अध्यात्म सागर का संक्षिप्त परिचय
नमस्कार मित्रों ! अध्यात्म सागर में आपका स्वागत है ।अध्यात्म सागर एक ऐसा ब्लॉग है, जहाँ अध्यात्म के विभिन्न सिद्धांतों को सरल आध्यात्मिक लेखो, लघु बोधकथाओं, महापुरुषों के प्रेरक प्रसंगों तथा वेदादि शास्त्र व उपनिषद की शिक्षाओं को सरलतम भाषा में प्रस्तुत किया गया ।
अध्यात्म सागर क्या है ?
अध्यात्म सागर दो शब्दों से मिलकर बना हैं – अध्यात्म और सागर । अध्यात्म अर्थात आत्मा का विज्ञान, आत्मानुसंधान की विद्या और सागर अर्थात विभिन्न नदियों के मिलने से बनी अथाह जलराशि का समूह । इस तरह अध्यात्म सागर, आत्मकल्याण से विश्वकल्याण का पथ प्रशस्त करने वाला आत्मज्ञान का ख़जाना हैं ।
अध्यात्म सागर का स्त्रोत क्या हैं ?
अध्यात्म सागर का सम्पूर्ण ढांचा वेद – उपनिषद, योगदर्शन तथा अन्यान्य प्राचीनतम ग्रंथों से निकले ज्ञान तथा हमारे विभिन्न आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा दी गई शिक्षाओं से बना हैं । अतः यह मूल रूप से वैदिक ज्ञान पर आधारित हैं । जिस प्रकार सागर का जल वर्षा के माध्यम से सबका कल्याण करता हुआ सागर में जा मिलता है, ठीक उसी प्रकार ईश्वरीय ज्ञान वेदों के माध्यम से सबका कल्याण करता हुआ ईश्वर में मिल जाता हैं अर्थात अपने धारण कर्ता को ईश्वर से मिला देता हैं ।
अध्यात्म सागर क्यों ?
अध्यात्म सागर हमारे समाज में फ़ैल रहे सामाजिक और धार्मिक अंधविश्वासों का उन्मूलन करने के निमित्त बनाया गया है । आज के समाज की स्थिति को यदि गहराई से देखा जाये तो पता चलता है कि ईश्वर का नाम तो हर कोई लेता है किन्तु मानता कोई नहीं । जो लोग सत्संग करते है वही कुसंग में रत पाए जाते है । जो लोग धर्मं का बखान करते है वही धर्म से अनजान है । कोई विभिन्न समस्याओं से त्रस्त है तो कोई तरह – तरह की समस्याएं उत्पन्न करने में व्यस्त है । इन समस्याओं को देखकर लगता है कि जनसामान्य को सही दिशाधारा की आवश्यकता है । इसी के निमित्त श्री राम के कार्य में हमारा यह छोटा सा योगदान है ।
जब ईश्वर अपना सबकुछ लुटाने को तैयार है, जब प्रकृति अपना सबकुछ लुटाने को तैयार है, तो फिर हम क्यों कृपण बने ? जिस तरह जल का संग्रह करने से उसमे जीवाणु और विषाणु उत्पन्न हो जाते है, अन्न का संग्रह करने से वह सड़ने लगता हैं, उसी तरह ज्ञान का संग्रह करते रहने मात्र से वह विस्मृत हो जाता हैं । इसलिए जिस तरह अन्न और जल का उपभोग अपने तथा दूसरों के उपभोग में किया जा सकता है, संग्रह नही ! ठीक उसी तरह ज्ञान का उपयोग भी स्वयं तथा दूसरों के कल्याण में किया जाना चाहिए, केवल संग्रह नहीं । संग्रह की सीमा होती हैं, एक समय पश्चात् संग्रह की हुई वस्तु नष्ट हो जाती है, यही प्रकृति का नियम हैं । इसी प्रेरणा से इस ब्लॉग का निर्माण हुआ हैं ।
प्रेरित ( Inspired by ) – हमारे आध्यात्मिक गुरु –महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, परमहंस योगानन्द, स्वामी शिवानन्द, पंडित श्री राम शर्मा आचार्य, परमपिता परमेश्वर
योगदानकर्ता ( Contributor ) –
Madan Lal Suthar (Author)
Village – Harnawada, Tehsil – Dag
District – Jhalawar
State – Rajasthan – 326514
सहयोग ( Contribute us ) –
यदि आप भी अपना कोई लेख, कहानी और कृति अध्यात्म सागर पर प्रकाशित करके अपना सहयोग देना चाहते है तो हमारे ईमेल contact@adhyatmasagar.com पर भेज सकते है । धन्यवाद !
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