एक बार एक राजा भरे दरबार में अपनी प्रजा की ईमानदारी और नीति निष्ठा की खुलकर बड़ी प्रशंसा कर रहा था । सभी महाराज की हाँ में हाँ मिलाये जा रहे थे । पुरे राजदरबार में महाराज की वाह – वाह हो रही थी ।
किन्तु तभी महाराज की नजर महामंत्री पर पड़ी । वह उदासीन बैठे मंद – मंद मुस्कुरा रहे थे, जैसेकि मूर्खो की सभा में बैठे हो । महामंत्री की यह व्यंगपूर्ण मुस्कान महाराज को चुभ गई । उन्होंने महामंत्री से पूछा – “ क्या महामंत्री हमारी बात से सहमत नहीं है ?”
महामंत्री राजा की बात से असहमति जताते हुए खड़े होकर बोले – “ जी महाराज ! हम आपकी बात से सहमत नहीं है” ।
राजा बोला – “ क्या हम वजह जान सकते है ?”
महामंत्री बोला – “ महाराज ! प्रजा में ईमानदारी और नीति निष्ठा तभी तक जीवित है, जब तक कि उनपर सामाजिक अनुशासन का शिकंजा कसा हुआ है । यदि सबको एक दिन के लिए भी खुली छुट दे दी जाये तो कोई भी बेईमानी करने से नहीं चुकेगा ।”
महामंत्री की यह बात महाराज के गले नहीं उतरी । उन्होंने कहा – “ क्या तुम इस बात का कोई प्रमाण दे सकते हो ?”
महामंत्री ने कहा – “ अवश्य ! आप मुझे दो दिन की मोहलत दीजिये । मैं इसे सिद्ध कर दूंगा ।”
दो दिन बात महाशिवरात्रि का उत्सव था । एकांत में महामंत्री ने राजा से कहा – “ महाराज ! दो दिन बाद महाशिवरात्रि का उत्सव है । मेरी इच्छा है कि इस बार आप विशाल शिवाभिषेक का आयोजन करें।”
राजा महामंत्री की कोई बात नहीं टालता था । अतः उसने तुरंत आदेश दे दिया कि “ इस बार हम शिवजी का महान अभिषेक करेंगे । इसके लिए समस्त नगर वासियों से आग्रह है कि एक – एक लौटा दुग्ध राज्य के दुग्ध कोश में जमा करावे ।”
यह सारी व्यवस्था महामंत्री को ही देखनी थी । अतः उन्होंने दुग्ध संग्रह करने के कड़ाहे बगीचे में रखवाएं । वहाँ न तो रौशनी की व्यवस्था की गई न ही को पहरेदार रखे गये । दुग्ध जमा करने का समय सूर्यास्त के बाद रखा गया । इसकी घोषणा पुरे राज्य में कर दी गई ।
राज्यभर में यह खबर फ़ैल चुकी थी कि दूध के कड़ाहे बगीचे में रखे गये है । जहाँ न तो कोई पहरेदार है न ही प्रकाश की कोई व्यवस्था है । बस फिर क्या था । सभी घरों से लोग यह सोचकर पानी के लौटे भरकर ले जाने लगे कि “ इतने सारे दूध में हमारे एक लौटे पानी का किसी को क्या पता चलेगा !”
सुबह हुई और महामंत्री महाराज को दूध दिखाने के लिए ले गये । कड़ाहे का ढक्कन हटाया गया तो राजा देखकर सन्न रह गया । कड़ाहो में दूध की जगह केवल पानी भरा था ।
राजा ने महामंत्री से इसका कारण पूछा तो महामंत्री बोला – “ महाराज ! ये है सामाजिक अनुशासन के अभाव में आपकी प्रजा की ईमानदारी और नीति निष्ठा ।”
असमंजस से राजा ने पूछा – “ मैं कुछ समझा नहीं ।”
महामंत्री बोला – “ महाराज ! दो दिन पहले राजदरबार में आप प्रजा की खूब प्रशंसा कर रहे थे । तब मैंने उस प्रशंसा में असहमति जताई थी । तब आपने प्रमाण माँगा था । यह उसी बात का प्रमाण है । मैंने इन दूध के कड़ाहो के आसपास न तो प्रकाश की व्यवस्था की न ही कोई पहरेदार तैनात किया । परिणाम आपके सामने है । इसलिए मैंने कहा था कि मौका मिलने पर कोई भी व्यक्ति बेईमान होने से नहीं चुकता ।”
राजा महामंत्री की सुझबुझ से बड़ा प्रसन्न हुआ । राजा को अब समझ में आ गया कि सामाजिक अनुशासन के अभाव में कोई भी बेईमान हो सकता है ।
शिक्षा – इस छोटी सी कहानी में हर सामान्य व्यक्ति की ईमानदारी का रहस्य छुपा है । हमारी राजनीति में ईमानदार वही राजनेता और कर्मचारी रहे है, जिन्हें घुस खाने का मौका नहीं मिला हो । यदि बड़े से छोटे स्तर पर देखा जाये तो यह बात बराबर सत्य सिद्ध होती है । अब आप ग्रामीण स्तर पर ही देख लीजिये । गरीब व्यक्ति से लेकर सरपंच तक सभी नरेगा का पैसा मुक्त में खा रहे है । गरीब व्यक्ति काम नहीं करना चाहता लेकिन पैसा चाहिए । आधा सरपंच और उसके चमचे रखते है और आधा उस व्यक्ति को मिल जाता है, जिसके नाम से पैसा आता है । अब दोनों सोच रहे है कि हम सरकार को चुना लगा रहे है, लेकिन वो भूल रहे है कि सरकार उनसे भी आगे है । सरकार ने ही विकास के नाम पर विदेशो से कर्जा लेकर देश को कर्जदार बना रखा है । इस सिस्टम में ईमानदारी खोजते फिरों तो भी नहीं मिलने वाली ।
नोट – मेरे कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि सभी बेईमान है । आज भी ऐसे तटस्थ लोग है जो कर्म सिद्धांत में विश्वास रखते है और एक पैसे की भी बेईमानी नहीं करते । शायद ऐसे ही आदर्शवादी और महान लोगों के कारण यह दुनिया अब भी टिकी हुई है । मेरे ऐसे नीति निष्ठ भाइयों को शत – शत नमन !