एक बार की बात है । एक गाँव में तीन मित्र रहते थे । नाम था – अपूर्व, आनंद और अमिश । तीनों हमेशा साथ – साथ रहते थे । उनके सपने बड़े – बड़े थे लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए उनके पास पर्याप्त धन नहीं था । इसलिए वह अक्सर तूर्त – फूर्त में धनवान बनने के तरीके खोजते रहते थे । घर में जो भी काम करते उसका सारा पैसा उनके पिताजी के पास रहता था । और पिताजी भी इतने कंजूस कि केवल जरुरी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए ही पैसा देते थे । अतः तीनों मित्र अपने – अपने जीवन से बहुत ही दुखी हो चुके थे ।
दिनभर के काम – काज से निपटने के बाद तीनों अक्सर शाम के समय टहलने जाते थे । इसी तरह आज भी तीनों नदी किनारे मिले । एक दुसरे के हाल – चाल पूछने के बाद थोड़ा गंभीर होते अपूर्व बोला – “ मैं तो गाँव के काम से तंग आ गया हूँ, सोच रहा हूँ शहर चला जाऊ । कमसे – कम पैसा तो टाइम पर मिल जायेगा । आजकल के लोग काम निकलने के बाद पैसा देने में बहुत आनाकानी करते है ।”
अपूर्व बड़े ही गंभीर स्वभाव का एक जिम्मेदार लड़का था लेकिन दुर्भाग्य कि वह आनंद और अमिश जैसे निकम्मे दोस्तों की संगत में रहता था । आनंद और अमिश अपने घर वालों की डांट के डर से मज़बूरी में काम पर जाते थे और जो मिलता उसका आधा ही अपने घर देते बाकि पैसा मौज – मस्ती में उड़ा देते थे ।
अपूर्व की बात सुनकर आनंद के मन में एक खुरापाती खयाल आया । उसने झट से अमिश को एक तरह ले जाकर उसे बताया । अमिश झट से मान गया । अब दोनों अपूर्व को मनाने पहुँचे । आनंद बोला – “ देखो भाऊ ! अगर तुम मेरी बात मानो तो तुमको शहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी ।”
अपूर्व भी खुश हो गया । अगर कोई ऐसा तरीका है जिससे कि उसे शहर नहीं जाना पड़े तो बहुत बढ़िया बात है । अतः उसने झट से बोला – “ बताओ ! ऐसी कोनसी बात है जो मेरी परेशानी का हल कर सकती है ?”
बीच में ही अमिश बोला – “ देख ! हमारे गाँव का मुखिया लखपति है । अगर उसके घर से थोड़ा धन उड़ा ले तो हमारा भी काम हो जायेगा और किसी को पता भी नही चलेगा ।”
अपूर्व हँसते हुए बोला – “ तुम्हारा मतलब अब हम चोरी करेंगे ?”
तो आनंद बोला – “ और नहीं तो क्या ! तेरे को पता है वहाँ शहर में रहने का खर्चा कितना होता है, और वैसे भी तेरा काम कोई पहले से सेट तो है नहीं जो जाते ही संभाल लेगा । ज्यादा हरिश्चन्द्र बनने की जरूरत नहीं, मेरी बात मान, रातों – रात अमीर हो जायेगा ।”
आखिर अपूर्व लोभ के चक्कर में आनंद और अमिश की बातों में आ ही गया ।
योजना के अनुसार उस रात वह तीनों उस गाँव के मुखिया के घर चोरी करने वाले थे । मुखिया उस गाँव का सबसे धनवान व्यक्ति था अतः उसके घर में काफी मात्रा में धन दौलत और जेवर मिलने वाले थे । इसलिए उन्होंने मुखिया को चुना ।
इसके लिए उन्होंने अपने घर वालों से शहर में काम करने के लिए जाने का बहाना बनाया और तीनो उसी दिन निकल गये । तीनो दोस्तों ने पूरा दिन गाँव से दूर एक पहाड़ी पर बिताया और रात होते ही गाँव में घुसकर छिप गये ।
रात को सबके सो जाने के बाद तीनो दोस्त निकले और मुखिया के घर पीछे जाकर खोदना शुरू कर दिया । गर्मी के दिन थे अतः सभी खुली हवा में बाहर सो रहे थे । बड़ी ही चालाकी से तीनो दोस्तों ने घर में घुसकर सारे जेवर उठाकर एक कपड़े में बांध लिए और सुबह होते – होते जंगल की ओर भाग गये ।
उसी पहाड़ी वाले ठिकाने पर जाकर उन्होंने विश्राम लिया । लेकिन अब बड़े जोर से भूख लगी थी । लेकिन पहाड़ी में खाना कहाँ मिले । तीनो दोस्तों में इस बात को लेकर बहस होने लगी कि खाना लेने कौन जायेगा ? आख़िरकार यह तय हुआ कि अपूर्व खाना लेने जायेगा और आनंद और अमिश दोनों धन की रखवाली करेंगे ।
अपूर्व पास के ही एक गाँव की ओर रवाना गया । इधर यह दोनों पहाड़ की गुफा में बैठकर आपस में बातचीत कर रहे थे । लोभ के आवेश में अमिश बोला – देख ! धन के तीन बंटवारे होंगे तो सबके हिस्से में थोडा – थोड़ा धन ही आयेगा । इसलिए ऐसा करते है कि इसके दो ही बंटवारे कर लेते है और उसे मारकर पहाड़ी से निचे फेंक देंगे । किसी को पता भी नहीं चलेगा ।
“ हमेशा याद रखे ! बुरे विचार और इरादे आसमान में फेंके गये उस पत्थर की तरह है, जो लौटकर जरुर आते है, और फेंकने वाले का ही नुकसान कर सकता है ।”
उधर वह खाना लेकर आ ही रहा था कि उसके मन में भी यही लोभ का विचार आया । उसने सोचा – अगर मैं इस खाने में जहर मिला दूँ तो सारा धन मेरा हो सकता है । यह सोचकर उसने भी खाने में जहर मिला दिया ।
अब जैसे ही वह खाना लेकर वह पहाड़ी पर पहुंचा, उसके दोनों साथियों ने खाना उसके हाथों से छिनकर उसे पहाड़ी से नीचे गिरा दिया । वह बिचारा तो मर गया लेकिन अब जैसे ही इन दोनों ने वह जहर का खाना खाया, ये दोनों भी परलोक सिधार गये ।
इसलिए कहा गया है – “ कर भला तो हो भला, बुरे का अंजाम हमेशा बुरा ही होता है ।”
अगर आप बता सके तो बताइए – दोषी कौन ?