सूर्य की अरुणिमा पूर्व में छा चुकी थी । पक्षी अपने घोसले छोड़ कर वन की ओर गमन कर चुके थे । प्रातःकाल की मध्यम – मध्यम हवाएं प्रकृति में अपना मधुर संगीत बिखेर रही थी । इधर आचार्य आनंद अपने आश्रम में शिष्यों को जीवन विद्या सिखा रहे थे । सभी शिष्य आचार्य आनंद को बड़े ध्यान से सुन रहे थे ।
सहसा एक बटुक खड़ा हुआ और बोला – “आचार्य ! जीवन क्या हैं ?, जीवन का प्रयोजन क्या हैं ? और क्या मृत्यु ही जीवन का अन्त हैं ?”
एक साथ तीन प्रश्न सुन आचार्य अचंभित रह गये और बोले – “बटुक ! अभी समय हो गया हैं, तुम्हे तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर मध्याह्न काल में दूंगा” ऐसा कह आचार्य आश्रम की ओर चल दिए ।
मध्याह्न काल में भोजन कर चुकने के पश्चात् सभी ब्रह्मचारियों सहित मुकुल अपने प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए आचार्य आनंद के समक्ष उपस्थित हुआ ।
आचार्य आनंद बोले – “वत्स मुकुल ! क्या तुम अपने प्रश्न दोहरा सकते हो”। मुकुल ने अपना पहला प्रश्न दोहराया – “ जीवन क्या हैं ?”
आचार्य आनंद ने एक लम्बा श्वास लिया और बोले – “ चेतना ही जीवन हैं”। मुकुल आचार्य के उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ ।
अतः आचार्य समझाने लगे – “देखो मुकुल ! ईश्वर की बनी इस सृष्टि पर कई तरह के प्राणी विद्यमान हैं । उन सब में चेतना कार्यरत हैं अतः वे सभी जीवन के परिचायक हैं । यह चेतना ही आत्मा हैं । इसलिए आत्मा है तो जीवन है और आत्मा नहीं तो जीवन नहीं ।”
अब मुकुल ने अपने बचे हुये दोनों प्रश्न पूछे – “ जीवन का क्या प्रयोजन है ? और क्या मृत्यु ही जीवन का अन्त हैं ?”
आचार्य आनंद बोले – “ वत्स मुकुल ! आनंद ही जीवन का प्रयोजन हैं और आनंद ही जीवन का अन्त हैं”
मुकुल – “ परन्तु ! कैसे ?”
आचार्य आनंद – “ इसलिए कि आत्मा स्वयं आनंद स्वरूप हैं । जैसे इस प्रकृति पर जितने भी प्राणी विद्यमान हैं, क्या वह दुःख और अभाव में जीना चाहते है ?, क्या तुम दुःख और अभाव में जीना चाहते हो ? नहीं ! क्योंकि यह आत्मा की प्रकृति नहीं हैं ।” लेकिन फिर भी मुकुल को समझ नहीं आया ।
आचार्य आनंद बोले – “मुकुल ! वन विहार का समय हो गया हैं, संध्या तक तुम्हे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा”।
यह कह आचार्य सभी ब्रह्मचारियों को साथ ले वन की और चल दिए । चलते – चलते आचार्य एक नदी किनारे पहुंचे । नदी किनारे आचार्य ने एक कहार देखा और मुकुल को अपने पास बुलाया और कहा – “जाओ ! इस कहार से जाकर पूछो कि यह नाव क्यों चलाता हैं ?”।
आचार्य का आदेश पाकर मुकुल ने कहार से पूछा – “आप नाव क्यों चलाते हैं ?” कहार ने मन ही मन मुस्कुराते हुये जवाब दिया –“ क्योंकि इससे मुझे धन मिलता हैं, और इस धन से मुझे और मेरे परिवार को ख़ुशी मिलती है ”।
यह बात मुकुल ने आकर आचार्य को सुना दी । पास ही एक मछुआरे को मछलियाँ पकड़ता देख आचार्य ने फिर कहा – “जाओ ! उस मछुआरे से पूछकर आओ कि वह मछलियाँ क्यों पकड़ता हैं ?”
आचार्य का आदेश पाकर मुकुल ने मछुआरे से जाकर पूछा – “आप मछलियाँ क्यों पकड़ते हैं ?”
मछुआरे ने झुंझलाते हुये जवाब दिया –“ क्योंकि इन मछलियों को बेचकर इनसे अर्थोपार्जन करता हूँ तथा उससे अपनी तथा अपने परिवार की आवश्यकताओं की आपूर्ति करता हूँ । जिससे वह ख़ुशी – ख़ुशी जीवन व्यतीत कर सके । क्योंकि उनकी ख़ुशी ही मेरी ख़ुशी हैं”
यह बात भी मुकुल ने आचार्य को जाकर सुना दी । आचार्य बोले – “अब चले आश्रम ?” और सभी ब्रह्मचारी आश्रम की और चल दिए । कुछ समय पश्चात् संध्या का समय हो गया । जिज्ञासु मुकुल फिर से आचार्य आनंद के समक्ष आकर खड़ा हो गया और बोला – “आचार्य ! मेरे प्रश्न का उत्तर ?”
आचार्य बोले –“मुझे लगा, तुम्हे तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा !” मुकुल –“किन्तु ! कब ? आपने तो नहीं बताया” यह सुन आचार्य बोले –“ वत्स मुकुल ! उस कहार और मछुआरे ने जो जवाब दिया वही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर हैं”
मुकुल को अब समझ आ गया कि जीवन का वास्तविक प्रयोजन आनंद ही है । दुःख, अशक्ति और अभाव से मुक्ति तथा सुख, शांति और आनंद पूर्वक जीवन जीना और दूसरों के जीवन को भी वैसा ही आनंदमय बनाने का पुरुषार्थ करना ही जीवन का अंतिम उद्देश्य हैं ।