ईश्वर की मदद कैसे करें

ईश्वर की मदद ! क्या यह संभव है ? आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि कितनी अजीब बात है “ जिससे सभी मदद मांगते है, जो सब पर कृपा बरसाता है । भला उसे किसी की मदद की क्या जरुरत हो सकती है ? और हम उसकी मदद कैसे कर सकते है ?”  जी हाँ ! ईश्वर को भी मदद की जरुरत होती है और हम चाहे तो ईश्वर की मदद कर सकते है । किन्तु कैसे ?

जरा विचार कीजिये ! भगवान राम ईश्वर के अंशावतार थे किन्तु उन्हें भी रावण का तख्ता पलट करने के लिए भालू और बंदरो की सहायता लेनी पढ़ी । भगवान श्री कृष्ण तक को कोरवों के पापी साम्राज्य का अंत करने के लिए पाण्डवों से मिलकर युद्ध के नगाड़े बजवाने पड़े । यदि इतिहास को दूर – दूर तक देखा जाये तो हमें ज्ञात होता है कि हमेशा ईश्वर ( धर्म ) के अनुनायियों ने ईश्वर विरोधी तत्वों ( अधर्म ) से लोहा लिया है ।
 
हिलमिलकर रहने और एक दुसरे की सेवा सहायता करने में कितना आनंद है ! कितनी प्रसन्नता है ! यदि यह आप महसूस कर सके तो आप स्वयं समझ सकेंगे कि ईश्वर ने इस सृष्टि को कितना सुन्दर बनाया है । हमारे शास्त्र तो यहाँ तक कहते है कि “ परहित सरिस धर्मं नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई – अर्थात दूसरों की सेवा के समान कोई धर्मं नही और हिंसा से बढ़कर कोई पाप नहीं ” हमारे सभी महापुरुषों का सम्पूर्ण जीवन इसी सत्य को समझाने में बीत गया ।
 
यदि आप भी ईश्वर से प्रेम करते है, उनकी व्यवस्था में विश्वास रखते है, उनके प्रति कृतज्ञ है तो ईश्वर के इस सुन्दर उपवन रूपी संसार को समुन्नत बनाने में जितना योगदान दे सकते है ! दीजिये । इसकी शुरुआत स्वयं के चरित्रवान, सद्गुणी, शालीन और कर्तव्यपरायण बनने से होती है । पूज्य गुरुदेव पंडित श्री राम शर्मा आचार्य कहते है “ अपना सुधार संसार की सबसे बढ़ी सेवा है ”
 
यदि आप भी आनंद का जीवन व्यतीत करना चाहते है तो आज ही संकल्प ले लीजिये कि “ आजसे मेरा मन – वचन – कर्म ईश्वर को समर्पित है । मैं हमेशा ईश्वर के इस विश्व उद्यान को सुसंस्कृत और समुन्नत बनाने के प्रयास में संलग्न रहूँगा । हमेशा ईश्वर की दी गई संपदाओं का उपयोग देश, धर्म, समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए करूंगा । हे प्रभु ! मुझे शक्ति दो, बल दो, बुद्धि दो जिससे मैं आपके इस शुभ कार्य को सफल करके अपने जीवन को सार्थक कर सकूं ।”
 
यहाँ हो सकता है कुछ प्रिय बंधुवर यह आपत्ति करें कि जब सब ईश्वर के लिए करेंगे तो हमारा और हमारे परिवार का क्या होगा ? तो ऐसे मित्रों के लिए हमारा कहना है कि “ हे आत्मन ! तुम और तुम्हारा परिवार ईश्वर के इस विश्व उद्यान से अलग नहीं है । अतः जो कुछ भी तुम अपने तथा अपने परिवार के लिए करते हो प्रकारांतर से वह ईश्वर के लिए ही है ।”
 
समस्या तो तब होती है जब मनुष्य स्वार्थवश केवल अपने बारे में ही सोचना शुरू कर देता है । इसलिए हमें अपने समय का विभाजन ऐसे करना चाहिए जिसमें ईश्वर के कार्य के लिए भी स्थान रहे । उसके लिए हमें अपने मन का, धन का, बुद्धि का और समय का एक अंश ईश्वर के कार्य ( संसार की सेवा ) के लिए निर्धारित कर देना चाहिए । यह कार्य आप अपनी सुविधानुसार कभी भी कहीं से भी कर सकते है । यदि आप भी ईश्वर की मदद के लिए कटिबद्ध है तो निम्नलिखित सूचि से अपनी सुविधानुसार और समयानुसार जितने हो सके उतने कार्य करें –
 
१.     सबसे पहले तो अपना सुधार कीजिये । आपके मन – वचन – कर्म पवित्र और शुद्ध होने चाहिए । निश्चित कीजिये कि आप धर्मं के लक्षणों को धारण करते है अथवा नहीं । यदि किसी कारणवश आप धर्मं के विपरीत आचरण कर जाते है तो हाथ जोड़कर ईश्वर से क्षमा याचना कीजिये और फिर नहीं दोहराने का संकल्प लीजिये ।
 
२.     यदि आप शारीरिक श्रम से ईश्वर की सेवा करना चाहते है तो प्रतिदिन योगादि अभ्यास करके अपने शरीर को स्वस्थ रखिये । क्योंकि जब आप बीमार पड़ते है तो ना केवल अपनी हानि करते है बल्कि अपने निकटवर्ती क्षेत्र की भी महती हानि कर देते है । इसी के साथ जो सेवा आपसे होने वाली थी वह भी नहीं हो पाती अतः हमेशा स्वास्थ्य के नियमों का पालन कीजिये तथा जब कभी, जहाँ कहीं किसी को आवश्यकता पढ़े उनकी मदद कीजिये ।
 
३.     यदि आपके पास धन है और आप ईश्वर की मदद अथवा दान – पुन्य करना चाहते है तो कृपया पात्र को ही दान दे, कुपात्र को नहीं । कुपात्र को दिया गया दान दाता और गृहीता दोनों को डुबोने वाला होता है । आप अपने धन से गरीब व जरुरतमंद बच्चों के लिए पाठशाला और ज्ञानमंदिर बनवा सकते है । उनके भोजन और चिकित्सा आदि की व्यवस्था कर सकते है । यह केवल एक उदहारण है, इस प्रकार के आप अपनी समझ से कई कार्य कर सकते है ।
 
४.     यदि आप बुद्धिमान है, ज्ञानवान है तो आप अपने संपर्क क्षेत्र को सचेत कर सकते है । उनकी विभिन्न समस्याओं पर अपने ज्ञान से समाधान प्रस्तुत कर सकते है । जैसे मैं अध्यात्म में रूचि रखता हूँ अतः इसी क्षेत्र में लिखकर अपने ज्ञान को बढाता हूँ तथा अपने पाठको को भी इस कल्याणकारी पथ पर चलने के लिए प्रोत्साहित व प्रेरित करता हूँ ।
 
५.     यदि आप स्वास्थ्य से सम्बंधित अच्छा ज्ञान रखते है तो अपने आस – पास के बीमार और पीड़ितों की सेवा सुश्रुषा कर सकते है । सामान्यतया लोग अप्राकृतिक जीवन शैली के कारण बीमार होते है अतः आप उन्हें प्राकृतिक जीवनशैली के लाभ बताकर और सिखा कर ईश्वर के कार्य में योगदान दे सकते है ।
 
इस प्रकार कई सारे कार्य है जो आप कर सकते है । अपनी योग्यता और रूचि के अनुसार चुन लीजिये और जीवन का आनंद लीजिये । इस लेख से सम्बंधित कोई सलाह हो ? कोई शंका हो ? तो नीचे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है । यदि लेख आपको पसंद आया हो तो अपने अधिक – अधिक से मित्रों को जरुर शेयर करें ।
 
।। ॐ शान्ति विश्वं।।

प्रणाम !!!

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