चोर को ईश्वर का दर्शन कैसे ?

किसी गाँव में दौलतराम नाम का चोर रहता था । लेकिन दौलत के नाम पर उसके पास फूटी कौड़ी नहीं थी । काम – धंधे के लिए बहुत हाथ – पैर मारे लेकिन कहीं से कोई जुगाड़ नहीं हो पाया । जब कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया तो उसने चोरी कर – करके अपना घर का खर्चा चलाना शुरू किया । वह जिस गाँव में रहता था उस गाँव को छोड़कर आस – पास के सभी गाँव में चोरी करता था ।
 
एक रात खाना खाकर हमेशा की तरह वह चोरी करने निकला । उस रात उसने एक गाँव में सेठ के यहाँ चोरी करने की योजना बनाई थी । संयोग से उस दिन सेठ के घर श्री हरि की कथा हो रही थी अतः सभी जाग रहे थे । चोर घर के पीछे छिपकर बैठ गया और सबके सोने का इंतजार करने लगा । इसी बीच उसने भी श्रीहरि की कथा सुनी । पंडितजी श्रीहरि का वर्णन कर रहे थे – “सुन्दर, चमकीले मोती माणिक्य जड़े वस्त्र, सोने का मुकुट धारण किये, तारों सी चमचमाते मोतियों की माला धारण किये प्रभु प्रकट हुए ।”
 
जब ये बाते चोर के कान में पड़ी तो उसने सोचा कि “ ये व्यक्ति जरुर बड़ा मालदार है । इसके घर चोरी करना चाहिए ।” पंडितजी से उसका पता पूछने के लिए वह छिपकर बैठ गया । कथा समाप्त करके जैसे ही पंडितजी बाहर निकले, चोर ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया । सुनसान जगह देख चोर ने पंडितजी का रास्ता रोक लिया और चाकू दिखाकर बोला – “ पंडित ! जल्दी से मुझे अपने उस मालदार सेठ का अता – पता बता, जिसके शरीर पर हीरे जवाहरात आदि करोड़ो का माल है या अपना झोला – झमेला मेरे हवाले कर दे ।”
 
अचानक से चोर को देख पंडितजी घबरा गये । कोई रास्ता न देख पंडितजी बोले – “ भाई ! वो व्यक्ति यमुना के किनारे के जंगलों में रहता है । गायें चराता और बंशी बजाता है ।” इतना सुनकर चोर ने अपना रास्ता बदल दिया और उस अनजान व्यक्ति की खोज में निकल गया ।
 
उसके दिमाग में पंडितजी की बताई छवि बैठ चुकी थी । बहुत दिनों तक यमुना के जंगलों में वह चोर भटकता रहा । लेकिन उसे वैसा कोई व्यक्ति दिखाई नहीं दिया । भूख और प्यास से हताश और निराश होकर वह एक पेड़ के नीचे बैठ सुस्ताने लगा । तभी उस चोर की आंख लग गई । उसे एक सपना आया, जिसमें उसने उसी व्यक्ति को देखा जिसके बारे में पंडितजी ने बताया था । झुंझलाकर चोर की आंखे खुल गई तो उसने देखा कि सामने वही ग्वाला अपनी गायों के साथ आभूषणों से युक्त वस्त्रों में खड़ा है ।
 
चोर ने अपनी कुल्हाड़ी उठाई और उसके पास जाकर बोला – “ तुझे ढूंढने में मुझे बहुत भटकना पड़ा । अब झटपट अपना सारा माल उतारकर मेरी झोली में रख दे । वरना आज तेरा राम नाम सत्य हो जायेगा ”
 
श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा – “ भाई ! उस पेड़ के नीचे मैंने इससे भी ज्यादा माल गाड़ रखा है, तेरे को जितना चाहिए ले जा ।”
 
चोर ने जाकर पेड़ के नीचे खोदा तो वहाँ बहुत सारा खजाना पड़ा था । चोर खुश हो गया । उसने अपनी झोली भर ली और ख़ुशी – ख़ुशी चल गया ।
 
चोर के पास धन – दौलत की अब कोई कमी नहीं थी । उसने सोचा क्यों न पंडितजी को धन्यवाद दिया जाये । वह गया पंडितजी के पास गया और बोला – “ वाह पंडितजी ! आपने क्या मालदार आदमी बताया ! एक बार में ही मेरी सारी दरिद्री दूर हो गई । अब तो सोच रहा हूँ कोई धंधा कर लूँ ।”
 
यह सुनकर पंडितजी बोले – “ रे बेवकूफ वो कोई आदमी नहीं, साक्षात् भगवान श्री कृष्ण थे । चल मुझे भी उनसे मिलवा ।”
 
चोर ले गया पंडितजी को यमुना के जंगलो में । प्रभु वही गायें चरा रहे थे । जैसे ही चोर ने देखा – दौड़कर प्रणाम किया और बोला – “ हे प्रभु ! आप बताये क्यों नहीं कि आप भगवान है । मैंने आपको डराया – धमकाया उसके लिए मुझे माफ़ कर दीजिये ।” लेकिन पंडितजी को अब भी कुछ नहीं दिखाई दिया । वह झुंझलाकर बोले – “ अरे कहाँ है ? किससे बात कर रहा है ?”
 
चोर प्रभु से बोला – “ हे प्रभु आप पंडितजी को भी दर्शन दीजिये ना !”
 
प्रभु बोले – “ देख तू चोर है लेकिन तेरा विश्वास अटूट है और तेरा ह्रदय भी सरल है, जो पंडित ने कहा और तूने मान लिया । लेकिन जिस पंडित ने तुझे मेरा पता बताया, वो खुद कभी मुझसे मिलने नहीं आया । अतः उनका मुझमें विश्वास नहीं इसलिए दर्शन नहीं हो सकते ” इतना कहकर प्रभु हंसने लगे ।
 
जिस तरह पंडितजी के कहने पर चोर ने भरोसा कर लिया उसी तरह हम भी शास्त्रों और महापुरुषों के वचनों का विवेकपूर्वक पालन करना शुरू कर दे तो कोई कारण नहीं कि हमें लाभ न हो । लेकिन अधिकांश अच्छी बाते लोग बस कहने – सुनाने के लिए सीखते है । दूसरों को नसीहत देने के लिए सीखते है । पंडितजी के ज्ञान से चोर ईश्वर के दर्शन से लाभान्वित हुआ लेकिन विश्वास नहीं होने से पंडितजी को कोई लाभी नहीं हुआ ।

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