राबिया की सिद्धि
हजरत राबिया बसरी अपने समय की प्रसिद्द सूफी संत है । एक बार राबिया अपने कुछ संतो के साथ बैठकर सत्संग का आनंद ले रही थी । तभी तात्कालिक विख्यात संत हसन बसरी का वहाँ आगमन हुआ । उनके बारे में कहा जाता है कि वह पानी पर बैठकर नमाज़ पढ़ते है । अतः जब उन्होंने लोगों को जमीन पर बैठा देखा तो बोले – “ चलिए, दरिया पर मुसल्ला बिछाकर इबाबत करते है ।”
राबिया ताड़ गई कि हजरत हसन बसरी पानी पर चलने की अपनी सिद्धि का प्रदर्शन करना चाहते है । मुस्कुराते हुए राबिया बोली – “ भैया ! हवा में उड़ते हुए इबाबत करे तो कैसा रहेगा ?” राबिया के बारे में भी प्रसिद्ध था कि वह हवा में उड़ते हुए इबाबत कर सकती है । हसन से कोई उत्तर देते नहीं बना । फिर राबिया गंभीर होकर बोली – “ भैया ! जो आप कर सकते हो, वह हर मछली करती है और जो मैं कर सकती हूँ, वह हर मक्खी करती है । किन्तु सत्य इस करिश्मेबाजी से बहुत ऊपर की चीज़ है । उसे अपनी सिद्धियों के घमंड में आकर इस तरह अपमानित नहीं करना चाहिए ।”
इसीलिए सच्चे अध्यात्मवादी को कभी भी अपने ज्ञान और सिद्ध होने का घमंड नहीं करना चाहिए । हसन ने राबिया की बात को समझा और आत्मशोधन में जुट गया ।
राबिया का विश्वास
एक बार दो व्यक्ति राबिया से मिलने आये । बातचीत के दौरान राबिया ने खाने को पूछा तो वो भूखे थे इसलिए मना नहीं किया । राबिया के पास दो रोटियाँ थी । वह दोनों ही रोटियाँ उन दोनों को खिलाने वाली थी लेकिन तभी एक भिखारी मांगता हुआ आ पहुँचा । राबिया ने वह दोनों रोटियाँ उस भिखारी को दे दी । अब उन लोगों के खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा ।
थोड़ी ही देर बाद राबिया की एक सेविका उनके लिए रोटियाँ लेकर आई । राबिया ने रोटियों को गिना तो 18 रोटियाँ थी । उसने वापस कर दिया । सेविका ने बहुत मनाया लेकिन राबिया नहीं मानी । कुछ देर बाद वो सेविका फिर आई, इस बार उसके पास 20 रोटियाँ थी । राबिया ने कुबूल कर ली और उन दोनों व्यक्तियों के सामने रख दी ।
यह सब देखकर वह दोनों अचंभित थे । उनमें से एक व्यक्ति गंभीरता से पूछा – “ यह सब क्या है ? 18 रोटियाँ हमारे लिए बहुत ज्यादा थी फिर भी आपने 20 होने पर ही क्यों कुबूल की ।” तो राबिया बोली – “मेरे पास दो ही रोटियाँ थी जो मैं आपको देना चाहती थी लेकिन तभी भिखारी आ गया । इसलिए मैंने उसे दे दी । मेरा खुदा से वादा है, कि वो मुझे एक के बदले दस देगा, तो फिर मैं कम क्यों लूँ । मैंने दो रोटियाँ दी तो खुदा के वादे के अनुसार मुझे बीस रोटियाँ मिलना चाहिए । बस इसीलिए मैंने 18 रोटियों को कुबूल नहीं किया ।
राबिया की चादर
राबिया अक्सर इबाबत करते – करते सो जाया करती थी । एक दिन भी इसी तरह राबिया सो गई । तभी एक चोर आया और राबिया की चादर लेकर भागने लगा । लेकिन उसे बाहर जाने का रास्ता दिखाई नहीं दिया । तीन – चार बार दीवार से टकराने के बाद उसने चादर एक जगह रखकर इत्मिनान से सोचना शुरू किया, तभी उसे रास्ता दिखाई दिया लेकिन जैसे ही चादर लेकर मुड़ा, फिर से अँधेरा छा गया ।
इस तरह उसने कई बार कोशिश की किन्तु हर बार जैसे ही वह चादर लेकर भागता, आँखों के आगे अँधेरा छा जाता । आखिर वो नहीं माना तब गूंज के साथ एक आवाज आई – “ क्यों आफत मोल ले रहा है !, खुशामद चाहता है तो हिफाजत से चादर रख दे । इस चादरवाली ने खुद को खुदा के हवाले कर रखा है । इसलिए शैतान भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो किसी और की क्या मजाल, जो इसका कुछ बिगाड़ सके ।” यह सुनते ही वह चोर चादर को हिफाजत से रखकर भाग गया ।
Very nice