आज के समय में कुण्डलिनी महाशक्ति न केवल भारत में बल्कि विश्व के अधिकांश देशों में चर्चा का विषय बनी हुई है । इसकी महत्ता और उपयोगिता को देखते हुए, हर कोई जानना चाहता है कि “कैसे इस कुण्डलिनी रूपी सर्पिणी की पूंछ को पकड़कर अपने वश में किया जा सकता है ?”
कुण्डलिनी जागरण का विज्ञान जितना रहस्य और रोमांच से भरा हुआ है, गलती करने पर उतना ही भयावह भी है । इसलिए सरलता से कहीं भी कुण्डलिनी जागरण की सही विधि नहीं मिल पाती । लेकिन कुण्डलिनी जागरण की कोई विधि न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता । मेरा एक विश्वास है और वह यह है कि “इस दुनिया में जो कुछ भी है, वो सब ज्ञातव्य है अर्थात आप उसे जान सकते है यदि आप कोशिश करते है ।”
बस मैंने भी कोशिश करना शुरू कर दिया और एक के बाद एक परते मेरे सामने खुलती गई । ज्ञान – विज्ञान और अनुसंधान के इस सफ़र में मैंने अनुभव किया कि “ कुण्डलिनी जागरण को केवल और केवल वही व्यक्ति समझ सकता है जो ज्ञान और भक्ति के साथ – साथ विज्ञान को समझने की क्षमता भी रखता हो ।” यदि किसी व्यक्ति में केवल भक्ति से अथवा जन्म से कुण्डलिनी जागरण या किन्ही सिद्धियों का प्रादुर्भाव हुआ है तो वह मात्र एक अपवाद कहा जायेगा । ऐसा हर व्यक्ति के साथ हो, यह जरुरी नहीं ।
इस लेख में मैं कुण्डलिनी जागरण के सिद्धांत के साथ – साथ सम्पूर्ण आध्यात्मिक साधनाओं के मुलभुत सिद्धांत को भी आपके लिए स्पष्ट करूंगा । इसलिए इस लेख को आप ध्यान से पढ़े । इसी के साथ मेरा एक और निवेदन है कि आप इस लेख को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करें ।
अगर हम भौतिक विज्ञान की बात करे तो हमें पता चलेगा कि उसकी सारी की सारी गणनाएं केवल और केवल एक परमाणु के इर्द – गिर्द ही चक्कर लगाती है । इसका सीधा सा मतलब है कि अगर आप भौतिक विज्ञान के बारे में कुछ भी जानना चाहते है तो आपको सबसे पहले परमाणु का अध्ययन करना पड़ेगा । इसलिए विज्ञान में सबसे पहले परमाणु की शिक्षा दी जाती है ।
अब हम बात करते है कुण्डलिनी विज्ञान की । भौतिक विज्ञान के अंतर्गत परमाणु की जो भूमिका होती है, वही कुण्डलिनी विज्ञान में प्राण की है । जिस तरह परमाणु को जाने बिना परमाण्विक हथियार जैसे परमाणु बम, हाइड्रोजन बम आदि नहीं बनाएं जा सकते, ठीक उसी तरह प्राण को जाने बिना कुण्डलिनी जागरण भी नहीं किया जा सकता । कुलमिलाकर बात यह है कि हमें स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाने की जरूरत है ।
अब हमें स्पष्ट हो चुका है कि हमें जाना कहाँ है ? “स्थूल से सूक्ष्म की ओर” किन्तु अब आप सोच रहे होंगे कि कैसे ?
मान लीजिये ! मैं आपसे पूछता हूँ । कुण्डलिनी महाशक्ति क्या है ? इस का उत्तर आप चाहे तो एक पंक्ति में भी दे सकते है । किन्तु यदि मैं स्पष्टीकरण मांगू तो आपको पंचकोशों, अष्ट चक्रों और उनसे सम्बंधित गुण धर्मों का वर्णन करना होगा । इसका सीधा सा मतलब ये है कि कुण्डलिनी शब्द अपने आप में बहुत विस्तृत है । जब हम इसके विस्तार से इसके केंद्र की ओर अग्रसर होते है तो एक मौलिक तत्व पर जाकर रुकते है, जिसे “प्राणशक्ति या प्राण” कहा जाता है । ऐसा नहीं कि इससे सूक्ष्म और कुछ नहीं होता । होता है लेकिन वो उसी तरह होता है जैसे परमाणु में इलेक्ट्रान, प्रोटोन और न्यूट्रॉन होते है ।
यह प्राण ही है जो किसी भी साधना को सफल और असफल बनाने के लिए जिम्मेदार होता है । इस प्राण की भूमिका न केवल कुण्डलिनी जागरण में बल्कि हमारे जीवन के हर क्षेत्र में होती है । आप स्वस्थ है या बीमार, यह भी आपका प्राण तय करता है । आप भयभीत है या निर्भय, यह भी आपका प्राण तय करता है । आप बुद्धिमान है अथवा बुद्धू, यह भी आपका प्राण तय करता है और अंत में आप जीवित है या मृत, यह भी आपका प्राण ही तय करता है । अतः प्राण ही हमारे जीवन का मूलभूत आधार है । इस प्राण के इर्द – गिर्द ही यह सम्पूर्ण सृष्टि घूम रही है । इसलिए वेद और उपनिषदों में प्राण की बड़ी ही महिमा गाई गई है ।
प्राणस्येदं वशे सर्वं त्रिदिवे यत्प्रतिष्ठितम् । मातेव पुत्रान् रक्षस्व श्रीश्च प्रज्ञां च विधेहि न इति ।।
अर्थ – पृथ्वी, द्यौ और अंतरिक्ष इन तीनों लोकों में जो कुछ भी है, वह सब प्राण के वश में है , हे प्राण ! जैसे माता स्नेहभाव से अपने पुत्रों की रक्षा करती है, ऐसे ही तू हमारी रक्षा कर । हमें श्री (भौतिक सम्पदा) तथा प्रज्ञा (मानसिक और आत्मिक ऐश्वर्य) प्रदान कर ।
अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने बात तो कुण्डलिनी महाशक्ति से शुरू की थी और आपको प्राण पर लाकर बिठा दिया । लेकिन विश्वास रखिये, यह जरुरी था । बिना प्राण को जाने हम कुण्डलिनी महाशक्ति को नहीं जान सकते । क्योंकि प्राण को जानकर ही मूलाधार में प्राण – अपान रूपी हवन में प्राणाग्नि की आहुति दी जाती है ।
आगामी लेखो में हम इसी प्राण के सूक्ष्म तत्वों का वर्णन करेंगे । हम जानेंगे कि वो कोनसी बाते अर्थात गुण – कर्म – स्वभाव है जो इस प्राण तत्व को कमजोर अथवा मजबूत बनाते है । जब हम इसे अच्छे से जान लेंगे तभी हम प्राण के प्रत्यावर्तन की साधना अर्थात कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया का वर्णन करेंगे ।