“ कर भला तो हो भला ” यह कहावत तो आपने बहुत सुनी होगी, लेकिन यह कहावत बनी कैसे ? आज हम आपको इसकी कुछ कहानी सुनायेंगे ।
प्राचीन समय की बात है । सुन्दर नगर में सुकृति नामक एक राजा राज्य करता था । राजा सुकृति बड़ा ही दयालु, सेवाभावी और धर्मपरायण था । किन्तु सुन्दर नगर की सुन्दरता पर मोहित होकर आये दिन पड़ोसी राज्य आक्रमण किया करते थे । राजा सुकृति के राज्य में भीमसेन नामक एक बड़ा ही बहादुर और निडर सेनापति था । वह कभी भी आक्रमणकारियों को राज्य की सीमा में प्रवेश नहीं करने देता था । सेनापति राज्य के प्रति वफादार तो था, लेकिन एक बार एक युद्ध में जीत उन्हें बहुत महँगी पड़ी । उसमे सेनापति भीमसेन बुरी तरह से घायल हो गया और साथ ही बहुत सारे सैनिक मारे गये । इसी बीच भीमसेन का एक मित्र उससे मिलने आया ।
यह मित्र राजा से बहुत ईर्ष्या करता था । उसने भीमसेन को राजा के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया । वह कहने लगा – “ तुम लोग दिनरात यहाँ मौत से जूझ रहे हो और राजा वहाँ महलों में अय्याशियाँ कर रहा है । मेरी मानो तो राजा को तख़्त से हटाओ और खुद राजा बन जाओ ।”
अपने मित्र के मुंह से राजा की निंदा सुनकर सेनापति भीमसेन को पहले तो विश्वास नहीं हुआ लेकिन फिर उसने कुछ सोचकर स्वयं राजा बनने का निर्णय ले लिया । उसने राज्य जाकर राजा सुकृति को सिंहासन से हटा दिया और स्वयं का राज्याभिषेक करवा लिया । वह राजा सुकृति को पकड़कर बंदीगृह में डालना चाहता था लेकिन अवसर देख सुकृति भेष बदलकर जंगलों में भाग गया ।
राजा भीमसेन ने सुकृति को पकड़ने के लिए एक सहस्त्र स्वर्ण मुद्राओं के इनाम की घोषणा की । सैनिक तो सैनिक लेकिन राज्य के अन्य व्यक्ति भी इनाम की आकांक्षा से सुकृति को खोजने लगे । हालाँकि राज्य के ज्यादातर समझदार लोग सुकृति से भीमसेन द्वारा राज्य हड़प लिए जाने से दुखी थे ।
इधर राजा सुकृति जंगल के रास्ते राज्य से बाहर निकलने ही वाला था कि उसे सामने से एक व्यक्ति आता दिखाई दिया, जो दिखने में बहुत चिंतित जान पड़ रहा था ।
राजा सुकृति के नजदीक आकर वह बोला – “ भाई ! जरा राजा सुकृति के महल का रास्ता बता देना, मुझे उनसे जरुरी काम है ।” राजा बोला – “ सुकृति से क्या काम है ?”
अजनबी बोला – “ मैं पास के गाँव में रहता हूँ, मेरी पत्नी बहुत बीमार है । उसके इलाज के लिए मेरे पास पर्याप्त धन नहीं है । मैंने सुना है राजा सुकृति बहुत दयालु राजा है, कोई भी दिन दुखी उनके महल से खाली हाथ नहीं जाता ।”
राजा बोला – “ चलो मैं तुम्हे राजा सुकृति के पास पहुँचा देता हूँ ” यह कहकर वह उस अजनबी को राजमहल की ओर ले गया । वह सीधे राजदरबार में जा पहुँचे । राजा सुकृति को स्वयं वापस आया देख सभी सभासद अचंभित हो उठे ।
दरबार में पहुँचकर राजा सुकृति ने सिंहासन पर बैठे राजा भीमसेन से कहा “ तुमने मुझे पकड़ने के लिए एक सहस्त्र स्वर्ण मुद्राओं का इनाम रखा है ना, वो इनाम इस व्यक्ति को दे दो । ये मुझे पकड़कर लाया है और मेरे साथ तुम जो चाहो सो कर सकते हो ।”
राजा सुकृति की दयालुता को देखकर सेनापति भीमसेन का मस्तक लज्जा से झुक गया । वह सिंहासन से उठा और महाराज के चरणों में गिर पड़ा । उसे अपनी गलती का अहसास हो गया ।
इसलिए कहते है “ कर भला तो हो भला ” राजा ने भला किया तो उसका भी भला ही हुआ ।
लेकिन क्या इसकी उल्टी कहावत हो सकती है ? क्यों नहीं ! “ कर बुरा तो हो बुरा ” ये कहावत भी आज अपने सुन ली, अब इसकी कहानी भी पढ़ लीजिये –
कर बुरा तो हो बुरा कहानी
एक बार की बात है, एक गाँव में एक वैद्यजी रहते थे । वैद्यजी के पास कभी कभार कोई मरीज आता था क्योंकि उस गाँव में ज्यादातर लोग बीमार नहीं पड़ते थे । इससे वैद्यजी की आजीविका में बहुत समस्या आती थी । एक दिन वैद्यजी अपनी झोपड़ी से बाहर निकले और एक पेड़ के नीचे जाकर बैठे । तभी उन्हें उस पेड़ के कोटर में एक सांप दिखाई दिया । वैद्यजी सोचने लगे कि अगर यह सांप किसी को काट खाए तो कितना अच्छा हो । मैं उसे ठीक करके अच्छा खासा धन कमा सकता हूँ ।
तभी वैद्यजी की नजर सामने खेल रहे बच्चों पर पड़ी । उन्होंने बच्चो के पास जाकर कहा – “ देखो ! बच्चों उस पेड़ के कोटर में मिट्टू मिया बैठे है ।” बच्चे तो बच्चे होते है, उनमें से एक बच्चा दौड़ा और सीधे जाकर कोटर में हाथ डाल दिया । संयोग से सांप की मुण्डी उसके हाथ में आ गई । जैसे ही उसने बाहर निकाला तो डर के मारे उछाल दिया । नीचे अन्य बच्चों के साथ वैद्यजी खड़े थे । सांप सीधा वैद्यजी के ऊपर आकर गिरा और कई जगह डस लिया । तड़पते हुयें वैद्यजी की जान निकल गई ।
इसलिए कहते है – “ कर बुरा तो हो बुरा ”
शिक्षा – दोस्तों ! इसलिए मनुष्य को हमेशा दूसरों का भला सोचना चाहिए, और भला ना हो सके तो कमसे कम बुरा तो नहीं सोचना चाहिए ।