सावित्री और सत्यवान की कथा

सावित्री और सत्यवान की कथा महाभारत के वनपर्व में मिलती है जिसमें युधिष्ठिर मार्कंडेय ऋषि से पूछते है कि “ क्या द्रोपदी के समान पतिव्रता नारी कोई हुई है ?”
 
तब मार्कंडेय ऋषि युधिष्ठिर को यह कथा सुनाते है ।
 
प्राचीन समय की बात है । दक्षिण में अश्वपति नाम का एक राजा राज्य करता था । राजा अश्वपति बहुत ही वीर, प्रतापी, धर्मात्मा और प्रजापालक था लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी । ज्योतिषियों का कहना था कि उनके भाग्य में संतान का कोई योग नहीं है । लेकिन साथ ही उपचार भी बताया कि यदि वह देवी सावित्री की पूजा करे तो उनकी कृपा से उन्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है ।
 
राजा अश्वपति ने १८ वर्ष तक कठोर तपस्या की जिससे उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई । क्योंकि सावित्री देवी की कृपा से प्राप्त हुई थी अतः उन्होंने उसका नाम भी सावित्री ही रख दिया । सावित्री सुन्दर और अद्वितीय गुणों से संपन्न थी । जैसे – जैसे राजकुमारी सावित्री बड़ी होती जा रही थी । राजा अश्वपति को उसके विवाह की चिंता होने लगी । लेकिन उन्हें ऐसा कोई वर नहीं मिला जिसके गुण सावित्री से मिले । अतः उन्होंने उसे स्वयं अपना पति चुनने की स्वतंत्रता दे दी ।
 
राजकुमारी देश – देशांतर घूमी लेकिन फिर भी उसे अपने योग्य वर नहीं मिला । आखिर जब राजकुमारी वापस लौट रही थी तब उन्होंने देखा कि जंगल में एक युवक लकड़ियाँ काट रहा है । उन्होंने अपना रथ रुकवाया और उस युवक से जान – पहचान की तो पता चला कि उस लड़के का नाम सत्यवान है और वह यहाँ जंगल में अपने अंधे माता – पिता की सेवा करता है । उसके पिता एक राजा थे किन्तु धोखे से उन्हें निर्वासित कर दिया गया । इतना जानकर और उनसे मिलकर रानी वापस लौट गई ।
 
अपने पिता के पास पहुचकर रानी ने अपने चुने हुए वर के बारे में पिता को बताया । महाराज अश्वपति बहुत खुश हुए कि उनकी बेटी को उसके मन का वर मिल गया । लेकिन बाद में पता चला कि उसकी आयु एक वर्ष ही शेष है । जब यह बात राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री को बताई तो उसने अपना फैसला बदलने से साफ मना कर दिया । आखिर बहुत समझाने के बाद भी सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह किया । अब वह भी अपने पति के साथ जंगल में रहने लगी और सास – ससुर की सेवा में लग गई ।
 
सावित्री दिनभर अपने घर का कामकाज करती और जब भी समय मिलता अपने पति से ज्ञान – ध्यान की चर्चा और ईश्वर से उनके लिए प्रार्थना करती थी ।
 
आखिर वह दिन भी आ ही गया जब सत्यवान की मौत को ३ दिन शेष थे । सत्यवान प्रतिदिन जंगल में लकड़ियाँ काटने जाता था । सावित्री ने खाना – पीना छोड़ दिया । वह दिनरात अपने पति के लम्बी उम्र की कामना करने लगी । जब एक दिन शेष रहा और सत्यवान हमेशा की तरह कुल्हाड़ी उठाकर जंगल की तरफ जाने लगा तो वह भी उनके साथ जाने लगी । सत्यवान के बहुत मना करने के बावजूद भी वह नहीं मानी और उनके साथ गई ।
सत्यवान एक पेड़ पर चढ़ा और लकड़ी काटने लगा । तभी उसे अचानक चक्कर आने लगे और वह नीचे गिर पड़ा । सावित्री ने उसका सिर अपनी गोद में लिया और अपने पल्लू से पंखा झलने लगी । तभी वह देखती है कि सामने से एक काली छाया वाला देवपुरुष खड़ा है, जिसके हाथ में एक रस्सी है, जिसमें वह सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को बांधे ले जा रहा है ।
 
यह दृश्य देख सावित्री रोते हुए साहस पूर्वक बोली – “हे देव ! आप कौन है और मेरे प्राण धन को कहाँ लिए जा रहे है ?” वह छाया रुकते हुए बोली – “ हे तपस्विनी ! तू पतिव्रता है, इसलिए मुझे देख सकती है सो तुझे बताता हूँ । मैं यमराज हूँ । तेरे पति की आयु समाप्त हो चुकी है, अतः इसे लेने आया हूँ । जब ये चक्कर खाकर गिरा था तब मेरे दूत आये थे, लेकिन तेरे सतीत्व के तेज के मारे वो इसे नहीं ले जा सके । इसलिए अब मैं आया हूँ ।” इतना कहकर यमराज चल पड़े ।
 
सावित्री भी यम के पीछे – पीछे चल पड़ी । यम ने बहुत मना किया लेकिन वह यही कहती रही कि – “मेरे प्राण तो आप लिए जा रहे हो, मैं जिन्दा रहकर क्या करूंगी ?, कृपा करके हे देव ! मुझे भी वही ले जाइये जहाँ मेरे पति को लिए जा रहे हो ।”
 
सती की निष्ठा और पतिव्रत प्रेम को देखकर यम प्रसन्न हो गये । उन्होंने कहा – “ जा मैं तेरे सास – ससुर को आंखे देता हूँ । लेकिन मेरा पीछा छोड़ दे ।”
 
फिर भी सती सावित्री नहीं मानी और उनके पीछे चलती रही । तब यम बोला – “ हे तपस्विनी मैं उनका खोया राज्य भी उन्हें वापस दिला देता हूँ, अब तो मेरा पीछा छोड़ दे ।”
 
करुण स्वर में सावित्री बोली – “ मेरे पति जिन्हें आप लिए जा रहे है, उनके बिना मेरा इन सब से कोई सम्बन्ध नहीं । मुझे मेरे पति वापस कर दो मैं चली जाउंगी ।”
 
झुंझलाकर यम बोला – “ हे देवी ! तू जो चाहे वो मांग ले पर मैं तेरा पति नहीं दे सकता । कृपा करके वापस लौट जा ।”
 
तब सावित्री बोली – “ ठीक है देव तो मुझे आशीर्वाद दीजिये कि सत्यवान से सौ पुत्र हो ।” बिना सोचे ही यमराज ने बोल दिया – “तथास्तु ! अब जा” और यम चल दिया । लेकिन सावित्री अब भी उनके पीछे चली जा रही थी ।
जब यम ने देखा तो बोला – “ अब तो तुम्हे वरदान भी मिल गया है । अब तो मेरा पीछा छोड़ !”
 
सती बोली – “हे देव ! मेरे जिन पति से आपने मुझे सौ पुत्रों का आशीर्वाद दिया उन्हें तो आप लिए जा रहे है तो उनसे मुझे सौ पुत्र कैसे संभव है ?”

अब वचनबद्ध यम चक्कर में पड़ गये । आखिर उन्हें सत्यवान के प्राण वापस करने ही पड़े । इस तरह सती सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यम के पाश से भी मुक्त करवाया ।

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