स्वाध्याय संग्रह

राजा भोज का स्वप्न और सत्य का दिग्दर्शन

राजा भोज उनके समय के बड़े ही साहसी, प्रतापी और विद्वान राजा थे । कहा जाता है कि राजा भोज ने अपने समय में सभी ग्रामों और नगरो में मंदिरों का निर्माण करवाया था । राजा भोज प्रजा की सुख सुविधाओं का बड़ा ही खयाल रखते थे । इतिहास से यह भी विदित होता है […]

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शिष्य की चंचलता और मृत्यु का सत्य

एक बार की बात है कि एक जंगल में एक महात्मा रहते थे । महात्माजी सुबह शाम अपने शिष्यों को पढ़ाते – लिखाते और बाकि समय आश्रम के कार्यों व अपने योगाभ्यास में व्यस्त रहते थे । खाने के लिए जंगल से कंदमूल शिष्य ले आते और नदी से पानी की व्यवस्था जुटा लेते ।

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पूण्य का तराजू | एक शिक्षाप्रद कहानी

कुशीनगर का राजा लोगों के पूण्य खरीदने के लिए प्रसिद्ध था । धर्मराज ने उसकी धर्मपरायणता और सत्य निष्ठा से प्रभावित होकर उसे एक पूण्य का तराजू दिया था, जिसके एक पलड़े को छूकर जो कोई भी अपने पूण्य कर्मों का स्मरण करता, दुसरे पलड़े में दैवीशक्ति से उस पूण्य कर्म के बराबर स्वर्ण मुद्राएँ

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अविचल धैर्य की परीक्षा | तपस्वी और देवर्षि नारद की कहानी

एक बार नारदजी पृथ्वीलोक पर घुमने आये । एक जंगल से गुजर रहे थे कि रास्ते में एक तपस्वी बैठा तपस्या कर रहा था । उसने नारदजी को देखा तो साष्टांग दण्डवत् किया और पूछा – “ महर्षि कहाँ से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो ?”   नारदजी मुस्कुराते हुए बोले –

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चोर को ईश्वर का दर्शन कैसे ?

किसी गाँव में दौलतराम नाम का चोर रहता था । लेकिन दौलत के नाम पर उसके पास फूटी कौड़ी नहीं थी । काम – धंधे के लिए बहुत हाथ – पैर मारे लेकिन कहीं से कोई जुगाड़ नहीं हो पाया । जब कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया तो उसने चोरी कर – करके अपना घर

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कर्म में अकर्म कैसे | विश्वामित्र और वशिष्ठ की कहानी

वैदिककाल की बात है । सप्त ऋषियों में से एक ऋषि हुए है महर्षि वशिष्ठ । महर्षि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु और श्री राम के आचार्य थे ।   उन दिनों महर्षि वशिष्ठ का आश्रम नदी के तट के सुरम्य वातावरण में था । महर्षि वशिष्ठ अपनी पत्नी अरुन्धती के साथ गृहस्थ जीवन की

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आत्मज्ञान का स्वाद | दूध की मिठाई की कहानी

एक बार एक पंडित जी हीरापुर नाम के गाँव में शादी करवाने जा रहे थे । रास्ता लम्बा था और पंडित जी के पास कोई साधन भी नहीं था । पंडित जी बूढ़े भी हो चले थे, इसलिए जगह – जगह पेड़ों की शीतल छाव में विश्राम करते हुए जा रहे थे ।   पंडित

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अर्जुन की निष्ठा | महाभारत की कहानी

महाभारत का एक प्रसंग है । तब पांडव अज्ञातवास काट रहे थे । पृथापुत्र अर्जुन का नियम था कि वह प्रतिदिन भगवान शिव का पूजन करके ही भोजन ग्रहण करते थे । इसके साथ ही सभी पांडव भाइयों का नियम था कि एक साथ ही भोजन करेंगे । एक दिन भोजन का समय हो चला

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डाकू रत्नाकर और देवर्षि नारद की कहानी

एक पौराणिक कथानक है । एक समय की बात है रत्नाकर नाम का एक डाकू (दस्यु) हुआ करता था । अपने परिवार के भरण पोषण के लिए रत्नाकर चोरी, लूटपाट और राहगीरों की हत्या भी करता था । एक बार एक श्रेष्ठी जंगल के रास्ते से पालकी में बैठकर जा रहा था । घने जंगलों

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मृत्यु से भय क्यों – राजा परीक्षित की कथा

सातवें दिन मरने वाले राजा परीक्षित को शुकदेवजी श्रीमद्भागवत सुना रहे थे । छः दिन हो चुके थे और अगले ही दिन राजा परीक्षित को तक्षक नाग डसने वाला था । छः दिन तक श्रीमद्भागवत सुनने के बाद भी राजा का शोक और भय दूर नहीं हुआ । राजा का विचलित मन देख शुकदेवजी ने

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