मन (mind) और मस्तिष्क (brain) एक है ? यह प्रश्न कभी ना कभी आपके दिमाग में अवश्य आया होगा । किन्तु क्या आप जानते है कि मन और मस्तिष्क में क्या अंतर है ? यदि नहीं तो इस लेख और पढ़ते रहिये और यदि हां ! फिर भी इस लेख को पढ़ते रहिये । क्योंकि हो सकता है लेखक से कुछ लिखना रह गया जो आपके अनुभव में आया हो !
तो चलिए दोस्तों जानते है कि मन और मस्तिष्क में क्या अंतर है ! अक्सर मन और मस्तिष्क को एक दुसरे के पूरक(complement) के रूप में उपयोग किया जाता है किन्तु क्या यह एक है ? जाहिर है नहीं ! क्योंकि जो यदि एक होते तो मैं यह लेख नहीं लिखता और आप भी यह नहीं पढ़ रहे होते ।
मन (mind) का सम्बन्ध आत्मा (soul) से है जबकि मस्तिष्क (brain), शरीर (body) का एक अंग है । मन (mind) में विचार (thoughts), चेतना(consciousness), ज्ञान (intellect), इच्छाएं(desires), अनुभव (experience), अनुभूतियाँ(cognition) और भावनाएं (feelings) होती है जबकि मस्तिष्क (brain), शरीर के विभिन्न अंगो को तंत्रिका तंत्र (nervous system) द्वारा सूचनाएं पहुँचाने वाला यंत्र(device) है । वास्तव में मन और मस्तिष्क उसी तरह होते है जिस तरह सूक्ष्म शरीर (psychic body) और स्थूल शरीर (physical body) होते है । अतः हम कह सकते है कि मन सूक्ष्म शरीर का भाग है और मस्तिष्क स्थूल शरीर का भाग है ।
क्या मानव मन और मस्तिष्क एक है ?
आप सभी जानते है कि हर मनुष्य में दो दिल(hearts) होते है । जी हाँ ! दो दिल ! पहला तो भौतिक ह्रदय(physical heart) जो दिन – रात शरीर में खून की आपूर्ति करता है और दूसरा आत्मिक ह्रदय (spiritual heart) जो मनुष्य के दयालु, करुण, कठोर और प्रेमी होने का प्रतीक है । भौतिक ह्रदय पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं होता । यदि स्वास्थ्य के नियमों का उलंघन किया गया तो ब्लड प्रेशर का अनियंत्रित होना तय है या शरीर का शुगर बढ़ा तो हार्ट अटैक आना तय है । किन्तु आत्मिक ह्रदय पर मनुष्य चाहे तो नियंत्रण कर सकता है, किन्तु अधिकांश मनुष्यों में यह भी नियंत्रण से बाहर होता है । यह जो दूसरा ह्रदय है इसी को मन कहा जा सकता है ।
मन, शरीर के साथ आत्मा के अभिव्यक्ति(expression) का माध्यम है जबकि मस्तिष्क, भौतिक जगत के साथ आत्मा के कर्म करने का साधन है । मस्तिष्क के अलग – अलग भाग होते है जो मनुष्य के विभिन्न अन्तः स्त्रावी ग्रंथियों को नियंत्रित करते है । शरीर के विभिन्न भागों में सूचनाओं का आदान – प्रदान करते है । किन्तु मस्तिष्क तभी तक क्रियाशील रहता है जब तक शरीर में चेतना है । जैसे शरीर से चेतना निकली ! राम नाम सत्य है !!!!!!!
यह चेतना ही है जो मन और मस्तिष्क को जोडती है । यह चेतना ही है जो भौतिक ह्रदय को आत्मिक ह्रदय से जोड़ती है । इसी चेतना को आत्मशक्ति, प्राण उर्जा, chi energy आदि नामों से जाना जाता है ।
जो अंतर आत्मा और शरीर में होता है ठीक वही अंतर मन और मस्तिष्क में होता है। जिस तरह आत्मा, शरीर नहीं ! शरीर का धारण करने वाला है । उसी तरह मन भी मस्तिष्क नहीं, मस्तिष्क का धारक है । अर्थात जो कुछ भी आप देखते है, सोचते है, विचार करते है, इच्छा करते है, अनुभव करते है आदि आदि, यह सब मन को होता है किन्तु स्मृति (memory) के रूप में मस्तिष्क में संगृहीत (store) होता रहता है । किन्तु ध्यान रहे मन, आत्मा से अलग नहीं है, किन्तु एक भी नहीं है ?
मानव मस्तिष्क के मुख्य भाग को अग्रिम मस्तिष्क (cerebrum) या प्रमस्तिष्क कहा जाता है । यह मानव मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है । यह मस्तिष्क का सबसे ऊपरी हिस्सा होता है, जो खोपड़ी के ठीक नीचे पाया जाता है । इसमें करोड़ों – अरबों न्यूरोंस (neurons) होते है । न्यूरोंस की संख्या ही मनुष्य के बुद्धिमान और बुद्धिहीन होने का निर्धारण करती है । जिस तरह शरीर की ताकत का अनुमान खून क्रियाशीलता से लगाया जाता है ठीक उसी तरह मस्तिष्क की बुद्धिमत्ता का अनुमान इन न्यूरोंस की क्रियाशीलता से लगाया जाता है ।
जिनका खून ठंडा होता है, जिनके खून में उबाल नहीं होता, क्रियाशीलता नहीं होती, वह लोग अक्सर आलसी और डरपोक किस्म के पाए जाते है । उसी तरह जिन लोगो के न्यूरोंस भी ठंडे होते है, क्रियाशीलता नहीं होती है, वह भी मंदबुद्धि पायें जाते है । अतः किसी का शक्तिशाली और बुद्धिमान होना उसके अपने हाथ में है । चाहे तो अपने खून और न्यूरोंस को क्रियाशील बनाकर वीर। साहसी और बुद्धिमान बने या फिर ठंडे ही पड़े रहने देकर डरपोक, मुर्ख, चम्पू और आलसी ही बने रहे । आपकी मर्ज़ी !
छोटे बच्चों में मस्तिष्क के अधिकांश न्यूरोंस क्रियाशील रहते है अतः वह बहुत शीघ्रता से दैनिक जीवन के अनुभवों को ग्रहण करते है । आप देख सकते है ! एक बच्चे को जितना हम १० साल में सीखा सकते है उतना एक प्रोढ़ व्यक्ति हो अगले १०० साल में भी नहीं सीखा सकते है । इसलिए बेकार की बातों में ध्यान देने की बजाय अपने बच्चों पर ध्यान दीजिये । जितना हो सके उसको समय दीजिये, नयी – नयी चीज़े सिखाइए । ताकि जब वह बड़ा होकर समाज में जाये तो कोई उसे मुर्ख ना कह सके ।
महानता का बीज बचपन में ही बोया जाता है, बुढ़ापे में नहीं !
प्रमस्तिष्क के स्थान पर ही सूक्ष्म शरीर में सह्त्रार चक्र पाया जाता है, जो ब्रह्माण्डीय शक्तियों (cosmic energy) का प्रवेश द्वार है । उसी के प्रतीक के रूप में सिर पर शिखा रखी जाती है । सहस्त्रार चक्र सीधा सुषुम्ना कांड से जुड़ा रहता है जिसमें प्राण उर्जा (chi energy) का आवागमन होता है । कुछ योगी लोग ध्यानयोग(meditation), चक्र जागरण और Tai chi आदि क्रियाओं के माध्यम से प्राण उर्जा (chi energy) को प्रमस्तिष्क में पहुँचा देते है, जो वहाँ के सोये हुए न्यूरोंस को क्रियाशील बना देती है । जिससे उन्हें दैवीय बुद्धिमता या ऋतंभरा प्रज्ञा ( divine wisdom)प्राप्त होती है । इस अवस्था का अपना ही अलग आनंद होता है ।
सामान्यतया मानव अपने मस्तिष्क का ५ – १० प्रतिशत उपयोग करता है किन्तु जैसे – जैसे वह अपने मस्तिष्कीय न्यूरोंस को क्रियाशील बनाता जाता है, उसकी बुद्धिमता निरंतर बढती रहती है । जो कोई भी जागृत प्राण उर्जा का प्रयोग करना सीख जाता है उसके लिए मानसिक शक्तियों के द्वार खुल जाते है । यह कोई आशीर्वाद और भीख नहीं है अपनी ही मेहनत से कमाई हुई ब्रह्माण्डीय पूंजी (cosmic capital) है । सब विज्ञान है ( everything is science)।
क्या आपने कभी इस प्रकार का कोई अनुभव किया ? नहीं किया तो विचार कीजिये और हमें बताइए । यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो अपने दोस्तों को facebook, twitter, google+ पर जरुर शेयर करें ।
।। ॐ शांति विश्वं ।।
धन्यवाद प्रकाश शुक्ल जी ! अपने अनुभव इसी प्रकाश हमारे साथ शेयर करते रहे !
महसूस करता हू