तंत्र साधना का दुष्परिणाम – एक सच्ची घटना

तंत्र साधनाओं के मनमोहक लाभों को देखकर अधिकांश लोगो का मन विचलित हो जाता है । बाहरी क्रिया कलापों की सरलता को देखते हुए कोई भी तंत्र साधना करने के लिए तैयार हो जाता है । किन्तु आपको यह जान लेना चाहिए कि तंत्र जितना सरल दीखता है असल में उतना सरल है नहीं !
 
तंत्र उस वियवान जंगल से होकर जाने वाला रास्ता है जो दूर से तो बहुत ही सुन्दर और सुहाना लगता है किन्तु जब उसमें प्रवेश किया जाता है तो उसकी भयानकता का अहसास होता है ।  
तंत्र की इन्हीं कठिनाइयों को देखते हुए विद्वान तन्त्राचार्यों ने तंत्र ग्रंथों को अलंकारिक भाषा में लिखा । जिसे केवल अधिकारी पात्र ही समझ सके ।  अतः तंत्र ग्रंथों में जहाँ – तहाँ जो विधियाँ मिलती है वह फलित नहीं होती, क्योंकि कोई भी विधि पूर्ण रूप से नहीं लिखी हुई है । इसलिए तंत्र का महान विज्ञान सालों से गुरु शिष्य परम्परा से अपना अस्तित्व बनाये हुए है । अतः किसी को भी आवेग में आकर बिना योग्य मार्गदर्शक के अभाव किसी भी तंत्र साधना का अभ्यास नहीं करना चाहिए अन्यथा इसका परिणाम बुरा हो सकता है । कितना बुरा हो सकता है ? यह आप इस घटना से जान पाएंगे !
 
एक बार मैं अपनी माँ से जादू – टोने से सम्बंधित कोई बात कर रहा था तो उन्होंने बताया की यह तंत्र – मन्त्र ठीक नहीं है । मैंने पूछा – “ क्यों ठीक नहीं है ?”
तो माँ ने अपनी भुआ माँ की एक घटना सुनाई
मेरी माँ की भुआ माँ ससुराल में झगड़ा होने की वजह से अपने मायके चली आई । मेरे नानाजी सहित चार भाई थे । किन्तु कुछ ही दिनों बाद सभी भाई अलग – अलग होने लगे । तो मेरी माँ की भुआ माँ मेरे नानाजी ( उनके भतीजे ) के साथ रहने लगी । थोड़े दिनों बाद उन्होंने स्वेच्छा से अलग रहने की इच्छा व्यक्त की तो नानाजी ने उनके लिए अलग से एक घर दे दिया जिसमें वह अकेली रहने लगी ।

मेरी माँ बताती है कि उसकी भुआ माँ उसे हमेशा नयी – नयी कहानियाँ सुनाती थी । जिनमें से बहुत सी कहानियाँ मेरी माँ ने मुझे भी सुनाई है । जिनमें से अधिकांश कहानियाँ पुराने समय की दन्त कथाएं है जो उस समय बहुत प्रचलित थी । यह कथाएँ उस समय के सामाजिक व धार्मिक जीवन का परिचय देती है । उनमें से कुछ कहानियाँ मैंने अध्यात्म सागर पर डाली है ।

मेरी माँ ने बताया कि “ भुआजी तंत्र – मन्त्र में बहुत विश्वास करती थी ।” एक दिन गाँव में एक तांत्रिक बाबा आया । भुआजी ने उसे भोजन कराया । इसी बीच भुआजी ने तांत्रिक बाबा से तंत्र – मन्त्र के रहस्य पूछे, तो उस बाबा ने भुआजी को मसान के पिशाच की सिद्धि की के विधि बताई । किन्तु बाबा ने भुआजी को स्पष्ट कह दिया था कि यदि मसान के पिशाच को सिद्ध करना है तो मन पर कठोर नियंत्रण होना चाहिए साथ ही यदि हो सके तो तंत्र साधना के समय दो रक्षको को साथ रखा जाये । भुआ ने पूरी विधि पूछ ली । तांत्रिक बाबा आशीर्वाद देकर चल दिए ।

एक दिन भुआजी दो रक्षकों को लेकर निश्चित समय पर शमशान में पहुँच गई । जैसे ही भुआजी ने तेल का दीपक जलाकर पिशाच का आव्हान किया, तुरंत तेज हवाएँ चलने लगी । भुआ जिन रक्षको को लेकर गई थी वह भी कमजोर मानसिकता के थे अतः कांपने लगे, किन्तु फिर भी जैसे – तैसे डटे रहे ।

भुआ ने पिशाच की पूजा करके तांत्रिक के बताये मन्त्र का जाप करना शुरू किया । मन्त्र का जाप चल ही रहा था कि हवाएं और अधिक तेज हो गई । जिन दो रक्षको को लेकर भुआ आई थी, अब वह बहुत अधिक डर चुके थे । भयंकर हवाओं और आँधियों के बावजूद वह पसीने से भीगने लगे । वह निश्चय कर चुके थे कि यह बुढियां मरे तो मरे, हम तो चले और वह वहाँ से भाग लिए ।

उनके भागने से भुआ के मन में संकोच आ गया । वह बीच साधना में पहुँच चुकी थी किन्तु अपने मन को तैयार नहीं कर पा रही थी । वह स्वयं भी अब बहुत अधिक डर चुकी थी । उन्होंने भी साधना छोड़कर भागने का निश्चय किया । किन्तु जैसे ही वह साधना से उठी श्मशान का पिशाच प्रकट हुआ ।

इसके पश्चात् सुबह लोगों ने देखा कि भुआ परलोक सिधार चुकी थी । पिशाच ने उनके साथ क्या किया ? कोई नहीं जानता । या फिर वह अपने ही डर से काल के गाल में समा गई ।

असल में तंत्र इतना सरल नहीं जितना की लोग समझते है । भुआ की पहली गलती थी कि वह बिना खुद को मजबूत बनाये तंत्र साधना के समर में कूद पड़ी । दूसरी गलती थी कि रक्षकों का गलत चुनाव । असल में रक्षक डर कर नहीं भागते तो कोई कारण नहीं था कि भुआ के मन में संकोच होता । यदि संकोच और डर नहीं होता तो वह साधना भी नहीं छोड़ती और फिर यह सब भी नहीं होता । इसे कहते पात्रता के अभाव में साधना के दुष्परिणाम ।

तंत्र एक स्वतन्त्र विज्ञान है । विज्ञान में विकास और विनाश दोनों की सामर्थ्य होती है । आधुनिक अविष्कार और परमाणु बम जैसे हथियार इसके प्रत्यक्ष उदहारण है । बेशक ! तंत्र बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो सकता है किन्तु उसकी सही विधि व्यवस्था को समझे बिना साधना समर में कूदने का मतलब है मौत को गले लगाना । इसलिए योग के निरापद मार्ग का अवलंबन लीजिये और आध्यात्मिक उन्नति कीजिए ।

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नोट – इन पंक्तियों में अध्यात्म सागर ने कोई विधि नहीं बताई है । अतः इसके आधार पर किसी तांत्रिक विधि का प्रयोग नहीं करें । यह आलेख केवल जानकारी के लिए प्रस्तुत किया गया है । यदि इसका प्रयोग करके आपको किसी प्रकार की कोई हानि होती है तो उसके लिए अध्यात्म सागर जिम्मेदार नहीं होगा ।

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