इस दुनिया में कितने ही सुख – सुविधाओं के साधन जुटा ले । एक न एक दिन तो मन उब ही जाता है । प्रत्येक मनुष्य के जीवन में एक समय ऐसा आता है, जब वह दुनिया से परे सोचने के लिए मजबूर हो जाता है । ऐसा ही समय एक बार महाराज अजातशत्रु के जीवन में भी आया ।
एक समय की बात है । महाराज अजातशत्रु का मन अशांत रहने लगा । उन्होंने आत्मकल्याण की इच्छा से प्रेरित होकर तप – साधना करने का निश्चय किया । उन्होंने यह बात अपने विद्वान सलाहकारों को बताई । विद्वान सलाहकारों ने राजा को सलाह दी कि “ महाराज ! आध्यात्मिक साधनाएं किसी मार्गदर्शक गुरु के सानिध्य में की जाये तो ही सफल होती है । अतः आपको किसी योग्य गुरु का वरण करना चाहिए ।”
महाराज अजातशत्रु ने विद्वानों से पूछा – “ योग्य गुरु की पहचान क्या है ?”
विद्वजन बोले – “ महाराज ! जो मनुष्य सच्चा आत्मदर्शी, परमार्थी और तत्वदर्शी हो, वही गुरु बनने के योग्य होता है ।”
अब महाराज के सामने यह बड़ी विकट समस्या थी कि सच्चे गुरु को कैसे खोजे ? जो आत्मदर्शी, परमार्थी और तत्वदर्शी की कसोटी पर खरा उतरे । इसी उधेड़बुन में उलझे महाराज अपने शयनकक्ष में बैठे विचारमग्न थे । तभी महारानी विद्यावती का आगमन हुआ । महाराज के चेहरे पर चिंता की रेखाएं स्पष्ट दिखाई दे रही थी ।
उत्सुकता से महारानी ने पूछा – “ आज हमारे महाराज चिंता के कौनसे भंवर में फसे हुए है ?”
महाराज अजातशत्रु ने अपनी समस्या कह सुनाई । महारानी ठहाका मारकर हंसी और बोली – “ बस इतनी सी बात के लिए इतने चिंतित हो ! इस बात की आप बिलकुल चिंता मत कीजिये । आप सारे राज्य के विद्वान संतो, महात्माओं और गुरुओं को आमंत्रित कीजिये । योग्य गुरु का चुनाव हम करेंगे ।” महाराज, महारानी की विद्वता और सुझबुझ से भलीभांति परिचित थे । अतः उन्होंने वैसा ही किया ।
दुसरे ही दिन योग्य गुरु के चुनाव का उत्सव आयोजित किया गया । जिसमें देश भर के विद्वान संत, महात्मा और गुरु लोग एकत्रित हुए ।
उच्च मंच पर आसीन महारानी ने सभी विद्वानों का स्वागत संबोधन करते हुए कहा – “ हमारे महाराज अपनी तप – साधना के लिए योग्य गुरु का वरण करना चाहते है । इसीलिए इस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है । महाराज की यह शर्त है कि जो कोई भी व्यक्ति सामने स्थित खुले मैदान में कहीं भी बड़े से बड़ा और सुन्दर से सुन्दर महल कमसे कम समय में तैयार करवा देगा । वही महाराज का गुरु बनने का अधिकारी होगा । निर्माण कार्य के लिए आवश्यक सामग्री राजकोष से दी जाएगी ।”
महारानी की यह घोषणा सुनकर सभी विद्वान अपने – अपने महल के लिए भूमि नापने लगे । जिन्होंने भूमि का मापन कर लिया वो निर्माण कार्य के लिए कारीगर और आवश्यक सामग्री जुटाने में लग गए ।
राजा और रानी दोनों अपने सिपाहियों के साथ मैदान में घूम – घूमकर कार्य का निरक्षण कर रहे थे । तभी उन्हें एक ऐसा साधू दिखाई दिया जो एक पेड़ की छाँव में बैठकर मुस्कुरा रहा था ।
राजा और रानी दोनों उसके नजदीक गये और रानी बोली – “ बाबा ! आपको महल नहीं बनाना क्या ? आप भी अपने महल के लिए जमीन नाप लीजिये और निर्माण कार्य आरम्भ कीजिये ।”
साधू हंसकर बोला – “ बेटी ! मुझे महल की क्या जरूरत, जब ईश्वर ने यह विराट विश्व ही महल के रूप में दिया हुआ है । पहाड़ो की कन्दराएँ ही मेरे महल है और विस्तृत वन ही मेरे बाग़ बगीचे है । पेड़ों की छाँव मेरे ठहराव स्थल है और पशु – पक्षी ही मेरे परममित्र है । आपके यहाँ तो मैं महज एक अतिथि बनकर आया हूँ । आज यहाँ तो कल और कहीं ”
रानी ने प्रसन्न होकर महाराज से कहा – “ महाराज ! यही आपके योग्य गुरु है ।”
इस तरह राजा अजातशत्रु को योग्य गुरु मिले ।
शिक्षा – इस कथा से एक बड़ी ही महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है कि किसी को भी गुरु बनाने से पहले यह जाँच कर लेनी चाहिए कि वह गुरु बनने योग्य भी है या नहीं । आजकल गुरुओं की बाढ़ आई हुई है । इनमें से अधिकांश लोग ऐसे है जो या तो ज्ञान के अभिमान में गुरु बने है या फिर अपना धंधा चलाने के लिए गुरु बने है । यह दोनों ही प्रकार के लोग न तो परमार्थी है न ही तत्वदर्शी ।
हमारे शास्त्रों के अनुसार सच्चा संत वह होता है जिसमें तीन ऐषानाएं न हो – लोकेषणा, पुत्रेष्णा और वित्तेष्णा । जिसमें इनमें से एक भी ऐषना हो वह सच्चा संत नहीं हो सकता । लोकेषणा – अर्थात जिसे नाम यश और बड़प्पन चाहत हो । पुत्रेष्णा अर्थात जिसे पुत्र की इच्छा हो । जिसे बुढ़ापे का सहारा चाहिए । वित्तेष्णा – अर्थात जिसे धन – दौलत के संग्रह की इच्छा हो ।
कोई संत भी हो किन्तु यदि वह परमार्थी और तत्वदर्शी न हो तो वह गुरु बनने योग्य नहीं है । जो आत्मा और परमात्मा को तत्व से जानता है तथा जिसका प्रत्येक कर्म ईश्वर को समर्पित हो, वही गुरु बनने का अधिकारी है ।
इन्हीं मापदंडो के आधार पर आप अपने गुरु का निर्धारण कर सकते है । यदि यह लेख आपको अच्छा लगे तो अपने दोस्तों को शेयर करें । विशेषकर उनको जो मुर्ख गुरुओं के चंगुल में फस सकते है ।