एक बार शिवाजी युद्ध के दौरान बुरी तरह से थक गये । आस – पास कुछ न देख वह एक वनवासी बुढ़िया के घर में जा घुसे । बहुत भूख लगी थी अतः उन्होंने कुछ खाने के लिए माँगा । सैनिक समझकर बुढ़िया ने उनके लिए प्रेम पूर्वक भात पकाकर एक पत्तल पर परोस दिया ।
शिवाजी को भूख जोर से लगी थी अतः उन्होंने जल्दबाजी में भात के बीच में हाथ दे मारा और अपनी अंगुलियाँ जला बैठे । यह देखकर बुढ़िया बोली – “ सैनिक ! दिखने में तो तू समझदार दिखाई देता है फिर भी मुर्ख शिवाजी की तरह गलती कर रहा है !”
यह सुनकर शिवाजी के कान खड़े हो गये । वह बोले – “ माई ! शिवाजी ने ऐसी क्या गलती की जो आप उनको मुर्ख बोल रहे हो और मेरी गलती बताने की भी कृपा करें ।”
बुढ़िया बोली – “ सैनिक ! जिस तरह तू किनारे की ठंडी भात खाने के बजाय बीच में अपना हाथ डालकर अपनी अंगुलियाँ जला रहा है उसी तरह शिवाजी भी पहले छोटे – छोटे किलों को जीतकर अपनी शक्ति बढ़ाने के बजाय बड़े किलो पर धावा बोलकर मुंह की खाता है । इसीलिए मैंने तुझे शिवाजी की तरह मुर्ख कहा ।”
अब शिवाजी को अपनी हार का कारण समझ आ चूका था । उन्होंने पहले छोटे – छोटे किलो को जीतकर अपनी शक्ति बढ़ाना शुरू कर दिया और बड़े – बड़े किले भी फतह कर लिए । शिवाजी को बुढ़िया की सीख काम आई ।
शिवाजी की महानता
उन दिनों शिवाजी एक – एक करके सभी किलो पर अपनी विजयश्री का झंडा फहरा रहे थे । इसी दौरान एक बार शिवाजी का एक सेनापति मुगलों पर विजय प्राप्त करके लौटा । उसने सीधे आकर शिवाजी को यह खुश – खबरी सुनाई और बोला – “ राजे ! हम आपके लिए बहुत ही अनमोल उपहार लाये है ।” सेनापति के इशारे से एक पालकी शिवाजी के सामने लाकर रखी गई । पालकी को हटाया गया तो उसमें सौन्दर्य की अनुपम मूर्ति मुग़ल बादशाह की बेगम विराजमान थी । यह देख शिवाजी को पूरी बात समझते देर नहीं लगी । वह तुरंत उस देवी के पास गये और बोले – “ माँ ! मैं आपके दर्शन करके धन्य हो गया । आप सौन्दर्य की मूर्तिमान प्रतिमा है । अगर मेरी माँ आपकी तरह सुन्दर होती तो ये शिवा इतना काला नहीं होता । मेरे सैनिको को क्षमा कर दीजिये । आप चिंता न करें । आपको सही – सलामत आपके शौहर के पास पहुँचाया जायेगा ।”
यह सुनकर वह देवी बोली – “ आपके बारे में अब तक केवल सुना था शिवाजी ! लेकिन अब यकीन हो गया कि आप सच में महान है ।”
इसके बाद शिवाजी ने सैनिको को आदेश दिया कि बेगम को उनके शौहर के पास पहुँचाया जाये । शिवाजी ने अपने सेनापति को भी समझाया कि वीर वही है जो हमेशा नारी का सम्मान करें । जो नारी की इज्जत के साथ खिलवाड़ करे वह कभी वीर नहीं हो सकता और ऐसे कायरों के लिए शिवाजी की सेना में कोई स्थान नहीं । आगे से ऐसी गलती नहीं होना चाहिए ।
छत्रपति शिवाजी की उदारता ऐतिहासिक कहानी
वीर मराठा छत्रपति शिवाजी अपने शत्रुओं को क्षमा दान देने के लिए काफी प्रसिद्ध है । ऐसी ही एक घटना है । एक बार शिवाजी अपने शयनकक्ष में सो रहे थे । रात का समय था । एक चौदह वर्ष का बालक किसी तरह छुपकर उनके शयनकक्ष में जा पहुँचा । वह शिवाजी को मारने आया था । लेकिन शिवाजी के विश्वस्त सेनापति तानाजी ने उसे पहले ही देख लिया था । लेकिन फिर भी उन्होंने उसे जाने दिया । वह जानना चाहते थे कि आखिर यह लड़का क्या करने आया है !
उस लड़के ने तलवार निकाली और शिवाजी पर चलाने ही वाला था कि पीछे से तानाजी ने उसका हाथ पकड़ लिया । इतने में शिवाजी की भी नींद टूट गई ।
उन्होंने उस बालक से पूछा कि तुम कौन हो और यहाँ क्यों आये हो ? उस बालक ने निडरता पूर्वक बताया कि उसका नाम मालोजी है और वह शिवाजी की हत्या करने आया था ।
जब शिवाजी ने उससे कारण पूछा तो उसने बताया कि “मैं एक गरीब घर से हूँ तथा मेरी माँ कई दिनों से भूखी है । इसलिए अगर मैं आपकी हत्या कर दूँ तो आपका शत्रु सुभाग राय मुझे बहुत सारा धन देगा ।
यह सुनकर तानाजी गुस्से में बोले – “ मुर्ख बालक ! धन से लोभ से तू छत्रपति शिवाजी का वध करने आया है ! अब मरने के लिए तैयार हो जा ?”
इतने में मालोजी शिवाजी से बोला – “ महाराज ! मैंने आपका वध करने की कोशिश की अतः निसंदेह मैं दण्ड के योग्य हूँ, लेकिन कृपा करके मुझे अभी के लिए जाने दीजिये । मेरी माँ भूखी है वह जल्द ही मर जाएगी । माँ का आशीर्वाद लेकर मैं सुबह आपके सामने उपस्थित हो जाऊंगा ।”
बालक की बातें सुनकर तानाजी बोले – “ हम तेरी बातो के धोखे में आने वाले नहीं है, दुष्ट बालक !”
बालक मालोजी बोला – “ मैं एक मराठा हूँ सेनापति महोदय ! और आप बखूबी जानते हो कि मराठा कभी झूठ नहीं बोलते ।” इतना सुनकर शिवाजी ने उस बालक को जाने दिया ।
दुसरे दिन सुबह जब राजदरबार में छत्रपति शिवाजी महाराज सिंहासन पर बैठे थे । तभी द्वारपाल एक सन्देश लेकर आया कि एक बालक महाराज से मिलना चाहता है । जब उसे अन्दर बुलाया गया तो यह वही बालक था जिसे कल रात शिवाजी ने माँ का आशीर्वाद लेने जाने दिया था ।
महाराज के सामने आकर बालक बोला – “ मैं आपका अपराधी महाराज ! आपकी उदारता के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूँ । आप जो चाहे दण्ड दे सकते है ।”
शिवाजी ने सिंहासन से उठकर उस बालक को गले लगाते हुए कहा – “ तुम जैसे सच्चे मराठाओं को अगर मृत्यु दण्ड दे देंगे तो फिर जिन्दा किसे रखेंगे ? आजसे तुम हमारी सेना के सैनिक हो ।”
छत्रपति ने उसे बहुत सारा धन दिया तथा उसकी माँ की चिकित्सा के लिए राज वैद्य को भेजा गया ।
कृपया ” छत्रपति शिवाजी महाराज ” इस तरह नाम का उच्चारण किजीये. इस लेख मे गलत तरिकेसे नाम लिखा हैं आपने.