गणेश चतुर्थी
सभी त्योहारों की तरह गणेश चतुर्थी भी हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है जो पुरे भारत सहित महाराष्ट्र में बड़े ही हर्ष के साथ मनाया जाता है । पौराणिक आख्यानों के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी का जन्मदिन माना जाता है । उसी ख़ुशी में गणेश पूजन किया जाता है । भगवान श्रीगणेश के जन्मदिन के इस पावन पर्व पर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा की स्थापना की जाती है तथा विधिवत दस दिनों तक उनका पूजन किया जाता है । दसवे दिन बड़े ही धूमधाम से श्री गणेश की प्रतिमा को किसी नदी तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है । इस बार गणेश चतुर्थी 13 सितम्बर 2018 गुरुवार हो है ।
गणेशजी की प्रतिमा को विसर्जित क्यों किया जाता है ?
एक पौराणिक कथानक है । एक बार त्रिकालदर्शी महर्षि वेदव्यास ने श्री गणेश से प्रार्थना की कि वह महाभारत लिखने में उनकी सहायता करे । तब श्री गणेश जी वेदव्यास जी के कहने पर महाभारत का लेखन करने लगे । वेदव्यास जी बताते और गणेश जी लिखते । इस तरह दस दिन में महाभारत का लेखन सम्पन्न हो पाया । किन्तु दस दिन लगातार लिखने की वजह से गणेशजी का तापमान बहुत अधिक हो गया । इसलिए उन्हें पास के सरोवर में डुबकी लगानी पड़ी । यही कारण है कि गणेश उत्सव पर दस दिन तक गणेशजी का पूजन करने के बाद दसवे दिन अनंत चतुर्दशी को उन्हें किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है ।
गणेश उत्सव का इतिहास
गणेशोत्सव विशेषकर महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है लेकिन फिर भी इसे देश के लगभग सभी प्रान्तों में मनाया जाता है । यह उत्सव भाद्रपद महीने की शुक्ल चतुर्थी से दस दिन अर्थात अनंत चतुर्दशी के दिन तक मनाया जाता है । वैसे तो भगवान गणपति की पूजा और स्थापना शिवाजी महाराज के समय से चली आ रही है । शिवाजी महाराज की माँ जीजाबाई ने गणपति की स्थापना करके इस पूजन का शुभारम्भ किया था ।
वर्तमान गणेश उत्सव के भव्य रूप का श्रेय लोकमान्य बालगंगाधर तिलक को जाता है, क्योंकि उन्होंने इसे राष्ट्रिय एकता के प्रतीक के रूप में सार्वजानिक रूप से मनाना शुरू किया था । इससे पहले गणेश पूजन केवल घर परिवार तक सिमित था । सब अपने – अपने घरों में गणपति की स्थापना करते थे और विसर्जित कर देते थे । ऐसे समय में तात्कालिक सामाजिक छुआछूत, जातिगत भेदभाव और वैमनस्य का उन्मूलन करने तथा सामाजिक एकता को स्थापित करके आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए बालगंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को माध्यम बनाया था । जिसने आगे चलकर एक क्रन्तिकारी आन्दोलन का रूप ले लिया और आजादी की लड़ाई में अहम् भूमिका निभाई ।
लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के गणेश उत्सव का मुख्य उद्देश्य सभी जाति वर्ग के लोगों को एक मंच पर खड़ा करके आजादी की लड़ाई के लिए तैयार करना था । इसका शुभारम्भ 1893 की गणेश चतुर्थी को हुआ था । वैसे तो फिरंगी लोग भारतीय लोगों को एक साथ इकठ्ठा नहीं होने देते थे । इसलिए गणेश उत्सव की आड़ में भारतीय लोग आजादी के आन्दोलन की रुपरेखा तैयार करते थे ।
गणेश जी के जन्म की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर राक्षसों से युद्ध लड़ने के लिए शिवलोक से दूर गये हुए थे । नंदी आदि सभी शिवजी के साथ युद्ध में गये हुए थे । शिवलोक में माता पार्वती अकेली रह गई थी । तभी उन्हें स्नान की इच्छा हुई किन्तु उन्हें शिवलोक के सुरक्षा की चिंता भी थी । उन्हें डर था कि कहीं शिवजी की अनुपस्थिति में शिवलोक में कोई अन्य प्रवेश न कर जाये । इसलिए शिवलोक की सुरक्षा के लिए माता पार्वती जी ने अपनी शक्ति से एक बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया ।
उन्होंने गणेश को सभी शक्तियां देकर कहा कि मेरे आने तक शिवलोक में किसी को प्रवेश की अनुमति मत देना । इस तरह माता पार्वती जी निश्चिन्त होकर स्नान के लिए चली गई और गणेश शिव लोक की चौकीदारी करने लगे ।
इधर शिवजी राक्षसों से विजयी होकर शिवलोक को आये । युद्ध में विजय की खुश खबरी महादेव सर्वप्रथम माता पार्वती को देना चाहते थे । किन्तु शिवलोक के द्वार पर ही बालक गणेश ने उन्हें रोक लिया । अपने ही घर में जाने से मना करने वाले अबोध बालक पर उन्हें बड़ा क्रोध आया । लेकिन उन्हें क्या पता कि गणेश भी अपनी माता के वचन का पालन कर रहे है । बालक गणेश भी शिवजी की महिमा से अनजान थे ।
दोनों में युद्ध छिड़ गया और शिवजी ने अपने त्रिशूल से बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और अन्दर प्रवेश कर गये । जब यह बात माता पार्वती को पता चली तो वह शिवजी को अपने ही पुत्र के वध की दुहाई देने लगी । पार्वती जी शिवजी से रूठ गई और बालक गणेश को पुनर्जीवित करने का आग्रह करने लगी ।
शिवजी ने कहा – “ बालक गणेश के सिर को फिर से उसके धड़ से जोड़ा तो नही जा सकता किन्तु किसी अन्य जीवित प्राणी का सिर जरुर स्थापित किया जा सकता है ।” तब शिवजी के सेवक जंगल में एक ऐसे प्राणी की खोज में निकल पड़े जो उत्तर की दिशा में सिर रखकर सो रहा हो । तभी उन्हें एक हाथी दिखाई दिया जो उत्तर की दिशा में सिर रखकर सो रहा था । वह उसे उठाकर शिवजी के पास ले गये । शिवजी ने हाथी का सिर सूंड समेत बालक गणेश के धड़ पर जोड़ दिया और उन्हें पुनर्जीवित कर दिया । इस तरह विघ्नहर्ता श्री गणेश भगवान का जन्म हुआ ।
गणेशजी के अन्य रोचक तथ्य
गणेशजी के हाथी के जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहा जाता है ।
किसी भी कार्य के शुभारम्भ में गणेशजी की पूजा होने के कारण उन्हें आदिपुज्य भी कहा जाता है ।
गणेशजी का पेट लम्बा होने के कारण उन्हें लम्बोदर भी कहा जाता है ।
गणेशजी को गणों के राजा और स्वामी होने के कारण गणेश, गणपति, गणराज नामों से भी जाना जाता है ।
गणेशजी का वाहन डिंक नामक मूषक है । गणेशजी को खाने में लड्डू पसंद है ।
एक दन्त होने के कारण गणेशजी को एकदंत भी कहा जाता है । विघ्नों का हरण करने के कारण गणेशजी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है ।
गणेश गायत्री मन्त्र
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
श्री गणेश मन्त्र
वक्रतुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरुमे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा॥
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