किसी समय की बात है । एक गाँव में एक किसान रहता था । किसान बड़ा ही किस्मत वाला था । बहुत सारी जमीन, जायदाद और जानवर उसे विरासत में मिले थे । उन्हीं जानवरों में एक काफी पुराना बैल था, जो अब लगभग बुड्ढा हो चूका था । बाकि जानवर तो जंगल में चरने जाते थे लेकिन बुड्ढा बैल ज्यादा नहीं चल पाने के कारण आस – पास ही खेत की मेड़ो पर चरकर अपना पेट भर लेता था ।
दुर्योग से बैल एकदिन चरते – चरते एक खेत के किनारे बने सूखे कुएं के पास पहुँच गया और अचानक से फिसलकर उसमें गिर गया । ईश्वर का भला हो, कुएं में मिट्टी ही मिट्टी थी । इसलिए बैल को ज्यादा खास चोट नहीं आयी । लेकिन उसकी एक टांग टूट गई ।
लंगड़ाते हुए उठकर बैल ने चिल्लाना शुरू किया । बैल की आवाज सुनकर आस – पास के खेतों में काम कर रहे लोग इकठ्ठे हो गये । सभी बैल को निकालने की अपनी – अपनी तरकीबे लड़ा रहे थे । बैल भी गर्दन ऊपर करके मासूमियत से लोगों को देखकर लंगड़ाते कुएं में चक्कर लगा रहा था । बैल रुकता, लोगों को देखता और फिर बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ता, लेकिन उस मूक प्राणी को क्या समझ कि कुएं से निकलने का केवल और केवल एक ही रास्ता है और वह भी उसकी पहुँच से दूर है ।
इतने में लोगों ने उस किसान को भी बुला लिया जिसका बैल था । किसान कुएं के किनारे बैठकर सोचने लगा कि “ ये बैल तो हो चूका है बुड्ढा, इससे अब कोई काम तो होना है नहीं, ऊपर से इसकी टांग भी टूट गई । ठीक भी होगी या नहीं । इसको अभी बाहर निकालेंगे तो परिश्रम भी बहुत लगेगा और यदि ये चल – फीर नहीं सका तो बैठे – बैठे इसको खिलाना भी पड़ेगा ।” ऐसा सोचकर किसान ने वहाँ खड़े लोगों से कहा कि “ भाइयों ! बैल तो बुड्ढा हो चूका है, इसे निकालना हमारे बस का काम नहीं । इसलिए जाओ और सब अपना – अपना काम करो ।”
किसान की ऐसी निष्ठुरता को देखकर वहाँ बैठे एक युवक का दिल पिघल गया । उसका न होते हुए भी वह बैल को बचाना चाहता था । लेकिन वह अकेला कुछ नहीं कर सकता था और किसान की स्वीकृति के बिना वह कर भी क्या सकता था । तभी उसे एक युक्ति सूझी ।
वह युवक किसान के पास गया और बोला – “ भाई ! जिस बैल ने जीवनभर तुम्हारी सेवा की है, तुम्हारा साथ दिया है, उसे ऐसे ही छोड़ना ठीक नहीं । हम इसे बाहर नहीं निकाल सकते तो ना सही, लेकिन इसे दफ़न तो कर ही सकते है ।”
युवक की बात सुनकर सभी लोगों ने सहमती जताई । किसान भी यथाशीघ्र इस बैल से अब छुटकारा पाना चाहता था अतः वह भी राज़ी हो गया । फिर क्या था । सभी लोग कुएं में मिट्टी गिराने लगे ।
बैल समझ चूका था कि लोग उसे दफ़न करने वाले है । लेकिन वह भी कोनसा हार मानने वाला था । जैसे ही लोग बैल पर मिट्टी गिराते, वह उसे झटककर उसके ऊपर खड़ा हो जाता । आरंभ में तो मिट्टी डालने के कारण कुएं में धुल ही धुल हो गयी जिसके कारण किसी को कुछ दिखाई नहीं दिया । लेकिन जब आधा कुआ मिट्टी से भर गया तो लोगों को पता चला कि बैल तो अभी भी जिन्दा है और बराबर बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है । तब लोगों ने उसके ऊपर मिट्टी डालना बंद कर दिया और एक तरफ मिट्टी डालने लगे । आखिरकार बैल कुएं से बाहर आ गया ।
बैल की हिम्मत को देखकर किसान ने भी अपना विचार बदल दिया और ख़ुशी – ख़ुशी उसे अपने घर ले आया । आखिर उस युवक की युक्ति काम आ ही गई ।
शिक्षा – इस कहानी से सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा यह मिलती है कि “ जरूरत पड़ने पर लोग स्वार्थी हो जाते है ।” यह जीवन का कटु सत्य है । लेकिन यह भी जरुरी नहीं कि सभी कृतघ्न हो ।
इस कहानी से दूसरी महत्वपूर्ण शिक्षा यह मिलती है कि
कोशिश करने वालों की जीवन में कभी हार नहीं होती
हिम्मत हो मुश्किलों से लड़ने की तो, जिन्दगी लाचार नहीं होती
मुश्किलें तो होती ही है, मन को मजबूत बनाने के लिए
मुश्किलें ही ना हो जीवन में तो मंजिल कभी आसार नहीं होती