क्या आप ईश्वर से मिलना चाहते है ? यदि हाँ ! तो आपने अब तक ईश्वर मिलन के लिए क्या – क्या प्रयास किये है ?
एक दिन मुझे एक मित्र का सन्देश आया, जिसमे उसने लिखा था, “ मुझे ईश्वर से मिलने का रास्ता बताइये ।”
मैंने कहा – “ ठीक है ! मैं रास्ता बताऊंगा किन्तु पहले आप यह बताओं कि ईश्वर से क्यों मिलना चाहते हो ?” तो उस मित्र का कोई जवाब नहीं आया । इसी तरह का एक कथानक आपके सामने प्रस्तुत है –
बहुत समय पहले की बात है, जब ईश्वर को लेकर बहुत चर्चाये चला करती थी । ईश्वर की महिमा और सर्वशक्तिमत्ता की बातें सुन – सुनकर एक जिज्ञासु ने सोचा कि ईश्वर से मिलना चाहिए । बहुत सोचने के बाद उसने अपने खाली समय में ईश्वर को खोजना शुरू कर दिया । एक दिन वह एक मंदिर में गया और पुजारी से पूछा – “ पंडित जी ! मुझे ईश्वर के दर्शन करना है !”
पंडित जी बोले – “ आओ – आओ ! यहाँ दक्षिणा चढ़ावों और कर लो दर्शन ।
जिज्ञासु बोला – “ महाराज ! मैं असली ईश्वर से मिलना चाहता हूँ !”
पंडित जी बोले – “ तो फिर तुम्हें किसी योगी से पास जाना चाहिए ।”
जिज्ञासु बोला – “ वह कहाँ मिलेंगे ।”
पंडित जी – “ यहाँ से दो योजन दूर एक पहाड़ी पर एक योगी महाराज रहते है । वह तुम्हें ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बता सकते है ।”
जिज्ञासु बोला – “ वह कोई दान दक्षिणा लेते है क्या ?”
पंडित जी – “ नहीं ! योगी किसी से कोई धन नहीं लेते है । यदि तुम स्वेच्छा से कोई उपहार देना चाहो तो दे सकते हो ।”
इसके पश्चात् जिज्ञासु ने सोचा की दो योजन तो बहुत अधिक होता है, चलते – चलते शाम हो जाएगी । कल जाऊंगा, ऐसा सोचकर वह घर चला आया ।
दुसरे दिन अपना सारा कामकाज जल्दी खत्म करके वह योगी वाली पहाड़ी की और चल दिया । चलते – चलते थक गया । पास ही एक झरना बह रहा था । उसने हाथ – मुंह धोये, पानी पिया और चल दिया । आख़िरकार मध्याह्न काल तक वह पहाड़ी पर पहुँच ही गया ।
उसने देखा कि पहाड़ी चहुओर से मनमोहक फूलों की खुशबु से महक रही है । झरनों की मधुर ध्वनियों से पूरा वातावरण गुंजायमान है और सामने के पेड़ पर गेरुए वस्त्रों में एक महात्मा बैठे – बैठे फल खा रहे थे ।
उसने उन महात्मा को संबोधित करते हुए कहा – “ क्या आप ही इस पहाड़ी के योगी महाराज है ?”
महात्मा बोले – “ तुम्हे योगी से क्या चाहिए ?”
जिज्ञासु बोला – “ मुझे ईश्वर प्राप्ति का मार्ग जानना है ।” महात्मा हँसे और चल दीये । वह भी उनके पीछे – पीछे चलने लगा । थोड़ी दूर जाकर फिर बोला – “ बताइए ना महाराज ! क्या आप योगी है ?”
महात्मा बोले – “ हाँ ! मैं ही इस पहाड़ी का रहने वाला योगी हूँ ।”
जिज्ञासु बोला – “ तो फिर मुझे ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताइए ?”
महात्मा बोले – “ तुम ईश्वर को क्यों जानना चाहते हो ?”
जिज्ञासु – “ वह थोड़ी देर चुप रहा और बोला बस ऐसे ही ।”
महात्मा बोले – “ ठीक है ! तो फिर ऐसे ही कल आना ।”
इस तरह तीन दिन बीत गये । चोथे दिन फिर वही प्रश्न किया गया । इस बार उस जिज्ञासु के सब्र का बांध टूट गया और वह बोला – “ गुरूजी ! बताना है तो बताइए, अन्यथा मना कर दीजिये । मैं रोज – रोज यहाँ आकर परेशान हो गया हूँ ।
महात्मा बोले – चलो ! ईश्वर से मिलने से पहले स्नान कर ले ।” यह कहकर वह दोनों एक नदी के किनारे पहुंचे । महात्मा ने पूछा – “ क्या तुम्हें तैरना आता है ?”
जिज्ञासु बोला – “ नहीं गुरूजी ! मैंने तैरना नहीं सीखा, क्योंकि मुझे पानी में उतरने से बहुत डर लगता है ।” यह सुनते ही महात्मा ने उसे नदी में धक्का दे दिया । गिरते ही वह चिल्लाने लगा । हाथ – पैर मारने लगा और डूबने लगा । थोड़ी देर बाद महात्मा ने उसे बाहर निकाला और पूछा, “ जब तुम पानी में थे उस समय तुम्हे सबसे अधिक चाहत किस चीज़ की थी ।
जिज्ञासु बोला – “ महाराज ! उस समय तो मेरा पूरा ध्यान अपने एक – एक श्वास पर था कि कोनसा अंतिम होगा ।
महात्मा बोले – “ क्या इसी तरह की चाहत तुम्हारी ईश्वर के प्रति है ? जिस दिन तुम अपने श्वांसो की तरह ईश्वर की कीमत समझ जाओगे, उस दिन तुम्हे ईश्वर मिल जायेगा ।”
दोस्तों ! हममें से अधिकांश लोगों की यही हालत है । हमारा ईश्वर को चाहना केवल शब्दों तक सीमित है, परिणामतः ईश्वर हमें नहीं मिलता । यदि आप सच में ईश्वर से मिलना चाहते है तो ईश्वर के प्रति अपने ह्रदय में अविचलित चाहत जगाइये । ईश्वर को केवल पूजा तक सीमित मत रखिये । उसे दिल में बिठाइए । अपनी यादों में जगाइए । उससे बातें कीजिये । विश्वास कीजिये – ईश्वर आपसे दूर नहीं, दुरी केवल दिलों की है ।
जब ईश्वर को आप दिल से चाहेंगे, निश्चय ही उसे दिल में पाएंगे ।
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