स्वस्थ रहना अपने आप में एक कला है, जो किसी के बताने से उतना नहीं सिखा जा सकता, जितना कि अपने स्वयं के अनुभव से सिखा जा सकता है । किन्तु फिर भी एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते है, यह हमारा कर्त्तव्य है कि अपने अनुभवों से अपने प्रिय पाठकों को भी लाभान्वित करें ।
दोस्तों ! योग में उन्नति तभी संभव है जब हमारा स्वास्थ्य ठीक हो । स्वास्थ्य के ठीक होने का मतलब है, आध्यात्मिक, मानसिक, बौद्धिक, शारीरिक और सामाजिक स्वास्थ्य । सुविधा की दृष्टि से हम इसे मुख्य रूप से दो भागों में समझने की कोशिश करते है । मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य । जैसाकि आप जानते है, हम यहाँ सम्पूर्ण स्वास्थ्य की बात कर रहे है ।
प्रश्न – स्वस्थ कौन है ?
उत्तर – जिसका मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य ठीक हो, वह स्वस्थ कहलाता है ।
प्रश्न – मानसिक स्वास्थ्य क्या है ?
उत्तर – मानसिक स्वास्थ्य मन की स्थिति पर निर्भर करता है । इसमें मनुष्य का आध्यात्मिक, बौद्धिक और सामाजिक स्वास्थ्य भी शामिल है । जब आत्मा के स्तर पर मनुष्य प्रसन्न हो, मन काम – क्रोध, राग – द्वेष, लोभ – मोह आदि दोषों से दूर हो, मन में जब किसी प्रकार की कोई उलझन या समस्या ना हो, ना ही कोई परेशान करने वाला बौद्धिक तर्क – वितर्क हो तथा साथ ही जब कोई सामाजिक दबाव ना हो, तब मनुष्य मानसिक रूप से स्वस्थ कहा जा सकता है । अर्थात चिंताओं से मुक्त आत्मा ही मानसिक रूप से स्वस्थ कहा जा सकता है ।
प्रश्न – शारीरिक स्वास्थ्य क्या है ?
उत्तर – जब शरीर के सभी आवश्यक अंग अपना कार्य भलीप्रकार कर रहे हो तथा वात, पित्त और कफ़ तीनों संतुलन की अवस्था में हो तब मनुष्य शारीरिक रूप से स्वस्थ कहा जा सकता है ।
वास्तव में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य एक ही गाड़ी के दो पहिये है । एक के बिना दूसरा अधुरा है, इसलिए दोनों का सही और सुचारू रूप से क्रियाशील रहना ही सम्पूर्ण स्वास्थ्य है । कुछ अनुभवी चिकित्सकों का कहना है कि अधिकांश शारीरिक रोगों की जड़े मानसिक रोगों से शुरू होती है । इसलिए कुछ गंभीर व असाध्य रोग केवल दवाओं से ठीक नहीं हो पाते है । उन्हें ठीक करने के लिए मानसिक चिकित्सा ही अनिवार्य रूप से आवश्यक होती है ।
हम बीमार कब और क्यों होते है ?
जैसाकि आप जानते है, हर प्रकार की मशीन को एक निश्चित समय के पश्चात् मरम्मत की आवश्यकता पडती है । मानव शरीर भी ईश्वर की बनाई हुई इस सृष्टि के पंचभौतिक तत्वों द्वारा निर्मित एक स्वसंचालित मशीन है । जिसे समय – समय पर मरम्मत की आवश्यकता पडती है ।
ऐसा नहीं है कि ईश्वर ने हमें बनाया है, बीमारियाँ भी उसी ने बनाई होगी, जैसाकि अधिकांश लोग कहते हुए सुने जाते है । हर चीज़ के दो पहलु होते है । प्रकाश है तो अंधकर भी है, अच्छा है तो बुरा भी है । यह प्रकृति का नियम है । इसमें ईश्वर का कोई हस्तक्षेप नहीं । आप चाहे तो प्रकृति के नियमों का पालन करके आजीवन स्वस्थ रह सकते है । या फिर अपनी मनमर्जी करके रोगी होकर दुःख भोग सकते है । यह आप पर निर्भर है !
जब में छोटा था और जब कभी बीमार होता था तब अक्सर सोचता था कि “ आखिर बीमारी होती क्यों है ?” क्योंकि मुझे सबसे ज्यादा डर डॉक्टर से लगता है और उससे भी ज्यादा उसके इंजेक्शन से । आज भी उस पल के बारे में सोचकर ही मेरा दिल दहल उठता है । फिर मैंने सोचना शुरू किया कि “ ऐसा क्या हो सकता है कि मैं बीमार ही ना होऊ ” बहुत सोचा, बहुत खोजा और आखिर एक दिन मुझे मिल ही गया । वो कहते है ना “ जहाँ चाह वहाँ राह ”
तब से लेकर अब तक मैं उन्हीं नियमों का पालन अपने जीवन में करता आया हूँ, और ख़ुशी की बात है कि मैं अब तक स्वस्थ हूँ तथा सबसे बड़ी ख़ुशी की बात है कि मुझे लगभग ७-८ साल से डॉक्टर के इंजेक्शन के डर से कांपना नहीं पड़ा । यदि आप भी जीवनभर स्वस्थ रहना चाहते है तो निश्चय जानिए आप एकदम सही जगह आये है ।
स्वस्थ रहने के नियमों के बारे में बताने से पहले मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि नियम वही सार्थक होता है जिसे यम के डर से भी ना तोड़ा जाये । अक्सर होता यह है कि हम कोई नियम लेते है फिर थोड़े दिन बाद डिले पड़ जाते है । कभी परिस्थितियों के साथ समझौता कर लेते है तो कभी अपनी कमजोरियों को खुली छुट दे देते है । हे प्रिय मित्र ! यदि आप ऐसा करेंगे तो फिर नियम आपको किस तरह फायेदा पहुंचाएगा । ऐसा मत कीजिये ! जो नियम लिया है उसे तटस्थ होकर तथा पुरे संकल्प के साथ पालन कीजिये ।
हाँ यह अलग बात से कि कभी किसी मज़बूरी के कारण अपने नियम के साथ compromise करना पड़े, किन्तु यथाशीघ्र उसमें सुधार कर लेना चाहिए । यदि जीवन के कुछ दैनिक क्रियाकलापों में बदलाव करके हम आजीवन स्वस्थ रह सके तो यह बदलाव हमें कर लेना चाहिए ।
चलिए तो अब हम बात करते है नियमों के बारे में, वैसे देखा जाये तो नियम बहुत ही सामान्य है किन्तु उनके लाभ बड़े ही असामान्य है । हो सकता है आपको लगे कि इन छोटे से नियमों से क्या होगा ? तो विश्वास रखिये, उन्हीं छोटे से नियमों से बहुत कुछ होगा और आप पूर्ण रूप से स्वस्थ रहेंगे ।
आजीवन स्वस्थ रहने के दस नियम
- प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठना – मैंने देखा है कि मेरे अधिकांश मित्र सूर्योदय के एक से डेढ़ घंटा बाद उठते है जबकि उन्हें सूर्योदय से एक से डेढ़ घंटा पहले उठना चाहिए । हो सकता है आप भी देर उठते हो । यदि आप प्रातःकाल जल्दी उठते है तो बहुत बड़िया ! आप स्वस्थ रहने के पहले नियम का पालन करते है । यदि आप देर से उठते है तो फिर आपको जान लेना चाहिए कि आप कितने नुकसान में है ।
- उषापान – प्रातःकाल उठने के बाद सबसे पहला काम है उषापान करना । उषापान अर्थात पानी पीना । उषापान का तरीका भी ऋतु के अनुसार बदलता रहता है । यदि गर्मी के दिन है तो आप रात का रखा हुआ शीतल जल या मटके का पानी पी सकते है । यदि सर्दी के दिन है तो फिर थोड़ा गुनगुना पानी पीना बेहतर है । यदि किसी कारण से ठंडा पानी पीना पड़े तो पहले उसे थोड़ा देर तक मुंह में रखे, घुमाये जिससे उसका तापमान शरीर के तापमान के बराबर हो जाये फिर पिए । उषापान के तुरंत शौच के लिए जाये ।
- व्यायाम अथवा टहलना – पेट साफ होने के पश्चात शरीर में एक नई स्फूर्ति आ जाती है । इसलिए युवाओ को सुबह – सुबह व्यायाम करना चाहिए तथा बुजुर्गो को टहलना चाहिए । सुबह – सुबह व्यायाम करने से शरीर में पसीना होता है जिससे शरीर का सारा मेल निकल जाता है ।
- स्नान – व्यायाम के बाद स्नान की बारी आती है । किन्तु व्यायाम के तुरंत बाद स्नान कदापि न करें । थोड़ा समय शरीर को सामान्य तापमान तक आने दे उसके पश्चात स्नान किया जा सकता है । इसके लिए आप व्यायाम के बाद 15- 20 मिनट का शवासन कर सकते है ।
- ध्यानयोग व प्राणायाम – स्नान के बाद आपको योग का अभ्यास करना चाहिए । योग हमें ईश्वर से जोड़ता है, हमारे अस्तित्व से जोड़ता है । योग – प्राणायाम से मन की एकाग्रता बढ़ती है और आत्मशक्ति विकसित होती है ।
- स्वाध्याय – स्वाध्याय एक ऐसा टोनिक है जो हमें सभी प्रकार के बुरे विचारों से बचाता है । जिस तरह रोज सुबह हम अपने घर में झाड़ू लगाते है, उसी तरह हमें प्रतिदिन हमें अपने मन की भी सफाई करना चाहिए । इसके लिए थोड़ा समय निकाले और चिंतन और मनन करे कि आज पूरा दिन किन – किन दुर्गुणों का दमन करना है । प्रतिदिन कम से कम एक पेज किसी सदग्रंथ का जरुर पढ़े । जैसे गीता, वेद, रामायण या अन्य कोई धार्मिक ग्रन्थ आदि । स्वाध्याय ध्यानयोग और पूजा उपासना के बाद किया जा सकता है । इसी के दौरान अपने दिनभर की रुपरेखा बना ले ।
- दिनभर शांत रहे – इतना कार्य व्यवस्थित रूप से करने के पश्चात यह कहने की जरूरत नही । क्योंकि आप स्वयं महसूस करेंगे कि आपका दिन कितना शांति से बीतता है ! किन्तु यदि किसी कारणवश कोई उद्वेग हो तो शांत रहे तथा सबसे प्रेम से बात करे । इससे आप महसूस करेंगे कि दुनिया कितनी खुबसूरत है । सब आपको कितना चाहते है ।
- भोजन – सुबह का भोजन 9 – 10 बजे बाद जितना जल्दी हो सके अच्छा है । क्योंकि सूर्योदय के साथ पित्त की वृद्धि होती है और कफ़ की कमी होना शुरू हो जाती है । प्रातःकाल से 9 – 10 बजे तक कफ विशेष रूप से प्रधान रहता है जो भोजन का रस बनाने में सहायक होता है । दोपहर का भोजन केवल बहुत अधिक शारीरिक परिश्रम करने वालों को ही करना चाहिए । यदि भूख लगे तो कोई तरल पदार्थ जैसे मट्ठा, छांछ, दही आदि लिया जा सकता है । सुबह नाश्ते के बजाय सीधा भोजन करना बेहतर है किन्तु फिर भी कोई नाश्ता ही करना चाहे तो उनके लिए फलों का रस उत्तम है । रात्रि का भोजन सूर्यास्त से पूर्व हो सके तो बेहतर है । किन्तु यदि ऐसा ना हो सके तो रात्रि का भोजन 8 बजे से पहले अर्थात सोने से दो घंटा पूर्व हो जाना चाहिए ।
- शयन – सोने के लिए तो मेरा हमेशा से एक ही सूत्र रहा है “ दस याने बस ” । आज के समय में रात को देर तक जागना तो जैसे ट्रेंड हो गया है । जिसे देखो वो रात उल्लू बन बैठा है । दिनभर Job आदि में लगे रहते है और रात को मूवीज और सोशल साइट्स पर घूमना, एक यही काम रह जाता है । किन्तु यह रात्रि का मज़ा आपके स्वास्थ्य के लिए बीमारी की सजा बना सकता है । याद रखिये “ रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना ” यही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है । क्योंकि मनुष्य के सारे क्रियाकलाप सोने के साथ खत्म और उठने के साथ शुरू होते है । इसलिए जीवन के इन दो चरम बिन्दुओं का व्यवस्थित होना अनिवार्य रूप से आवश्यक है । आपने भी देखा होगा, जो देर रात तक जागते है सुबह उठने पर उनके चेहरे कुत्ते की तरह हो जाते है । आपका हो ना हो जिस दिन मुझे देर रात तक जागना पढ़ जाये, अगला दिन मेरा सबसे बेकार गुजरता है ।
- प्रार्थना – महात्मा गाँधी कहते है – “ प्रार्थना आत्मा का भोजन है ” । श्री राम शर्मा आचार्य कहते है – “ प्रार्थना अपने मन को समझाना है, अपने आपे को बुहारना है, प्रार्थना अपने आप से की गई गुहार है, आत्मा की करुण पुकार है ।” ईश्वर ने हमें इतना अनमोल जीवन दिया है इसके लिए हमें ईश्वर का शुक्रिया करना चाहिए । जीवन के हर क्षण में हमें ईश्वर की कृपा अनुभव करना चाहिए । सुबह उठते ही ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए कि “ हे परमपिता परमात्मा ! आपने जो यह दिन दिया इसे मैं नये जन्म की तरह जिऊंगा । जितना हो सकेगा उतना अच्छे से अच्छा इसका उपयोग करूंगा ।” और रात को सोते समय ईश्वर शरण में जाने का भाव लेकर सोना चाहिए । जो प्रतिदिन उपासना – साधना नही करते है उन्हें इतना तो अवश्य ही करना चाहिए । जिन्हें उपासना साधना में रूचि हो वह श्री राम शर्मा आचार्य द्वारा बताये गये प्रज्ञायोग के अनुसार कर सकते है । प्रज्ञायोग वेद विहित और सरल तथा अनुभाविक प्रयोग है । प्रत्येक अध्यात्म के जिज्ञासु को प्रज्ञायोग के अनुसार अपनी उपासना करना चाहिए ।
इन दस नियम के अलावा भी कई नियम है जो स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है किन्तु यह दस नियम मैंने अपने अनुभव के आधार पर लिखे है । जिन्हें मैं पिछले कई सालों से पालन करता आया हूँ । इस प्रकार के जीवन सूत्रों से सम्बंधित आपका अपना कोई अनुभव हो तो हमारे साथ शेयर करें । आपको यह पोस्ट उपयोगी लगे तो अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें ।