जीवन की सच्चाई हिंदी कहानी

सार्थक आयु हिंदी कहानी

राजा चित्रसेन को आज ही राजकार्य से अवकाश मिला । लम्बे समय से राजकार्य में लगे रहने के कारण वह उब चुके थे अतः वह शिकार पर जाने के लिए उतावले हो उठे । प्रातःकाल जल्द ही उठकर महाराज अपने रथ और तीर – कमान लेकर जंगल की ओर रवाना हो गये । बहुत भटकने के बाद महाराज को एक छोटा सा हिरण का बच्चा दिखाई दिया । महाराज ने रथ को उसके पीछे दौड़ाया लेकिन शावक बहुत फुर्तीला था । कुलाचे भरता हुआ कब महाराज की दृष्टि से जंगल में ओझल हो गया, कुछ पता ही नहीं चला !
 
महाराज उसे खोजते – खोजते बहुत दूर जा पहुंचे । फिर अचानक से वह हिरण शावक एक पहाड़ी पर दिखाई दिया । महाराज बिना देर किये रथ सहित पहाड़ी पर चड़ने लगे । दुर्भाग्य से महाराज के घोड़ो ने पहाड़ी के दूसरी तरफ दौड़ लगा दी । अब रथ का संतुलन महाराज के नियंत्रण से बाहर था । पहाड़ी की असमतल भूमि के कारण रथ का एक पहिया निकल गया और महाराज नीचे गिरकर लुढ़कते हुए पास ही बहती हुई नदी में जा गिरे ।
 
जब महाराज को होश आया तो वह नदी के किनारे पड़े हुए थे और वह हिरण का बच्चा उन्हें अपनी जुबान से चाट रहा था ।जैसे ही महाराज खड़े हुए शावक जंगल की ओर इशारा करते हुए दौड़ने लगा । क्योंकि यह जंगल महाराज के लिए एकदम नया था अतः वह उस शावक के पीछे – पीछे चलने लगे । थोड़ी दूर जाने पर वह शावक एक कुटिया के पीछे छुप गया ।
 
महाराज ने कुटिया के द्वार पर जाकर बोला – “ कोई है ?”
 
अन्दर से के बूढ़े की आवाज आई – “ हाँ ! भाई ! मैं हूँ ।”
 
महाराज चित्रसेन बोले – “ क्या मैं कुछ समय आपकी कुटिया में व्यतीत कर सकता हूँ ?”
बूढा बोला – “ हाँ ! बेटा जरुर ! यहाँ मेरे अलावा कोई नहीं रहता है । तुम जितना चाहो उतना समय यहाँ व्यतीत कर सकते हो ”
 
राजा ने कुटिया में प्रवेश किया और एक कोने में बैठ कर बूढ़े को निहारने लगा । थोड़ी देर बाद उत्सुकता से पूछा – “ आपकी उम्र कितनी है बाबा ?”
 
बूढ़े ने जवाब दिया – “ १० वर्ष ”
 
राजा ने आश्चर्य से उनको देखा और बोला – “ लेकिन आपकी अवस्था देखते हुए तो लगता है कि आप शतायु भी पार कर चुके है ?”
 
वो मेरे शरीर की आयु हो सकती है बेटा ! जिसमें मैंने निरर्थक और निरुद्देशय कार्य किये है लेकिन मेरी सार्थक आयु १० वर्ष ही है, जिसमें मैंने केवल ईश्वर का कार्य किया है । स्वार्थ के लिए जिया गया जीवन बेकार है, परमार्थ के लिए जिया गया जीवन ही सच्चा जीवन है । राजा को बात समझ नहीं आयी लेकिन वह काफी थक गया था इसलिए सो गया । सोते ही राजा ने एक सपना देखा जिसमें वह बूढा व्यक्ति उसे उपदेश दे रहा था – “ हे राजन ! यह जंगल, नदियाँ, पहाड़ और पशु – पक्षी आप ही की धरोहर है क्यों अपने अमूल्य समय को खोकर इन्हें नष्ट कर रहे हो !” बूढ़े ने इतना ही कहा कि राजा की नींद खुल गई ।

जब आंखे खुली तो वहाँ न कुटिया थी ना ही बूढा । तब राजा को समझ आया । ना वो हिरण का असली था न ही कुटिया असली थी न ही बूढा ही असली था । सब माया थी उसे केवल सार्थक जीवन की महत्ता समझाने के लिए ।
 
उसी दिन से राजा अपने हर दिन की सार्थकता को ध्यान में रखते हुए जीता था ।
 

दोस्तों ! इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें भी अपने जीवन को निरर्थक कार्यों से बचाकर सार्थक कार्यों में लगाना चाहिए, जिसमें हमें भी संतुष्टि हो और दूसरों को सहयोग हो । ईश्वर के इस विश्व उद्यान को सुन्दर और समुन्नत बनाना संसार का सर्वश्रेष्ठ आनंददायक कार्य है ।

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