कभी कभी अनजाने में हमसें ऐसी गलतियाँ हो जाती है, जिन्हें लाख कोशिशों के बावजूद भी सुधारा नहीं जा सकता । ऐसा ही कुछ अंगराज कर्ण के साथ हुआ था । अंगराज कर्ण ने अपने जीवन में दो गलतियाँ ऐसी की थी । जिसका परिणाम अंत में उन्हें मृत्यु के रूप में मिला ।
कर्ण के रथ का पहिया जमीन में क्यों धसा
द्वापरयुग की बात है । सूर्य पुत्र कर्ण एक बार शिकार के लिए जंगल में भटक रहे थे । प्राचीनकाल के राजा सामान्यतया हिंसक प्राणियों का शिकार करते थे । ताकि वह रात्रि के समय नगर में घुसकर उत्पात न मचा सके । कर्ण भी इसी उद्देश्य से जंगल में हिंसक जानवरों को खोज रहे थे ।
तभी अचानक कर्ण ने झाड़ियों के पीछे किसी हिंसक जानवर के होने की आशंका व्यक्त की । कर्ण ने बिना कुछ सोचे – समझे ही बाण चला दिया । दुर्योग से वहाँ एक ब्राह्मण की गाय घास चर रही थी । बाण लगते ही कुछ ही समय में गाय के प्राण – पखेरू उड़ गये ।
जब यह दृश्य ब्राह्मण ने देखा तो वह रोष से भर गया । कर्ण के इस कृत्य पर ब्राह्मण को बहुत क्रोध आया । ब्राह्मण अपनी गाय के पास बैठकर रोने लगा ।
ब्राह्मण और गाय की दुर्दशा देख कर्ण भी दुखी हो गया । वह रोते हुए ब्राह्मण को धीरज बंधाते हुए सांत्वना देने लगा और अपने इस कृत्य के लिए क्षमा याचना करने लगा । ब्राह्मण ने कर्ण को दूर घकेलते हुए कहा ।
ब्राह्मण बोला – “ अपनी शक्तियों के मद में चूर हत्यारे, क्या तुझे इतना भी याद नहीं कि बिना लक्ष्य का निश्चय हुए तीर नहीं चलाना चाहिए । मेरी निसहाय गाय की हत्या करके तू मुझसे क्षमा याचना करता है, मुर्ख ! क्या तू मेरी गाय को जीवित कर सकता है । मेरे घर बंधा इस गाय का बछड़ा जो भूख से व्याकुल होकर अपनी माँ को पुकार रहा है । क्या उसकी माँ को तू जीवित कर सकता है ?”
दुखी होकर कर्ण ने अपनी असमर्थता व्यक्त की ।
तब ब्राह्मण ने रोष से भरकर अपना कमण्डलु उठाया और कर्ण को अपनी इस गलती के लिए शाप देते हुए बोला – “ अपनी शक्तियों के मद में चूर कर्ण ! जिस तरह तूने इस रथ पर सवार होकर मेरी निसहाय गाय की हत्या की है । उसी तरह एक दिन जब तू अपने जीवन का सबसे बड़ा युद्ध लड़ रहा होगा । तेरे रथ का पहिया धरती में समां जायेगा और तू भय से व्याकुल हुआ निसहाय मरेगा ।”
उस ब्राह्मण के शाप के कारण ही भविष्य में जब महाभारत का युद्ध हुआ और कर्ण कौरवों की ओर से लड़ रहा था । तब एक समय ऐसा आया जब परशुराम के शाप के कारण कर्ण अपनी सभी विद्याएँ भूल गया और उस ब्राह्मण के शाप के कारण कर्ण के रथ का पहिया धरती में धंस गया । इस अवसर का लाभ उठाकर श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया । इस तरह उस ब्राह्मण का शाप सत्य हुआ ।
परशुरामजी ने क्यों दिया कर्ण को शाप ?
एक समय की बात है । कर्ण भृगुश्रेष्ठ परशुरामजी से धनुर्वेद की शिक्षा लेने गया । प्रेम, संयम और गुरुसेवा से कर्ण ने परशुरामजी को संतुष्ट कर दिया । तब परशुरामजी ने कर्ण को प्रयोग, विधि सहित सम्पूर्ण ब्रह्मास्त्र की विधिपूर्वक शिक्षा दी । ब्रह्मास्त्र की शिक्षा प्राप्त करके कर्ण प्रसन्नतापूर्वक परशुरामजी के आश्रम में धनुर्वेद का अभ्यास करने लगा ।
कुछ दिनों बाद एक दिन परशुरामजी कर्ण के साथ आश्रम में टहल रहे थे । उपवास के कारण उनकी देह दुर्बल हो चुकी थी । अतः कुछ ही समय में उन्हें थकावट होने लगी । इसलिए एक पेड़ के नीचे बैठ वह कर्ण की गोद में सिर रखकर सो गये ।
तभी संयोग से वहाँ लार और मांस का सेवन करने वाला एक कीड़ा आया और कर्ण के ऊपर चढ़ने लगा । गुरुदेव उठ जायेंगे इस डर से कर्ण ने उसे नहीं हटाया । वह कीड़ा आगे बढ़ा और कर्ण की जांघ मर काटने लगा । असहनीय वेदना होने के बावजूद भी कर्ण सहन करता रहा । आखिरकार उसकी जांघ से रक्त निकल आया । जब रक्त परशुरामजी को लगा तो वह तुरंत उठ खड़े हुए और कर्ण से रक्त निकलने का कारण पूछने लगे ।
जब कर्ण ने उस कीड़े के काटने की बात बताई । वह अलर्क नामक कीड़ा था, जो लार और मांस खाता था । जब परशुरामजी ने कर्ण को काटने की बात सुनी तो वह क्रोध से भरकर बोले – “ रे मुर्ख ! ऐसा भयंकर दर्द ब्राह्मण कदापि नहीं सह सकता । तेरा धैर्य तो क्षत्रिय सम है । सच – सच बता तू कौन है ?
तब कर्ण बोला – “ गुरुदेव ! मैं ब्राह्मण नहीं हूँ । मैंने आपसे ब्रह्मास्त्र की शिक्षा प्राप्त करने के लिए अपना गोत्र भार्गव बताया था । मुझे क्षमा कर दीजिये ।”
तब क्रोध से भरकर परशुरामजी बोले – “ रे दुष्ट ! ब्रह्मास्त्र के लोभ से जो मिथ्याचार करके कपटपूर्ण व्यवहार से तूने मुझसे जो शिक्षा ग्रहण की है । तेरे जीवन से सबसे महत्वपूर्ण युद्ध में उसे तू भूल जायेगा । इस ब्रह्मास्त्र का ज्ञान तुझे केवल तब तक ही रहेगा जब तक कि तू अपने समान योद्धा के सामने न आये या तेरा मृत्यु समय निकट न आये । जो ब्राह्मण नहीं, उसके ह्रदय में ब्रह्मास्त्र कभी स्थिर नहीं रह सकता ।”
परशुरामजी के इसी शाप के कारण अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण युद्ध के समय कर्ण अपनी सारी विद्याएँ भूल गया था और अंततः मृत्यु को प्राप्त हुआ ।
शिक्षा – कर्ण के जीवन की यही दो बड़ी गलतियाँ थी । जिनके कारण उसे एक महान योद्धा होते हुए भी रणभूमि में मरना पड़ा । हमें भी अपने जीवन में उन गलतियों को करने से बचना चाहिए, जो हमारे जीवन को नष्ट कर सकती है ।
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