असुरों से बार – बार युद्ध करके देवता बोखला चुके थे, क्योकि असुराचार्य शुक्राचार्य संजीवनी विद्या जानते थे । जिससे वह असुरों को मरने के बाद भी फिर से जिन्दा कर देते थे । इसलिए देवताओं ने षड्यंत्र करके अपने गुरु बृहस्पति से संजीवनी विद्या का तोड़ जानने का आग्रह किया । बृहस्पति ने अपने पुत्र कच को शिष्य बनाकर शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या सीखने के लिए भेजा ।
संजीवनी विद्या सीखने के दौरान कच और शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी आपस में प्रेम करने लगे । लेकिन जब असुरों को पता चला कि बृहस्पति ने चालाकी से अपने पुत्र कच को शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या सीखने के लिए भेजा है तो उन्होंने कच को मार डाला । कच के मृत्यु की बात जब देवयानी को पता चली तो वह बिलख – बिलखकर रोने लगी । शुक्राचार्य से अपनी प्रिय पुत्री का ऐसे विलाप करते देखा नहीं गया । अतः अपनी पुत्री के आग्रह करने पर शुक्राचार्य ने संजीवनी विद्या से कच को फिर से जीवनदान दे दिया ।
इस तरह असुरों ने कई बार कच को मृत्यु के घाट उतार दिया और देवयानी के आग्रह करने पर शुक्राचार्य ने उसे जीवनदान दिया ।
आखिर एक दिन परेशान होकर शुक्राचार्य ने कच को संजीवनी विद्या सीखा ही दी । अपना उद्देश्य पूरा होने पर जब कच वापस देवताओं के पास जाने लगा तो देवयानी ने भी उसके साथ चलने का आग्रह किया । किन्तु कच ने देवयानी का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया । इस बात से देवयानी उस पर बहुत क्रोधित हुई और उसने उसे श्राप दे दिया कि “तुम्हे तुम्हारी विद्या कभी फलवती नहीं होगी ।”
इसपर कच ने भी पलटकर देवयानी को श्राप दे डाला कि “कभी भी कोई ऋषि कुमार तुमसे विवाह नहीं करेगा ।”
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इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि किसी के भी प्रेम में पागल होने से पहले जान लेना चाहिए कि सामने वाला व्यक्ति वास्तव में प्रेम के योग्य है भी या नहीं । आजकल अधिकांश युवा खासकर लड़कियाँ ऐसे लड़को से दिल लगा बैठती है जो धोखेबाज होते है । और जब सच्चाई का पता चलता है तो रोती – चिल्लाती और कभी कभी तो आत्महत्या जैसे जघन्य अपराध भी कर बैठती है । इसलिए इस मामले में सावधान रहने की महती आवश्यता है ।