प्रकृति के गुलाम
एक जंगल की कहानी है जहाँ एक बहुत पुराने पेड़ पर दो बाज रहते थे । दोनों बाज घनिष्ट मित्र थे । दोनों में इतना प्रेम था कि साथ उठते – बैठते, खाते – पीते और शिकार पर जाते थे । उनका हमेशा का यही क्रम रहता था ।
एक दिन दोनों बाज एक पहाड़ी इलाके पर शिकार के लिए गये । उन्होंने देखा कि एक सांप एक चूहे के पीछे पड़ा है । दोनों बाज एक साथ झपटे और एक ने सांप को दबोचा और दुसरे ने चूहे को । दोनों आकर अपने उसी पुराने पेड़ पर बैठ गये ।
सांप और चूहा बुरी तरह से घायल हो चुके थे किन्तु अभी भी जिन्दा थे । बाजों ने थोड़ी पकड़ डिली की और सुस्ताने लगे । सांप की नजर चूहे पर पड़ी और वह ललचाने लगा । जैसे ही चूहे ने सांप को देखा, वह भी छटपटाने लगा और बाज के पंखो में छुपने की कोशिश करने लगा ।
उनके इस बर्ताव को पहला बाज बड़े ध्यान से देख रहा था । इतने में दूसरा बाज बोला – “ क्या बात है ? मित्र ! किस गहन चिंतन में खोये हो ?”
पहले बाज ने हंसकर उत्तर दिया – “ कुछ खास नहीं मित्र ! देखो तो इन मूर्खों को जो साक्षात् मौत के मुंह में पड़े है फिर भी एक दुसरे को देखकर ललचा और भय खा रहे है !”
दूसरा बाज बोला – “ भाई ! इसमें इनका दोष नहीं, इनकी प्रकृति ही ऐसी है ।”
पहला बाज बोला – “ हाँ ! सही कहते हो मित्र ! मैंने सुना है, मनुष्य को छोड़कर किसी प्रजाति में इतना विवेक नहीं जो मृत्यु के रहस्य को समझ सके ।”
संयोग उसी समय एक व्यक्ति पेड़ के नीचे सो रहा था । उसने बाजों का पूरा किस्सा सुना और फिर बोला – “ दोस्तों ! मनुष्यों का भी यही हाल है । सभी जानते है कि वासना और विकारों में कुछ नहीं रखा है फिर भी मरते दम तक उनमें उलझे रहते है । इसलिए मैं तो कहता हूँ – “ अज्ञानी मनुष्य जानवरों से भी बत्तर है । क्योंकि जानवर तो केवल अपने स्वाभाविक गुण धर्मों का पालन करता है जबकि मनुष्य स्वभाव से हटकर नये तौर – तरीके अपनाता है ।”
पहला बाज बोला – “ क्या आप मुझे बता सकते है, मनुष्य गलत कैसे है ?”
वह व्यक्ति बोला – “ मनुष्य ही तो है जिसने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति के संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया है । जल प्रदुषण, वायु प्रदुषण, ध्वनी प्रदुषण, मृदा प्रदुषण आदि जितने भी पर्यावरण प्रदुषण है । सभी मनुष्य की ही तो देन है । प्रकृति का दोहन किया सो ठीक किन्तु खुद का दोहन करने भी नहीं चुकता । तुम्हे सुनकर आश्चर्य होगा । इसी बुद्धिमान कहे जाने वाले मनुष्य ने चाय, काफ़ी, बीड़ी, सिगरेट, शराब, ड्रग्स और लम्पटता जैसे सैकड़ो नशे पाल रखे है जो दिन – रात उसके शरीर का कबाड़ा करते रहते है । फिर भी उसे समझ नहीं आती ।”
इतने में दूसरा बाज बोला – “ भाई ! इससे अच्छे तो हम है, कमसे कम कोई नशा तो नहीं करते ।”
व्यक्ति बोला – “ बिलकुल सही कहा आपने ! अरे इस मनुष्य से तो वो जानवर अच्छे जो अपने जीवनकाल में कभी हॉस्पिटल नहीं जाते । भाई ! मनुष्य के हाल बड़े बेहाल है, आये दिन कोई ना कोई बीमारी घेर लेती है और मनुष्य के लिए बुढ़ापा किसी बीमारी से कम नहीं । क्योंकि सँभालने वाला मिले तो हरे राम हरे कृष्णा, चलता है और सभी दुत्कार दे तो राम नाम सत्य है ।”
बड़े दुःख के साथ पहला बाज बोला – “ बहुत बुरी हालत है मनुष्य योनी की तो ! किन्तु तुम कौनसे जानवर हो ?”
व्यक्ति बोला – “ मैं मनुष्य ही हूँ ”