अध्यात्म साधना का तीसरा सिद्धांत हैं – उत्कृष्ट उद्देश्य । आध्यात्मिक साधनायें केवल उन्हीं लोगों की सफल होती हैं । जिनका उद्देश्य ऊँचा हो, जो सामान्य से अलग सोचते हो, जो देश धर्मं और संस्कृति के हित में सोचते हो । जो लोग अपनी कामनाओं और वासनाओं की मांग ईश्वर से करते हैं । वह पूरी ही हो ऐसा जरुरी नहीं हैं ।
असल में, हमसे बेहतर हमारा भला और बुरा ईश्वर सोच सकता हैं । अगर हम खुद को ईश्वर को समर्पित कर सके तो विश्वास रखिये ईश्वर हमसे बेहतर हमारा खयाल रखता हैं । इसलिए हमे उससे कुछ मांगने की, उसके सामने हाथ फ़ैलाने की या गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं हैं । हमारे जरूरत की हर चीज़ को वह समय आने पर स्वयं हमारे सामने प्रस्तुत कर देता हैं । ऐसा मेरा अनुभव और विश्वास हैं ।
दैवीय शक्तियां यह देखती हैं, कि हम किस मकसद से उनकी साधना कर रहे हैं । अगर सांसारिक कामनाओं और वासनाओं के घटिया मकसद को लेकर हम साधना कर रहे हैं । तो विश्वास रखिये हमे साधना का वह फल नहीं मिलेगा, जो मिलना चाहिए या जिसकी हम आस लगाये बैठे हैं ।
“ईश्वर उसी की सहायता करता हैं, जो अपनी सहायता आप करता हैं”
इस सिद्धांत को आप हमेशा याद रखिये । खुद मेहनत करने के झंझट से बचने के लिए अगर हम साधना के सरल मार्ग से सफलता पाने की आशा रखते हैं तो जान लीजिये कि आप ख़ुद को धोखा दे रहे हैं । हमारे क्षेत्र की एक घटना कुछ ऐसे हैं कि : –
एक बार एक विद्यार्थी जिसने १० वीं कक्षा पास करके ११वीं में विज्ञान विषय में प्रवेश लिया । उसने विषय का चयन तो कर लिया था । लेकिन उसे गणित और विज्ञान बड़े पेचीदे विषय लगे । फिर एक दिन उसने कहीं से पढ़ – सुन लिया होगा कि हनुमान जी अपने भक्तों की सभी समस्याओं का समाधान कर देते हैं । (संकटमोचन नाम तुन्हारों) तो वह हनुमान जी का भक्त हो गया ।
अब वह दिनभर पढाई करने के बजाय खुद को कमरे में बंद करके पता नहीं क्या भक्ति करता था । उसके घर वालों ने तो उसे पागल घोषित कर दिया था । परन्तु क्या वह पागल था ? शायद और शायद नहीं । अब उसकी परीक्षा निकट आ गई थी ।
घर वालों ने कहा कि “परीक्षा तो देने जायेगा ना” तो उसने मना कर दिया और कहने लगा कि “सब हनुमान जी देख लेंगे” । घर वालों और पढ़ोसियों के बहुत समझाने पर शायद वो परीक्षा देने के लिए मान गया था । किन्तु अंततः वह परीक्षा में फ़ैल हो गया ।
घर वाले तो पहले से जानते थे, कि उसका फ़ैल होना निश्चित हैं । किन्तु उसे बहुत बड़ा धक्का लगा । क्यों हुआ ऐसा ? इसलिए की वह सिद्धांत विहीन उपासना कर रहा था । किसी भी साधना की सफलता के लिए परिष्कृत व्यक्तित्व का होना अनिवार्य हैं ।
कोई भी साधना करने से पहले यह निश्चय होना चाहिए कि साधना क्यों की जा रही हैं । यह खयाल बराबर बना रहना चाहिए कि हमारी साधना हमेशा ऊँचे उद्देश्यों के लिए हो । आत्मकल्याण और लोकमंगल के उद्देश्य से की जाने वाली साधनायें हमेशा सफल होकर रहती हैं । इसके साथ – साथ इस बात का भी ध्यान बराबर बना रहना चाहिए कि हमारी साधना में तीनों सिद्धांतों का समावेश हो । चाहे वो भौतिक सफलता के लिए हो, चाहे आत्मकल्याण के लिए ।