एक बार किसी धनवान व्यक्ति ने सुना कि राजा परीक्षित ने वीतराग शुकदेव मुनि से भागवत कथा सुनकर मोक्ष प्राप्त कर लिया था। तो उसके ह्रदय में भी श्रीमद्भागवत के प्रति बड़ी श्रृद्धा उत्पन्न हो गई। उसने सोचा कि मैं भी क्यों ना भागवत कथा सुनकर मोक्ष की प्राप्ति कर लूँ।
अब वह धनवान व्यक्ति भागवत कथा सुनने के प्रयोजन से उस नगर के एक नामी ब्राह्मण के पास गया और उससे भागवत कथा सुनाने की विनती करने लगा। पंडितजी नगर के सुविख्यात ब्राह्मण थे। आये दिन वह बड़े बड़े भागवत कथा के आयोजन करते थे।
धनी व्यक्ति के आग्रह को सुनकर पंडितजी ने उसका स्वागत सत्कार किया और बोले – “ श्रीजी यह कलयुग है, आज के समय में सभी धर्म कृत्यों का फल चार गुना कम मिलता है। इसलिए यदि आप भागवत कथा का सम्पूर्ण फल पाना चाहते है तो आपको चार बार भागवत कथा सुननी पड़ेगी।”
पंडित बड़ा चतुर था । वह चार बार भागवत कथा करने के बहाने भरपूर दान – दक्षिणा पाने का इच्छुक था। लेकिन पंडितजी की यह चालाकी धनी व्यक्ति नही समझ पाया और बोला – “ अवश्य, पंडितजी ! जैसा आप उचित समझे।
भागवत कथा का आयोजन हुआ। परीक्षित ने केवल एक सप्ताह भागवत सुनी थी जबकि धनी व्यक्ति ने चार सप्ताह भागवत कथा सुनी फिर भी कोई लाभ होता हुआ नही दिखाई दिया। पंडितजी लाभ होने का आश्वासन देकर कथा समाप्त करके दान – दक्षिणा की पोटली बांधकर अपने घर चले गये।
धनी व्यक्ति बिचारा चिंतित रहने लगा। वह दिनभर सोचता रहता था कि “ मैंने चार बार भागवत कथा सुनी, पंडितजी को भरपूर दान – दक्षिणा दी, फिर भी मुझे मुक्ति नहीं मिली। क्यों ?”
एक दिन उस नगर में एक पहुंचे हुए संत का आगमन हुआ। संत का तो काम ही होता है, सभी जगह घूम – घूमकर लोगों को उपदेश देना। जब धनी व्यक्ति को संत के बारे में पता चला तो वह भी अपनी समस्या लेकर उनके पास गया और बोला – “ महात्मन् ! मैंने सुना है कि परीक्षित ने एक बार भागवत कथा सुनकर मोक्ष प्राप्त कर लिया था। अतः मैंने कलयुग के हिसाब से चार बार भागवत कथा का आयोजन करवाया किन्तु मुझे अभीतक मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई। क्यों ?”
संत पहले तो हँसे फिर बोले – “ श्रीमान ! भागवत कथा का फल आज भी एक बार सुनने पर भी वही मिलता है जो परीक्षित को मिला था । लेकिन यह निर्भर करता है सुनने और सुनाने वाले कि मनःस्थिति पर। क्या आपकी कथा में सुनने और सुनाने वाले कि मनःस्थिति राजा परीक्षित और वीतराग शुकदेव जैसी थी?”
धनी व्यक्ति को बात समझ में नहीं आई अतः उसने पूछा – “ वह कैसे ?”
संत महाशय बोले – “क्या आपको नहीं मालूम ? राजा परीक्षित को उन सात दिनों में केवल मृत्यु दिखाई दे रही थी और वीतराग शुकदेव मुनि भागवत कथा उन्हें केवल उनके कल्याण अर्थात मृत्यु भय से निवारण के लिए सुना रहे थे । ना कि अपने लोभ और लालच की पूर्ति के लिए। बस यही कारण है कि आपको चार सप्ताह की भागवत भी मोक्ष न दिला सकी जबकि राजा परीक्षित ने एक बार सुनकर ही मोक्ष को प्राप्त कर लिया।”
शिक्षा – आजकल के कथाकार भी पंडितजी जैसे चालाक है जो केवल दान – दक्षिणा के लोभ और लालच से भागवत कथा का आयोजन करते और करवाते है तथा श्रोतागण भी पांडाल से निकलते ही सारी कथा वही छोड़ आते है, कुछ लोग कुछ अच्छी बाते याद भी रखते है तो केवल मनोरंजन और दुसरो को सुनाने के लिए रखते है ।
दोस्तों ज्ञान थोड़ा भी हो लेकिन अगर वह अमल में लाया जाये तो आपको महान बना सकता है। इसके विपरीत अगर बहुत ज्यादा ज्ञान है और वह अमल में ना लाया जा सके तो निरर्थक है। जैसे कि रावण चारों वेदों का प्रकाण्ड विद्वान और ब्राह्मण होते हुए भी अपने दुष्ट कर्मों के कारण मारा गया।
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