भारत में रक्षाबंधन की शुरुआत पौराणिक काल से मानी जाती है । विशेषरूप से भारत में रक्षाबंधन को हिन्दू और जैन अनुयायी मनाते है । रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा ( इस साल 26 अगस्त रविवार ) को मनाया जाता है, इसलिए इसे श्रावणी, सलूनो और राखी भी कहते है । वैसे तो श्रावण मास का अपना ही धार्मिक महत्त्व है उसमें भी रक्षाबंधन का आना सोने पर सुहागे की तरह है ।
रक्षाबंधन पर सभी बहने अपने भाइयों को एक रक्षासूत्र बांधती है, जिसे राखी कहते है । इसी के साथ भाई बहन की रक्षा का संकल्प लेता है । एक तरह से रक्षा बंधन भाई को बहन के प्रति अपने कर्तव्य को याद दिलाने का पर्व है । इसलिए रक्षाबन्धन का त्यौहार भाई बहन के विशुद्ध प्रेम को समर्पित है । इसलिए इस पर्व पर रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है ।
रक्षाबंधन पर राखियाँ अर्थात रक्षासूत्र व्यक्ति और स्थान के आधार पर कई प्रकार की होती है । सामान्यतया सस्ती राखियाँ कच्चे सूत से लेकर रंगीन धागे से लेकर रेशमी धागे तक की होती है । सोने और चाँदी की राखियाँ आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग द्वारा उपयोग की जाती है । राखी चाहे कोई भी हो, महत्त्व उसके पीछे छुपी भावना और श्रृद्धा का है ।
भारत भावनाओं का देश है । यहाँ हर छोटी बड़ी परम्परा और त्यौहार के पीछे विशेष भावनाएं जुडी हुई है । इस बात की गहराई को समझने की कोशिश की जाये तो – “ भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ न केवल भाई बहन में रक्षाबंधन होता है, बल्कि रक्षाबंधन से भाई बहिन भी होते है ।” अर्थात किसी पुरुष द्वारा किसी स्त्री को रक्षासूत्र अर्थात राखी बांध देने मात्र से उनमें भाई बहन का अटूट रिश्ता कायम हो जाता है । यह चमत्कार केवल भारत में हो सकता है और कहीं नहीं ।
रक्षाबंधन न केवल बहन भाई में मनाया जाता है, बल्कि भाई – भाई और वरिष्ठजनों के साथ भी राखी बांधकर मनाया जाता है । जिनके भाई नहीं होता वह बेटियां अपने पिता को राखी बांधकर भी रक्षाबंधन मनाती है । सरकारी कर्मचारी अथवा किसी व्यवसाय के कर्मचारी भी आपस में राखी बांधकर रक्षाबंधन मनाते है । राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भी आपस में राखी बांधकर परस्पर भाईचारे के भाव को व्यक्त करते है । इस तरह देखा जाये तो रक्षाबंधन हमारे समाज के हर स्तर पर मनाया जाता है । भारत में रक्षाबंधन की तरह ही हर त्यौहार को इतनी शिद्दत से मनाया जाता है कि भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है ।
रक्षाबंधन कैसे मनाते है ?
भारत में प्रत्येक त्यौहार को मनाने की एक विशेष रीति और रस्म होती है । उसी तरह रक्षाबंधन को मनाने का भी एक विशेष क्रम है । रक्षाबंधन (श्रावण पूर्णिमा) के दिन स्त्रियां प्रातःकाल स्नानादि से निवृत होकर पूजा की थाली सजाती है । जिसमें हल्दी, रोली, चावल, दीपक, मिठाई, नारियल, जल और कोई भी धन (सामान्यतया पैसे) होता है । कहीं – कहीं राखी के दिन बहने अपने भाई के दीर्घायु होने के लिए उपवास भी रखती है ।
शुभ मुहूर्त देखकर जब भाई तैयार होकर घर आते है तो बहने उनकी दायीं कलाई पर राखी बांधकर, तिलक लगाकर उनकी आरती उतरती है । इसके पश्चात् भाई भी अपनी बहन को कपड़े और धन देता है । फिर दोनों एक दुसरे को मिठाई खिलाते है । इस दिन भाई को राखी बांधने के बाद ही बहने भोजन करती है । अन्य त्योहारों की तरह रक्षाबंधन के दिन भी विशेष पकवान बनाये जाते है ।
रक्षाबंधन के दिन न केवल भाई को राखी बांधी जाती है बल्कि निकटवर्ती सभी देवी – देवताओं को भी नारियल और राखियाँ चढाई जाती है । इस तरह देवताओं के प्रति को रक्षासूत्र बांधकर अपने प्रेम को व्यक्त किया जाता है ।
रक्षाबंधन का धार्मिक महत्त्व
उत्तराँचल में रक्षाबंधन को श्रावणी कहा जाता है । इसी दिन ब्राह्मणों का उपनयन संस्कार होता है । अर्थात जिसे जनेऊ धारण करना हो वह इस दिन कर सकता है । इस दिन सभी द्विज नए यज्ञोपवीत को धारण करते है ।
अमरनाथ की प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा भी गुरु पूर्णिमा से शुरू होकर श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन समाप्त होती है । इसी दिन हिम शिवलिंग अपने पूर्ण आकार को प्राप्त करता है । इसलिए इस पावन पर्व पर वहाँ हर वर्ष मेले का आयोजन होता है ।
महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा या श्रावणी कहा जाता है । श्रावणी के दिन सभी लोग नदी या समुद्र के किनारे स्नान करके जनेऊ बदलते है तथा जल के स्वामी वरुण को नारियल अर्पित करते है । इसलिए इस दिन मुंबई के समुन्द्र तट पर नारियल ही नारियल दिखाई देते है ।
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