तु अधिक हवा होना भी सही नहीं । यह स्थान घर का कोई कोना भी हो सकता है या बाहर का कोई भी स्थान । ऐसे स्थान पर पहुंचकर अपना आसन बिछाए । यह ध्यान रहे कि आसन कुचालक हो । जैसे कुश या कम्बल का आसन उपयोग में लिया जा सकता है । अब आप बैठने के लिए सुखासन लगा सकते है । पद्मासन, वज्रासन और सिद्धासन में जिन्हें सुविधा और अभ्यास हो वह उन्हें लगाकर भी बैठ सकते है । किसी भी आसन में बैठे यह विशेष ध्यान रखे कि रीड की हड्डी एकदम सीधी रहे । जिससे कि सुषुम्ना से प्राणों का आवागमन सही तरीके से होता रहे ।
कभी – कभी दिशा के सन्दर्भ में भी भ्रम होता है कि कौनसी दिशा में मुँह रखकर बैठे । वैसे तो जिस दिशा में आपको अच्छा ध्यान लगे उसी में मुंह रखकर बैठ सकते है । किन्तु फिर भी पूर्व और उत्तर की दिशा सर्वोत्तम है । यदि आप सुबह ध्यान का अभ्यास कर रहे है तो पूर्व में मुंह करके बैठे । यदि आप शाम के समय ध्यान कर रहे है तो पश्चिम में मुंह करके बैठे । और यदि आप दिन या रात में ध्यान कर रहे हो तो उत्तर में मुंह करके बैठे । यह कोई फिक्स नियम नहीं है । मैंने अपने अनुभव से जो सही पाया वह आपको बताया है । आप भी अभ्यास करके देख लीजिये । आपको जो रुचे वही आपके लिए अच्छा है ।
अब आप आसन पर बिलकुल शांत चित्त होकर बैठे और धीरे – धीरे ४ -५ लम्बे – लम्बे श्वास ले । अब अपनी आंखे बंद करके अपने ध्येय को मानस दृष्टि (visualization) से देखने की कोशिश करें । उसके गुणों का चिंतन करें । जो संयमी है तथा जिनका मन पवित्र है वह आसानी से किसी भी ध्येय पर एकाग्र हो पाएंगे । किन्तु जो संयमी नहीं है उनका मन बंदरों की तरह इधर – उधर उछल कूद करेगा । किन्तु परेशान होने की जरूरत नहीं । कोशिश करें ! संकल्प करें ! ईश्वर से प्रार्थना करे ! आप अवश्य सफल होंगे ।
मन भागे तो उसे फिर से ध्येय वस्तु पर लाये । शुरुआत में ५ मिनट से लेकर १५ मिनट तक अभ्यास किया जा सकता है । दो सप्ताह भर में ३० – ६० मिनट तक पहुंचा जा सकता है । इससे अधिक यदि आप अभ्यास करना चाहे तो फिर आपको अपना सब कुछ योगियों जैसा बना लेना चाहिए । आहार – विहार, आचार – विचार सब कुछ । फिर आप जितना चाहे ध्यान का अभ्यास कर सकते है । सामान्य मनुष्य के लिए ३० – ४५ मिनट का ध्यान पर्याप्त होता है ।
यह ध्यान की एक प्रक्रिया है । यदि किसी की संगीत में रूचि हो तो वह उस नाद या लय का मनन कर सकता है । इसे नादयोग और लययोग कहा जाता है । जो गायत्री मन्त्र के जप के साथ ध्यान करना चाहे उनके लिए इन दोनों योगो का सम्मिश्रण हो सकता है । इसमें मन्त्र जाप के साथ गायत्री माता का ध्यान करना होता है ।
यदि आप चाहे तो अपनी किसी यात्रा को visualize कर सकते है । यह भी आपकी एकाग्रता को बढ़ाने में सहायक हो सकता है । कोशिश करें कि जो भी आप visualize करें वह स्पष्ट हो ।
जब एकाग्रता पूर्वक आप उस ध्येय पर लम्बे समय तक टिकने लगे तो समझ लीजिये कि आपका ध्यानयोग शुरू हो गया । अब आप अपने इस ध्यान का ध्येय ईश्वर को बना सकते है । जिसके पास सबकुछ है । ईश्वर ही क्यों ? इसे हम एक उदहारण से समझते है । ध्यान एक प्रकार की वैश्विक पूंजी (cosmic capital) है, जिसके माध्यम से आप दुनिया के तमाम देवी – देवताओं से उनकी विशेषता के अनुरूप मदद ले सकते है । जिसके पास यह cosmic capital होगी, वह किसी भी देवी – देवता से संपर्क स्थापित कर सकता है । रामकृष्ण परमहंस ने इसी cosmic capital का उपयोग करके अलग – अलग साधना विधियों का उपयोग करके सबको सही सिद्ध कर दिया था । ध्यान की इसी cosmic capital से योगी लोग योगिक सिद्धियों को हासिल करते है और इसी cosmic capital से तांत्रिक तंत्र सिद्धियों के अधिकारी बनते है ।
जिस तरह विज्ञान का उपयोग विकास में भी किया जा सकता है और विनाश में भी । उसी प्रकार योग भी एक विज्ञान है । इसका उपयोग करके आप अपनी शक्तियों को बढ़ाकर विकास भी सकते है अथवा तंत्र के मारण, मोहन आदि प्रयोग करके किसी को शक्तिहीन करके अपाहिज बनाकर विनाश भी सकते है । लेकिन हमेशा याद रहे बुरे का परिणाम हमेशा बुरा ही होता है ।
मैं जितना अच्छे से समझा सकता था कोशिश की । यदि फिर भी कोई सवाल हो, शंका हो तो निश्चिन्त होकर कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है । यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो अपने मित्रों को अवश्य शेयर करें ।
।। ॐ शांति विश्वं ।।
Mera man bandru ki trha bhagta hai
Or mere man me nkaratmk vichar bahut aate
Or meryy indriya vas me nhi hai hai
Isliye me aapse nivedan karta hu krupa kar ke mera margdarshan kijiye
Ki muje kya karna hoga or kaise karna hoga
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