ध्यान अष्टांग योग का एक अंग है जो आगे चलकर समाधि में बदल जाता है । असल में ध्यान योग की पूर्णता अष्टांगयोग की सम्पूर्णता में है । इसलिए यदि आप ध्यान के मार्ग में सफल होना चाहते है तो आपको योग के आठों अंगो को ध्यान में रखकर चलना होगा । आमतौर से देखा जाये तो अष्टांगयोग के तीन अंगों की चर्चा विशेषकर देखी जाती है – आसन, प्राणायाम और ध्यान । जबकि योग की पूर्णता आठों अंगों के अभ्यास में है ।
मित्रों ! योग आत्मा से परमात्मा के मिलन की प्रक्रिया है । इसमें यदि शॉर्टकट लगाया तो सफलता मिलना कठिन है । अतः ऐसे किसी भी व्यक्ति की सलाह ना माने जो केवल ध्यान की विधियाँ बताता है । अधिकांश तो मैंने देखे है, जो इतनी फालतू और वाहियात विधियाँ बताते है जिनका ध्यान से दूर – दूर तक कोई लेना देना नहीं ।
यदि आप सच में ध्यान सीखना चाहते हो तो इस लेख को बहुत ही ध्यान से पढ़े । ध्यान के बारे में कुछ भी जानने से पहले आप अष्टांग योग के आठ अंगों को जरुर देख ले । और उन पर गहरा चिंतन करें । ऐसा नहीं कि यदि आपने नहीं जाना तो आप ध्यान का अभ्यास नहीं कर सकते ! बेशक ! आप अभ्यास कर सकते है किन्तु बिना जाने अभ्यास करने में उतना लाभ नहीं जितना जानकर अभ्यास करने में है ।
यदि आप कभी स्कूल गये हो तो आपको पता होगा । पढ़ने में मजा कब आता है ? पहला – जब हमें subject के बारे में कुछ भी पता ना हो ! या दूसरा – जब हमें subject के बारे में सब कुछ पता हो । जाहिर सी बात है – जब हमें subjectके बारे में सब पता हो । एक बार जब हमें पुरे subject का overview हो जाता है तो पढ़ने में मज़ा भी आता है और मन भी लगता है । ठीक यही बात ध्यान के सम्बन्ध में है । अर्थात अब हमारा पहला काम है, पूर्व तैयारी ! अब हो सकता है आप पूछे कि “ बहुत से धर्म गुरु और बाबा लोग तो बिना किसी पूर्व तैयारी के ध्यान करना सिखाते है, उसका क्या ?”। तो इस सन्दर्भ में मैं कहना चाहूँगा कि “ ध्यान के लिए जो पूर्व तैयारी की आवश्यकता होती है, अधिकांश लोगों के पास उसके लिए समय नहीं होता, इसलिए कोई भी आध्यात्मिक गुरु पहले उसकी शिक्षा देना जरुरी नहीं समझता । और वह कोई ऐसी बात भी नहीं जो पढ़ ली और हो गई तैयारी । “ ध्यान को लोग इसलिए आसानी से बता देते है क्योंकि उससे फायेदा हुआ तो ठीक अन्यथा नुकसान की कोई गुंजाइश नहीं है ”
ध्यान की पूर्व तैयारी | Preliminary for Meditation in Hindi
ध्यान की पूर्व तैयारी करने का मतलब है – Basics clear करना । अष्टांगयोग योग के आठ अंगो के बारे में आपको पता होना चाहिए । अष्टांगयोग में ध्यान का नंबर ७ वे स्थान पर आता है । इससे पहले के छः इस प्रकार है – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । इन सभी के बारे में यदि आप विस्तार से जानना चाहते हो तो इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते है –
अधिक विस्तार से पढ़ना हो तो आप पतंजलि कृत योगदर्शन देख सकते है । इन्हें केवल पढ़ना ही नहीं बल्कि अपने जीवन में अभ्यास भी करना है । यहाँ अध्यात्म सागर पर भी आपको इनसे सम्बंधित लेख समय – समय पर पढ़ने के लिए मिल जायेंगे । पूर्व तैयारी के लिए इतना काफी है ।
आप सोच रहे होंगे कि मैं आपको यह सब क्यों बता रहा हूँ । सीधे ध्यान की बात क्यों नहीं कर रहा ? असल में यदि आप इनका अभ्यास नहीं करेंगे तो आपका मन ध्यान के लिए तैयार नहीं होगा । फिर आप सही विधि बताये जाने पर भी शिकायत करेंगे कि मन नहीं लगता । अतः शिकायत करने से बेहतर है अपने मन को तैयार कर लीजिये और इसके लिए यह सब झंझट उठाना ही पड़ेगा । किन्तु आपका मन पहले से शांत स्थिर और पवित्र है तो आप सीधे विधि पर आ सकते है ।
ध्यान क्या है ? | What is Meditation in Hindi
विधि के बारे में जानने से पहले “ ध्यान क्या है ?” यह जानना अधिक आवश्यक है । अधिकांश भाई तो इतने भोले होते है कि ध्यान कर रहे है किन्तु इससे ज्यादा कुछ नहीं पता कि “ ध्यान कर रहे है ” । एक बार मेरा भाई ध्यान कर रहा था मैंने पूछ लिया – “ क्या कर रहा है ?” बोला – “ ध्यान !”
मैंने पूछा – “ ध्यान क्या होता है !” अब भैयाजी को पता ही नहीं कि ध्यान क्या होता है ?, असल मैं यह केवल एक भाई का सवाल नहीं है । बहुत सारे भाई इसी गलत फहमी में आंखे बंद करके बैठे रहते है कि ध्यान हो रहा है । जबकि कुछ नहीं होता । जब शुरुआत में मैंने ध्यान सिखा था तो मैं भी यही सोचता था कि ध्यान क्या होता है ? सही जवाब नहीं मिला बस अपने साथी की नक़ल करके आंखे बंद करके बैठे रहते थे । कई बार ऐसा भी होता है कि किसी को पता है लेकिन वह explain नहीं कर पाता ।
यम और नियम से मन और संस्कारों की शुद्धता होती है । आसन और प्राणायाम से शरीर और नाड़ीयों की शुद्धता होती है । अब प्रत्याहार से इन्द्रियों को उनके विषयों से हटाया जाता है । जिससे उनमें धारणा की योग्यता आ जाती है । जब धारणा स्थिर हो जाती है तो वही ध्यान कहलाता है, जो आगे चलकर समाधि तक पहुंचा देता है ।
इन तीन पंक्तियों में मैंने पुरे अष्टांगयोग को समझाने का प्रयास किया है । ध्यान, ध्येय अर्थात लक्ष्य ( ईश्वर ) और ध्याता अर्थात ध्यान करने वाला ( आप और मैं ) के बीच का माध्यम है । जब ध्येय पर चित्त को ठहराने का प्रयास किया जाता है तो उसे धारणा कहते है । आरम्भ में यह ध्येय कोई भी मनपसंद वस्तु हो सकती है, जिसके दर्शन से सात्विक विचार आये । जैसे कोई देवी, देवता, नदी, पहाड़, झरना, पुष्प, पुस्तक, सूर्य, चन्द्र शरीर के चक्र आदि । जब एकाग्रता पूर्वक मन लम्बे समय तक उस एक ही वस्तु पर टिका रहे तो उसे ध्यान कहते है । प्रारंभ में यह धारणा अलग – अलग वस्तुओं पर की जा सकती है। जब प्रत्येक वस्तु पर मन टिकने लगे तो समझ लीजिये कि धारणा सिद्ध हो गई ।
धारणा की परिपक्व अवस्था को ही ध्यान कहते है । अर्थात बिना किसी आयास के ही चित्त जब ध्येय पर ठहरने लगे तो वह ध्यान कहलाता है । इस अवस्था में योगी साधक को कई अलौकिक अनुभव होते है । साथ ही आध्यात्मिक सपनों का सिलसिला शुरू हो जाता है ।
जब चित्त अर्थात ध्याता और ध्येय दोनों एकाकार हो जाये उस अवस्था को समाधि कहते है । जो कि अष्टांग योग का अंतिम लक्ष्य है ।
अब आप अच्छे से समझ चुके होंगे कि धारणा – ध्यान और समाधि क्या है ! इस लेख से सम्बंधित कोई शंका हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में हमें सूचित करें । यह लेख आपको उपयोगी लगे तो ख़ुशी – ख़ुशी अपने दोस्तों को शेयर करे ।
।। ॐ शांति विश्वं ।।
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