भारत में रक्षाबंधन की शुरुआत कब हुई, इसकी कोई निश्चित तिथि तो पता नहीं लेकिन पौराणिक कथाओं के अनुसार रक्षाबंधन का आरम्भ सतयुग से माना जाता है ।
देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर की रक्षाबंधन की शुरुआत
पौराणिक काल में बहुत बड़े दानवीर तथा भगवान विष्णु के परमभक्त एक राजा हुए थे – राजा बलि । एक बार राजा बलि ने एक यज्ञ किया जिसमें वह सभी ब्राह्मणों को दान – दक्षिणा दे रहे थे । तभी भगवान विष्णु भी उनकी परीक्षा लेने के लिए वामन अवतार लेकर उनके द्वार पर आ खड़े हुए ।
राजा बलि ने ब्राह्मण देवता से मांगने के लिए बोला तो वामन भगवान ने तीन पग भूमि मांगी । राजा बलि को अचरज हुआ लेकिन उस समय पूरी पृथ्वी पर राजा बलि का राज्य था । उसने ब्राह्मण देवता से कहा – “ ले लीजिये ! आपको जहाँ चाहिए, तीन पग भूमि ।”
किन्तु वो कोई ब्राह्मण नहीं भगवान के अवतार थे । वामन भगवान ने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया । यह देखकर राजा बलि समझ गये कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं, बल्कि साक्षात् ईश्वर का अवतार है । तीसरे पग के लिए उन्होंने अपना सिर आगे कर दिया ।
तब भगवान राजा बलि से प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को बोला तो राजा बलि ने भगवान को ही अपने साथ पाताल में रहने की विनती की । आखिर भगवान को राजा बलि की बात माननी पड़ी और वैकुण्ठ छोड़कर राजा बलि के साथ पाताल चले गये ।
इधर प्रभु को आया न देख लक्ष्मीजी चिंतित हुई । उन्होंने खोजबीन की तो उन्हें पता चला कि भगवान अपने भक्त राजा बलि के यहाँ पाताल में रह रहे है । लक्ष्मीजी प्रभु की विवशता को जानती थी । तब नारदजी ने उन्हें एक युक्ति बताई । वह एक गरीब स्त्री के रूप में राजा बलि के द्वार पहुंची और रक्षासूत्र बांध दिया । राखी बांधने पर भाई बहन को कुछ देता है । तो राजा बलि ने बहन से कहा – “ बोलो मैं तुम्हे क्या दू ?”
तब लक्ष्मीजी अपने असली रूप में आई और बोली – “ हे भाई ! आप तो साक्षात् भगवान को अपने पास लेके बैठे है । आप मेरे प्रभु मुझे लौटा दीजिये, मैं उन्हें ही लेने आई हूँ ।” तब राजा बलि ने भगवान को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया ।
प्रभु को जाते समय जब राजा बलि दुखी हुआ तो प्रभु ने राजा बलि को वरदान दिया कि “ मैं हर वर्ष चार महीने पाताल में निवास करने आऊंगा ।” यह चार महीने ही चातुर्मास कहलाते है, जो आषाढ़ की एकादशी या देवशयनी एकादशी से कार्तिक की एकादशी या देवउठनी एकादशी तक होता है ।
पत्नी इन्द्राणी ने बांधी इंद्र को राखी
भारत में बहन तो भाई को राखी बांधती ही है लेकिन सतयुग में तो पत्नियाँ भी पति को रक्षासूत्र बांधती थी । इसी का एक उदहारण भविष्य पुराण में देखा जा सकता है । जब देवराज इंद्र वृत्रासुर से युद्ध करने के लिए जा रहे थे । तब अपने पति की रक्षा करने के लिए इन्द्राणी शची ने अपने तप से रक्षासूत्र की रचना की । जब इन्द्राणी ने यह सूत्र इंद्र को बांधा तब गुरु बृहस्पति ने एक मन्त्र का उच्चारण किया जो निम्न है –
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
अर्थात – “जिस सूत्र से महान राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूँ । हे रक्षे ! (राखी) ! तू अडिग रहना ।”
द्रौपती ने बांधी थी भगवान श्री कृष्ण को राखी
रक्षाबंधन न केवल सगे भाई बहन में मनाया जाता है बल्कि यदि भाई बहन का भाव हो तो किसी भी बहन द्वारा रक्षासूत्र बांधकर किसी को भी भाई बनाया जा सकता है । इसी का एक जीवंत उदहारण महाभारत का यह दृष्टान्त है । एक बार महाराज युद्धिष्ठिर इन्द्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ कर रहते थे । महाराज युद्धिष्ठिर ने सभी राजाओं को आमंत्रित किया था, उसमें शिशुपाल भी था । भरी सभा में शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया । भगवान पहले ही उसके सौ पापों को क्षमा कर चुके थे । लेकिन जब उसने सीमा पार कर दी तो श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया और शिशुपाल का वध कर दिया ।
शिशुपाल का वध करके जब सुदर्शन चक्र लौटकर आया तो उससे भगवान की तर्जनी उंगली कट गई और खून बहने लगा । यह देख द्रौपदी तुरंत दौड़कर आये आई और अपनी साड़ी के पल्लू का टुकड़ा फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया । तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह इस कपडे के एक एक धागे का ऋण चुकायेंगे ।
इसी पश्चात् जब पांडव द्रौपदी को द्युत क्रीड़ा में हार गये थे । तब दुष्ट दुशासन ने दुर्योधन के कहने पर उसे नग्न करने के प्रयास में द्रौपदी का चीरहरण किया । तब द्रौपदी ने वासुदेव श्रीकृष्ण को पुकारना शुरू किया । तब भगवान श्रीकृष्ण ने चीर को बढ़ाकर द्रौपदी की लाज बचाई थी ।
कहा जाता है कि जिस दिन द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की कलाई पर कपडा बांधा था उस दिन श्रावण पूर्णिमा का था ही दिन था अर्थात राखी थी ।
रक्षासूत्र का महत्त्व – युधिष्ठिर ने बांधी अपने सैनिको को राखी
बात उस समय की है जब महाभारत का युद्ध चल रहा था । तब एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा – “ हे मधुसुदन ! क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे हमारी विजय सुनिश्चित हो जाये ?”
तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – “ हे कुंती पुत्र युधिष्ठिर ! आप अपने सभी सैनिको को रक्षासूत्र बांधिए, विजय आपकी ही होगी ।” तब युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और विजयी हुए ।”
जिस दिन युधिष्ठिर ने अपने सैनिको को रक्षासूत्र बांधा था, वह दिन भी श्रावण पूर्णिमा का दिन ही था । इसलिए इसी दिन सैनिकों को भी राखी बांधी जाती है ।
रक्षाबंधन की एक ऐतिहासिक घटना
विश्व विजय का सपना लेकर एक बार सिकंदर भारत आ पहुंचा । उस समय भारत में एक से बढ़कर एक महाबली राजा हुआ करते थे । यहाँ आते ही सिकंदर की लड़ाई पुरु नामक एक राजा से हुई । जिसमें सिकंदर को मुंह की खानी पड़ी ।
विदेशी आक्रान्ता हमेशा से चालबाज रहे है । यहाँ भी वही हुआ । किसी ने सिकंदर की पत्नी को रक्षाबंधन के बारे में बता दिया । उसने राजा पुरु को राखी भेज दी ।
इसके बाद जब युद्ध हुआ तो राखी के सम्मान में उन्होंने सिकंदर पर वार नहीं किया । परिणामस्वरूप उन्हें बंदी बना लिया गया । जब सिकंदर को इस बात का पता चला तो उसने राजा पुरु को ससम्मान छोड़ दिया और राज्य भी वापस कर दिया ।
इन्हीं चंद उदाहरणों से अनुमान लगाया जा सकता है कि रक्षाबन्धन का कितना अधिक महत्त्व है । आप भी इस पर्व को इसी उल्लास और महत्त्व के साथ मनाइये और कमेंट करके हमें बताइए कि यह लेख आपको कितना उपयोगी लगा ।
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