एक बार नारदजी पृथ्वीलोक पर घुमने आये । एक जंगल से गुजर रहे थे कि रास्ते में एक तपस्वी बैठा तपस्या कर रहा था । उसने नारदजी को देखा तो साष्टांग दण्डवत् किया और पूछा – “ महर्षि कहाँ से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो ?”
नारदजी मुस्कुराते हुए बोले – “ पृथ्वीलोक के भ्रमण पर आया था, अभी विष्णुलोक प्रभु के दर्शन के लिए जा रहा हूँ ।” यह सुनकर तपस्वी खुश हो गया ।
उसने नारदजी से कहा – “ मुनिवर ! अगली बार जब आना हो तो मेरा प्रश्न प्रभु से पूछते आइयेगा कि मुझे दर्शन कब देंगे ?”
नारदजी बोले – “ जरुर मित्र ! अगली बार जब भी आना हुआ, मैं तुम्हारा प्रश्न जरुर पूछ आऊंगा ।” इतना कहकर नारदजी चल दिए । प्रभु का सुमिरन करते हुए नारदजी कब विष्णुलोक पहुँच गये, पता ही नहीं चला ।
भगवान विष्णु को प्रणाम कर नारदजी ने तपस्वी वाला प्रश्न पूछा – “ अरे नारद ! अभी तो उसके कई जन्म बाकि है, ८४ लक्ष योनियों में से अभी तो अभी तो आधी योनियों में उसका भ्रमण बाकि है । इसके समाप्त होने के बाद ही उसे दर्शन देना संभव है ।”
जब नारदजी पृथ्वीलोक गये तो सबसे पहले उस तपस्वी के पास गये और उसके प्रश्न का उत्तर देकर उसे आश्वस्त कर दिया ।
तपस्वी इतनी लम्बी कालावधि बाद दर्शन होने की बात सुनकर भी अधीर नहीं हुआ । उसके लिए इतना विश्वास ही काफी था कि देर – सवेर प्रभु दर्शन अवश्य देंगे । अपने इसी विश्वास को दृढ़ करते हुए वह अपने पापों के प्रायश्चित के लिए वह दुगुने उत्साह से तप करने लगा । वह न तो क्षुब्ध हुआ न ही हताश और निराश । उसके इस अविचल धैर्य और विश्वास को देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो गये । उन्होंने बिना कोई देर किए तुरंत उसे दर्शन दे दिए और मनोवांछित वरदान भी दे गये ।
जब तीन दिन बाद नारदजी उसी रास्ते से दौबारा वापस लौटे तो तपस्वी बड़ा खुश मिजाज मालूम हुआ । सहसा नारदजी से रहा नहीं गया और पूछ बैठे – “ क्यों भाई ! इतने खुश क्यों हो रहे हो ? एक भक्त के लिए भगवान के दर्शन ही सबकुछ होते और वो तो तुम्हे लाखों जन्मों बाद होंगे । फिर खुश क्यों हो रहे हो ?”
नारदजी की बाद सुनकर तपस्वी मुस्कुराते हुए बोला – “ नहीं ऋषिवर ! आपके जाने के दुसरे दिन ही मुझे प्रभु ने दर्शन दे दिए । साथ ही अखण्ड भक्ति की वरदान भी दिया है ।”
यह बात सुनते ही नारदजी का चेहरा उतर गया । वह सीधे विष्णुलोक गये और जाकर भगवान से शिकायत की – “ क्यों प्रभु ! आपने तो मुझे कहा था कि तपस्वी को दर्शन लाखों जन्मों बाद होंगे और आपने एक ही दिन में दर्शन देकर मुझे झूठा सिद्ध करवा दिया । क्यों किया ऐसा आपने ?”
भगवान विष्णु मुस्कुराते हुए बोले – हे नारद ! मेरे दर्शन किसी को भी देश, काल और परिस्थिति के अनुसार नहीं, मनस्थिति के अनुसार होते है । जिसमें असीम धैर्य और अटूट विश्वाश है, उसके लिए तो मैं सर्वदा उसके समीप हूँ । मेरे दर्शन में देर तो उनको लगती है, जिनमें सब्र नहीं होता । जो हर समय उतावली में रहते है । उसके प्रश्न से मुझे उसमें अधैर्य प्रतीत हुआ अतः मैंने लाखों जन्मों की बात कहीं लेकिन जब इतनी लम्बी समयावधि मिलने पर भी वो ख़ुशी – ख़ुशी अपने साधन में लगा रहा तो मुझे उसमें असीम धैर्य प्रतीत हुआ । अतः मैंने तुरंत दर्शन दे दिया ।”