एक राज्य में एक चक्रवती सम्राट राज्य करता था । सम्राट बड़ा ही यशस्वी, दयालु, बुद्धिमान, साहसी और शांतिप्रिय था । अतः राज्य में राजा और प्रजा दोनों ही बहुत सुख – चैन से रहते थे । राजा के जीवन में केवल एक अभाव था कि उनके कोई पुत्र नहीं था । अतः सम्राट हमेशा प्रजा के लिए योग्य युवराज का चिंतन किया करते थे ।
एक दिन महाराज ने अपने सबसे विश्वस्त सलाहकार को बुलाया और पूछा – “ मुझे युवराज का चयन करना है, अतः मुझे वह गुण बताओं, जिसके आधार पर युवराज का चयन किया जा सके ।” उस विद्वान सलाहकार ने कुछ सोचा और फिर कहा – “ महाराज ! जिस व्यक्ति की पांचो इन्द्रियां अपने वश में है तथा जो अपने लक्ष्य के प्रति एकनिष्ठ है । वह हर प्रकार से युवराज के योग्य है ।”
इसके बाद राजा और मंत्री ने मंत्रणा की और दुसरे दिन सम्राट ने राजदरबार में घोषणा कर दी कि जो कोई व्यक्ति कल मुझतक पहुंचकर मेरा दर्शन कर लेगा, उसे इस राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया जायेगा । कल मेरा उद्यान सबके लिए खुला रहेगा । किसी को कोई रोकटोक नहीं होगी । सबको मुझतक पहुँचने में लगने वाले समय का दस गुना समय दिया जायेगा, जो लगभग एक पहर के बराबर होगा । इस नियत समय में जो मुझतक पहुँच जायेगा उसे युवराज बना दिया जायेगा और जो मुझतक नहीं पहुँच पाया , उसे उद्यान से बाहर कर दिया जायेगा । हर नगर गाँव गली में इस बात का ढिंढोरा पिटवा दिया गया ।
दुसरे दिन प्रातःकाल होते ही सभी लोग धड़ल्ले से उद्यान में प्रवेश करने लगे । उद्यान के बाहर ही एक द्वारपाल बिठाया गया था जो प्रत्येक व्यक्ति को एक नियत नंबर का पदक देता था, जिससे उसके प्रवेश समय की पहचान हो सके । सबको यह पदक अपने गले में पहनने थे, ताकि राजा के व्यवस्थापक उन पर नजर रख सके । सब के सब अपने – अपने पदक पहनकर उद्यान में प्रवेश करने लगे ।
उद्यान में पहुंचाते ही सबको सैकड़ो प्रकार की लुभावनी चीज़े दिखी । प्रथम प्रवेश पर ही तरह – तरह के फूलों से लदे वृक्ष थे, जिनसे मनमोहक खुशबु निसृत हो रही थी । कुछ तो वही एक के बाद एक फूलों की खुशबु में आनंदित होने लगे ।
कुछ लोग आगे बढ़े तो तरह – तरह के फलों और मिठाइयों के भंडार पड़े थे । सभी फल इतने ताजे थे कि कोई भी उनको खाएं बिना नहीं रह सकता था और मिठाइयाँ भी ताजी और रसीली प्रतीत हो रही थी । इस पर भी किसी की कोई रोक टोक नहीं । सोने पर सुहागा हो गया । कुछ लोग फलों के आनंद में मस्त हो गये और कुछ मिठाइयों का आनंद लेने लगे ।
जो लोग आगे बढे उन्होंने देखा कि सामने कुछ ऐसी अजीबोगरीब चीज़े पड़ी है जिन्हें उन्होंने आज से पहले कभी नहीं देखा । कुछ लोग देश दुनिया के कोने – कोने से मंगाई गई उन अद्भुत चीजों के देखने में आनंदित हो रहे थे ।
जो बचे वो आगे बढ़े तो देखा कि सुमधूर संगीत की तान पर नृत्य गान हो रहा है । तो कुछ लोग उन राग – रागिनियों में रमने लगे ।
जो आगे बढ़े उन्होंने देखा कि छोटे – छोटे राजप्रासादों में अप्सरा के समान सुन्दर स्त्रियाँ पुष्पों की शय्याओं पर उनकी प्रतीक्षा कर रही है । कहा भी गया है “ काम का आघात सबसे घातक होता है ।” उनमें से अधिकांश व्यक्ति उन स्त्रियों के साथ रमण करने चले गये ।
इतना कुछ देखकर अधिकांश लोग तो राजा से मिलने का लक्ष्य ही भूल गये ।जो इस लोभ में लगे थे कि “पहले इसको देखूं या उसको” उनका समय खत्म होने को आया था । उद्यान के व्यवस्थापक ने आकर लाख अनुनय विनय करने पर भी उठाकर उनको बाहर कर दिया ।
उन सबमें से एक ऐसा विरक्त – वैरागी आया जिसे कोई भी इन्द्रिय के आकर्षण विचलित नहीं कर पाए । जब राजा को इस बात का पता चला कि कोई व्यक्ति सीधा उनके निकट आ रहा है तो उन्होंने अपने राज्य की सबसे सुन्दर, चतुर और चालक अप्सरा को उसके स्वागत के लिए भेजा । लेकिन उसने व्यक्ति ने अप्सरा के रूप की कोई प्रशंसा नहीं की । यहाँ तक की नजरे उठाकर उसे देखा तक नहीं ।केवल महाराज से मिलने की जिद ले रखी थी । अतः लज्जित होकर वह चली गई और वह व्यक्ति महाराज के पास पहुंच गया । वही पर उसे युवराज घोषित कर दिया गया ।
यह एक काल्पनिक कहानी है जिसमें संसार की व्यवस्था का अलंकारिक रूप से वर्णन किया गया । यह संसार एक वाटिका है जिसका राजा परम पिता परमेश्वर है । उन्होंने सभी मनुष्यों को यह घोषणा कर रखी है कि जो कोई मनुष्य इस संसार उद्यान में आकर उनके दर्शन कर लेगा उसे युवराज बनाया जायेगा । लेकिन इस संसार वाटिका में प्रवेश करते ही अधिकांश तो अपने लक्ष्य को ही भूल गये और यहाँ इन्द्रियों के विषयों में ही उलझकर रह गये । जो एक प्रकार के विषय से बचे उनको दुसरे ने उलझा लिया । जो कोई एक योगी, साधू, संत, वैरागी किस्म का कोई विरला व्यक्ति हुआ, वो ही सभी विषयों के आकर्षण को तिलांजलि देकर उस परम तत्व परमात्मा तक पहुँच पाया ।
जो विषयों में उलझे रहे, उनको समय पूरा होने पर धर्मराज, यमराज उठाकर ले गये ।
अतः इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को सांसारिक विषयों में अधिक आसक्त नहीं होना चाहिए । विषय – वासनाओं का कभी कोई अंत नहीं होता । ईश्वर ही जीवन का चरम उद्देश्य होना चाहिए ।