एक बार की बात है, कि महर्षि वेदव्यास अपने आश्रम में तरुण ब्रह्मचारियों को व्याख्यान दे थे । इस व्याख्यान के दौरान वे बता रहे थे, कि तरुण ब्रह्मचारियों को स्त्रियों से हमेशा सावधान और सतर्क होना चाहिए । क्योंकि काम का आवेग बहुत शक्तिशाली होता हैं । अतः किसी भी ब्रह्मचारी के शिकार हो जाने का खतरा हैं ।
यह सुनकर वहाँ उपस्थित ब्रह्मचारियों में से एक तरुण ब्रह्मचारी खड़ा हुआ और बोला “गुरूजी ! आपका कथन गलत हैं । मुझे कोई भी स्त्री अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती । मैं पूर्ण ब्रह्मचारी हूँ ।” वेदव्यास जी बोले – “जैमिनी ! तुम्हे जल्द ही अनुभव हो जायेगा । मैं अभी कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ । मैं तीन महीने में लौटूंगा । सावधान रहना । और अहंकार में आकर अपनी अति प्रशंसा मत करना ।”
महर्षि वेदव्यास ने अपनी योगिक शक्ति से एक ऐसी सर्वांगपूर्ण सुंदर युवती का रूप धारण कर लिया । जिसके ह्रदय को भेदने वाले तीखे नयन, जिसका चेहरा सोम्य की तरह सुहावना और मोहक तथा जिसका शरीर अति सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित था । यह सुंदर युवती संध्या के समय एक पहाड़ पर एक पेड़ के नीचे जाकर खड़ी हो गई । अकस्मात बादल इकट्ठे हो गए और वर्षा प्रारंभ हो गई ।
संयोग से उस समय जैमिनी भी जंगल से आते हुये पेड़ के पास से ही गुजर रहा था । उस युवती को जंगल में ऐसे अकेला देख उसे दया आ गई । उसने उसे संबोधित करते हुये कहा – अरे ! ओह देवी जी ! अगर आप बुरा ना माने तो मेरे साथ आकर मेरे आश्रम में ठहर सकती हैं ।” युवती बोली –“क्या तुम अकेले रहते हो ?, क्या वहाँ कोई अन्य स्त्री हैं ? जैमिनी ने कहा – “मैं अकेला हूँ , परन्तु आप निश्चिन्त रहिये देवी ! मैं पूर्ण ब्रह्मचारी हूँ । मुझे काम पीड़ित नहीं कर सकता । मैं सम्पूर्ण विकारों से मुक्त हूँ । आप वहाँ निशंक रह सकती हैं ।”
युवती बोली – “एक तरुण कुमारी कन्या का एक ब्रह्मचारी के साथ रात्रि में अकेले रहना उचित नहीं हैं ।” जैमिनी ने कहा – “ओह देवी ! भयभीत मत होइये । मेरा विश्वास कीजिए । मेरा ब्रह्मचर्य पूर्ण हैं । मैं शपथ लेता हूँ कि आपको कोई हानि नहीं होंगी ।” तब युवती रात्रि में उसके आश्रम में रहने को सहमत हो गई ।
जैमिनी आश्रम के बाहर और युवती आश्रम के अन्दर सोयी । लगभग आधी रात के समय, जैमिनी के मन में वासना की ललक उठी किन्तु उसने इसे उपेक्षित कर दिया । और फिर से सो गया । इस बार तेज ठण्डी – ठण्डी हवाएं चलने लगी ।
जैमिनी उठा और दरवाजा खटखटाया और कहा – “ओह देवी ! बाहर बहुत ज्यादा ठण्डी हवाएं चल रही हैं । मैं इन्हें सहन नहीं सकता । इसलिए में अन्दर सोना चाहता हूँ ।” तो उस युवती ने दरवाजा खोल दिया । अब जैमिनी अन्दर सो रहा था । इस बार फिर उसके मन में एक तीव्र वासना की ललक उठी । इस बार क्योंकि वह उसके निकट सो रहा था । अतः वह उसकी श्वांसो को सुन रहा था । तथा उसकी महक को महसूस कर रहा था ।
एक बार फिर उसके मन में वासना की प्रचंड लालसा उठी । इस बार वह अपना विवेक खो बैठा और उठकर उस सुंदरी का आलिंगन करने के लिए आगे बढ़ा ही था, की वेदव्यास ने अपना असली रूप धारण कर लिया । और कहा – “ओह मेरे प्रिय जैमिनी ! कहाँ हैं तुम्हारा पूर्ण ब्रह्मचर्य ? क्या तुम अब भी पूर्ण ब्रह्मचर्य में स्थित हो ? क्या कहा था तुमने, जब में व्याख्यान दे रहा था?” जैमिनी ने शर्म से अपना सिर झुका लिया और बोला, “गुरूजी ! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई । कृपया मुझे क्षमा कर दीजिए ।”
यह द्रष्टान्त हमें बताता हैं कि जब एक महान इंसान माया के प्रभाव से छला जा सकता हैं, तो हम क्या चीज़ हैं । इसलिए एक ब्रह्मचारी को हमेशा सावधान रहना चाहिए ।