शायद यह प्रश्न आपके दिमाग में अवश्य आया होगा कि “आत्मशक्ति का स्त्रोत क्या है ?” या “हमारे अन्दर किसी काम को करने की शक्ति कहाँ से आती है ?” कंफ्यूज मत होना, यहाँ शक्ति और आत्मशक्ति से हमारा मलतब एक ही है ।
अगर इसका सरल शब्दों में जवाब दिया जाये तो “आत्मा ही आत्मशक्ति का स्त्रोत है ।” लेकिन शायद ये बात आपको हजम नहीं होगी । क्योंकि अब प्रश्न ये उठता है कि जो यदि आत्मा ही आत्मशक्ति का स्त्रोत है तो फिर हमें खाने – पीने की जरूरत क्यों पड़ती है ? तर्क अच्छा है लेकिन यह बताइए कि क्या आप मुर्दे को खिला – पिलाकर आप ताकतवर बना सकते है ? जाहिर है ! नहीं !
इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि शक्ति का स्त्रोत आत्मा ही है । इसे और अधिक स्पष्ट करने के लिए आइये देखते है ये कहानी
एक बार की बात है । एक राजा के यहाँ बड़ी मिन्नतों के बाद एक सुन्दर सी राजकुमारी का जन्म हुआ । राजकुमारी बड़ी ही सुन्दर, बुद्धिमान और समझदार थी । जब वह विवाह के लिए योग्य हुई तो उसने शर्त रखी कि “ मैं उसी युवक से शादी करूंगी, जिसमें अदम्य साहस हो, जो मुझे पाने के लिए अपनी जान की भी परवाह न करें ।”
राजा अपनी बेटी से बहुत स्नेह रखता था । अतः उसने राजकुमारी की इस शर्त को पूरी करने के लिए स्वयंवर का आयोजन किया । इसी के साथ उसने अपने बगीचे के तालाब में बड़े – बड़े भयानक मगरमच्छ छुड़वा दिए । तालाब के चारों ओर ही राजाओं के बैठने की व्यवस्था करके राजदरबार सजाया गया । जब दूर – दूर के राजा और राजकुमारों का आगमन हुआ तो सबको शर्त सुना दी गई कि
राजा ने ऐलान किया – “ हमारी राजकुमारी को ऐसा वर चाहिए जो इतना साहसी हो कि उसे पाने के लिए अपनी जान की भी परवाह न करें । इसलिए हमने इस तालाब में मगरमच्छ छुड़वा दिए है । अब जो कोई भी राजकुमारी से विवाह करना चाहता हो, वह इस तालाब के एक किनारे से दुसरे किनारे तक तैरकर निकले । जो इस शर्त को पूरा करेंगा, उसके साथ राजकुमारी का विवाह किया जायेगा ।”
स्वयम्वर की शर्त सुनकर राजदरबार में सन्नाटा छा गया । सभी राजा आपस में बातचीत करने लगे । तभी एक राजा खड़ा हुआ और बोला – “ महाराज ! लगता है राजकुमारी को कुँवारी ही रहना है जो ऐसी शर्त रखी ।” एक दूसरा राजा खड़ा हुआ बोला – “ ये शर्त जितना असंभव है, क्योंकि कोई भी राजा और राजकुमार इसके लिए तैयार नहीं होगा । भला कौन मौत को गले लगाएगा !।”
इस तरह अधिकांश राजा और राजकुमार मूकदर्शक बन गये । राजकुमारी से विवाह करने का खयाल उन्होंने अपने दिमाग से निकाल दिया और देखने लगे कि आखिर कौन होगा वह भाग्यशाली जो इस शर्त को पूरा करेगा ।
सभी राजा तालाब पर नज़ारे गड़ाए मगरमच्छों को देख ही रहे थे तभी अचानक लोगों की भीड़ में से एक युवक निकला और धड़ाम से तालाब में कूद गया । उसकी फुर्ती इतनी थी कि कोई भी मगरमच्छ उसे पकड़ नहीं पाया और वह झट से बाहर निकल गया । बाहर निकलते ही लोगों ने उसे उठा लिया और उसके जयकारे लगाने लगे । लोग पूछने लगे – “ आखिर तुमने यह कैसे कर दिखाया ?”
युवक बोला – “ कर दिखाया ! क्या खाक कर दिखाया, मेरी जान पर आफत बन आई थी, सबसे पहले तो ये बताओ कि मुझे धक्का किसने दिया ?
इस कहानी को पढ़कर आपको हँसी आ रही होगी, लेकिन मजे की बात ये है कि हममे से अधिकांश को इसी धक्के की जरूरत होती है । वहां बैठे राजाओं में से आधे से ज्यादा राजा – राजकुमार उस असंभव दिखने वाले तालाब को पार कर सकते थे यदि उन्हें कोई धक्का देने वाला मिल जाता ।
अब आप ही बताइए ? उस अजनबी युवक में उस तालाब को पार करने की शक्ति कहाँ से आई ? जाहिर है, उसके अन्दर ही थी । “ आपके अन्दर असीम क्षमताएं विद्यमान है, लेकिन प्रत्यक्ष केवल वही हो पाती है, जिनके लिए आप प्रयास करते है ।”
आपकी आत्मा, परमात्मा का ही एक अंश है “ ईश्वर अंश जीव अविनाशी” और यदि आप परमात्मा को मानते है तो यह भी जानते होंगे कि परमात्मा की क्षमताओं की कोई सीमा नहीं, तो आपकी भी कोई सीमा नहीं । इस दुनिया में जितने अजूबे आप देखते है, वह आप ही की तरह दिखने वाला कोई मनुष्य करता है । तो फिर आप क्यों नहीं कर सकते है !
सफलता का मूलमंत्र – “ अगर सही समय पर, सही काम को, सही तरीके से, सतत किया जाये तो सफलता मिलकर रहती है ।”
mujhe aisi dravni kahani bahut achhi lgti hai or bhi dravni laiye. ye bhi bahut dravi hai https://kahaniyokiyaatra.blogspot.com/2023/01/part-2.html
कुछ लोगों का कहना है के अवचेतन मन सिर्फ क्रिया की प्रतिक्रिया है असल कहानी इसके बाद शुरू होती है मैं तो कभी गया नहीं