बांटने का नियम
एक बार की बात है । एक गाँव में मनोहर नाम का बालक रहता था । बहुत छोटा होने से मनोहर अभी स्कूल नहीं जाता था । इसलिए वह घर पर ही खेलता रहता था । मनोहर के माता – पिता का उस पर अधिक ध्यान नहीं था लेकिन उसके दादा जी उसकी जरूरत को समझते थे ।
सोचिये ! जिस समय बच्चे को माता – पिता, घर परिवार और समाज की सबसे ज्यादा जरूरत हो, उस समय यदि वह उनके साथ न हो तो उसका विकास कैसा होगा ?
हमेशा याद रखियेगा ! जिन बच्चों को बचपन में माता – पिता बच्चा समझकर उपेक्षित कर देते है । वही बच्चे बड़े होकर माता – पिता को बड़ा समझकर उपेक्षित करते है । इसलिए बच्चों के साथ हमेशा बच्चों की तरह व्यवहार करें । कहीं आप अपने बडप्पन के अहंकार को तुष्ट करने के चक्कर में बच्चों की नजर में अपनी अहमियत को न घटा ले ?
दादाजी मनोहर की जरूरत को समझते थे और प्रतिदिन शाम को वह उसे कभी नदी तो कभी तालाब के किनारे घुमने के लिए ले जाते थे । घूमते – घूमते दादाजी उसे बहुत ही मनोरंजक और शिक्षाप्रद कहानियां सुनाते थे । इसलिए मनोहर अपने घर में अपने दादा को सबसे अधिक प्रेम करने लगा ।
शिक्षाप्रद कहानियां और प्रेरक – प्रसंग महानता के वे बीज है जो बचपन में ही बो दिए जाने चाहिए । क्योंकि जवानी में इतने अधिक आंधी और तूफान आते है कि ये बीज पनप ही नहीं पाते और बुढ़ापा तो बंजर भूमि की तरह है, जिस पर बोया कुछ भी जा सकता है लेकिन उगता कुछ नहीं ।
मनोहर प्रतिदिन हाथ – मुंह धोकर दादाजी के साथ संध्या करता था । धीरे – धीरे बरसात का समय आया और एक दिन बहुत तेज वर्षा हुई । तेज वर्षा के कारण जो नदी पहले स्थिर थी लेकिन अब वह बहने लगी ।
आज फिर मनोहर दादाजी के साथ गुमने आया । पहली बार मनोहर ने नदी को बहते हुए देखा था । वह दादाजी से पूछ बैठा – “ दादा ! यह नदी कहाँ जा रही है ?” दादा मुस्कुराते हुए बोले – “ बेटा ! यह वहाँ जा रही है, जहाँ इसकी जरुरत है !”
उत्सुकता से मनोहर बोला – “ तो दादा ! क्या यह खाली हो जाएगी ।” बच्चे की बचकानी बातों पर हँसते हुए दादा बोले – “ नहीं ! यह खाली तो होगी लेकिन सूखेगी नहीं ।”
मनोहर ने पूछा – “ कैसे नहीं सूखेगी ?” दादाजी बोले –“ क्योंकि यह बांटने के नियम का पालन करती है ।”
“ बाँटने का नियम – यह क्या होता है ?” – उत्सुकता से मनोहर ने पूछा ।
दादाजी ने मनोहर को इशारा करके अपने पीछे आने को कहा । वह मनोहर को एक तालाब के किनारे ले गये । पहले उस तालाब में थोड़ा पानी था, लेकिन अब तालाब जल से इतना भरा कि उसका बांध टूट और जल की एक बूंद नहीं रही ।
अब दादाजी ने मनोहर से कहा – “ देखो बेटा ! कल इस तालाब के पास नदी से ज्यादा जल था तो क्या कारण है कि आज इसके पास एक बूंद भी नहीं बची ? ” मनोहर को दिख रहा था कि तालाब चारों ओर से टूट चूका है इसलिए उसमें एक बूंद भी नहीं । यही बात उसने दादाजी को कही ।
अब दादाजी उसे समझाते हुए बोले – “ बेटा ! तालाब ने बाँटने के नियम का पालन नहीं किया इसलिए उसके पास कुछ नहीं बचा जबकि नदी हमेशा से बाँटने के नियम का पालन करती रही इसलिए उसके जल में कभी कमी नहीं आई । अपने मुलभुत जल के अलावा जब भी नदी के पास अतिरिक्त जल होता वह उसे दूसरी नदियों और तालाबों को बाँट देती । इसलिए उसका जल हमेशा स्वच्छ और अक्षुण बना रहता है ।”
“ इस प्रकृति में जो भी इस बाँटने के नियम का पालन करता है वह हमेशा नदी की तरह भरापूरा रहता है और जो तालाब की तरह केवल संग्रह करता है । एक दिन अपना सबकुछ गवां देता है । इसलिए बेटा ! जीवन में अपनी मुलभुत आवश्यकताओं के पश्चात् जो भी उपार्जन हो उसे परोपकार में लगा देना । तो नदी की तरह हमेशा स्वच्छ और आनंदित रहोगे ।”
दादा की यह सीख मनोहर के ह्रदय उतर गई थी । अपने जीवन में उसने यही बात लोगों को समझाई । क्योंकि लोग यही गलती कर रहे थे । वह साझे के सिद्धांत से अनजान है ।
हमें भी साझे के सिद्धांत को समझे और अपने जीवन को सुखमयी और सफल बनाये ।
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